नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वर्ष 1983 में कन्याकुमारी से नई दिल्ली राजघाट तक पदयात्रा की थी। उस वक्त उन्होंने कहा था कि उनकी यात्रा का लक्ष्य राजनीतिक है, पर दलगत राजनीति से परे है। ठीक 39 साल बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी कुछ इन्हीं शब्दों के साथ कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर रहे हैं। यात्रा का ज्यादा समय दक्षिण भारत में गुजरेगा। यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में साढ़े तीन हजार किलोमीटर की दूरी तय हुए पांच माह बाद जम्मू-कश्मीर में खत्म होगी।
पूरी यात्रा के दौरान 22 महत्वपूर्ण स्थानों में से नौ दक्षिण भारत में स्थित हैं। दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लोकसभा की 129 सीट हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इन प्रदेशों में कांग्रेस को 28 सीट मिली थी, जबकि भाजपा 29 सीट जीतने में सफल रही। भाजपा को 25 सीट अकेले कर्नाटक से मिली थी। रणनीतिकार मानते हैं कि यात्रा के जरिए दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूती मिलेगी। पार्टी दक्षिण में बेहतर प्रदर्शन करती है, तो सत्ता तक पहुंचना आसान हो जाएगा।
पार्टी जब-जब मुश्किल में आई है, दक्षिण भारत ने पार्टी का साथ दिया है। आपातकाल के बाद चुनाव में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों अपनी सीट हार गए थे और कांग्रेस सिमटकर 153 पर आ गई थी। उस वक्त भी पार्टी को 92 सीट दक्षिण भारत से मिली थी। 1978 के लोकसभा उपचुनाव में इंदिरा गांधी कर्नाटक से चिकमंगलूर से जीत हासिल की थी। 1980 के आम चुनाव में वह तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मेडक से चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं।
भारत जोड़ो यात्रा से पहले भी राहुल गांधी कई यात्राएं कर चुके हैं। पर उनकी यह यात्राएं एक प्रदेश तक सीमित थी। अकेले उत्तर प्रदेश में उन्होंने भट्टा पारसौल और किसान यात्रा की है। पर दूसरे राजनीतिक नेताओं की तरह उनकी यात्राएं चुनावी जीत नहीं दिला पाई। गुजरात में राहुल गांधी की सद्भावना यात्रा भी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में विफल रही। हालांकि, वर्ष 2017 के चुनाव में पार्टी की सीट और वोट प्रतिशत बढ़ा है। वहीं, पार्टी भाजपा को 99 सीट पर रोकने में सफल रही। कांग्रेस यात्रा को किसी भी राजनीतिक दल का सबसे बड़ा जनसंपर्क अभियान करार दे रही है। पार्टी दावा कर रही है कि इस यात्रा का चुनाव से लेना-देना नहीं है। तमिलनाडु और केरल में पार्टी गठबंधन है, पर वर्ष 2024 के चुनाव में सत्ता तक पहुंचने के लिए अन्य दलों के साथ तालमेल बढ़ाने की जरूरत है। इसलिए पार्टी ने यात्रा में अपना झंडा नहीं रखा।