इस दिन से शुरू होगा हिन्दू नववर्ष, जानें ज्योतिषीय महत्व
हिन्दू धर्म में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवसंवत की शुरुआत होती है. इसे भारतीय नववर्ष भी कहा जाता है. इसका आरम्भ विक्रमादित्य ने किया था अतः इसको विक्रम संवत भी कहा जाता है. इस दिन से वासंतिक नवरात्र की शुरुआत भी होती है. इसी दिन से सूर्य, भचक्र की पहली राशि मेष में प्रवेश करता है. इस समय से ऋतुओं और प्रकृति में परिवर्तन भी आरम्भ हो जाता है. इस बार नवसंवत्सर 06 अप्रैल से आरम्भ होगा.
नवसंवत्सर का ज्योतिषीय महत्व क्या है?
– नवसंवत का विशेष नाम और फल होता है.
– इसके अलावा पूरे संवत के लिए ग्रहों का एक मंत्रिमंडल भी होता है.
– इसी मंत्रिमंडल के ग्रहों के आधार पर पूरे संवत के लिए शुभ अशुभ फलों का निर्धारण होता है.
– मौसम, अर्थव्यवस्था, जनता, सुरक्षा, कृषि, यहां तक कि बरसात भी इन्हीं ग्रहों के मंत्रिमंडल से निर्धारित होती है.
इस बार के नवसंवत्सर में ग्रहों का मंत्रिमंडल कैसा है? इसका फल क्या है?
– यह विक्रमी संवत 2076 है. इसका नाम है- “परिधारी”
– इस संवत का राजा शनि और मंत्री सूर्य होगा.
– राजा शनि होने से कम वर्षा, विवाद, असंतोष, अपराध और अनाचार से समस्या जैसी स्थिति बार-बार बनेगी.
– मंत्री सूर्य के होने से राजकीय कार्यों से लोगों को समस्या होगी, देश का माहौल तनावपूर्ण होगा, न्यायपालिका की ताक़त बढ़ेगी.
– धान्य मंत्री मंगल और चंद्र होंगे, अतः अनाज और पैदावार की स्थिति मिली जुली रहेगी, कृषक वर्ग को समस्या होगी.
– वित्त मंत्री मंगल हैं, अतः देश की आर्थिक स्थितियां विषम होंगी, व्यापारिक जगत में असंतोष रहेगा.
– रक्षा मंत्री शनि हैं, अतः देश की शक्ति बढ़ेगी, शत्रुओं और विरोधियों पर विजय मिलेगी.
नवसंवत के प्रथम दिन क्या करना चाहिए ताकि पूरा संवत मंगलमय हो?
– प्रातःकाल स्नान करके सूर्य को अर्घ्य दें.
– घर के मुख्य द्वार पर वंदनवार लगाएं.
– अपने इष्ट देव या देवी की विधिवत आराधना करें.
– हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर नवसंवत की पूजा करें.
– ईश्वर से प्रार्थना करें कि आने वाला नवसंवत मंगलकारी होगा.
– नवसंवत के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाएं.
– उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाएं.
– इससे रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है.