जीनोम सीक्वेंसिंग जांच को लेकर US-UK के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश बना
नई दिल्ली। चीन (china) में कोरोना की भयावहता (horrors of corona) से परेशान दुनिया के सामने अब अमेरिका और जापान से बड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। कोरोना (covid) से गत दिवस दुनिया भर में 1374 मौतें हुई हैं, जिनमें सर्वाधिक मौतें जापान और अमेरिका में हुई हैं। सबसे ज्यादा कहर चीन में बरप रहा है। चीन में लगातार बढ़ते कोरोना के मामले पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब बने हैं। अब चीन के बाद जापान व अमेरिका में भी कोरोना के जानलेवा प्रसार की जानकारी सामने आई है। चीन के बाद जापान, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस और कोलंबिया में भी कोरोना तेजी से पांव पसार रहा है।
वहीं दूसरी ओर कोरोना जैसी महामारी से निपेटने के लिए संसाधनों की तैयारियों की जांच के लिए भारत में मंगलवार को देशभर के अस्पतालों में मॉकड्रिल आयोजित की गई। इसका मकसद कोविड तैयारियों को जांचना और किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहना है, हालांकि कई जगह लगाए गए आक्सीन प्लांट बंद मिले तो कई जगह चालू हालात में भी दिखे।
हालांकि कोरोना वायरस की वंशावली पर नजर रखने के लिए भारत ने एक और उपलब्धि हासिल की है। भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना मरीजों के सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग करते हुए दो लाख का आंकड़ा पार कर लिया है। इसी के साथ ही अमेरिका और यूके के बाद भारत दो लाख से अधिक जीनोम सीक्वेंसिंग करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। ग्लोबल इनीशिएटिव ऑन शेयरिंग ऑल इन्फलुएंजा डाटा (जीआईएसएआईडी) रिपोर्ट के अनुसार भारत में बीते 60 दिन में करीब 150 से ज्यादा जीनोम सीक्वेंसिंग की गई हैं और उनमें किसी में भी बीएफ.7 उप वैरिएंट की मौजूदगी नहीं मिली है। सर्वाधिक 19 फीसदी मरीजों के सैंपल में ओमिक्रॉन से निकले एक्सबीबी.3 नामक उप वैरिएंट का पता चला है, जिसके प्रभावों के बारे में फिलहाल जानकारी बेहद कम है।
जीआईएसएआईडी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में जनवरी 2021 से कोरोना सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हुई थी और अब तक 2,23,588 सीक्वेंस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने साझा किए हैं। इससे अधिक अमेरिका 43 और यूके 2.88 लाख सीक्वेंस साझा कर चुका है। दुनियाभर के देशों ने अब तक इस मंच पर 1,43,68,302 जीनोम सीक्वेंस साझा किए हैं।
क्या है जीनोम सीक्वेंस
दरअसल, जीआईएसएआईडी एक अंतरराष्ट्रीय मंच है, जहां अलग-अलग देश कोरोना के सीक्वेंस साझा करते हैं। इसी मंच की सहायता से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य महामारी विशेषज्ञ वायरस के नए-नए स्वरूपों के बारे में जानकारी एकत्रित कर पा रहे हैं। ये मंच 10 जनवरी 2020 में शुरू किया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, बीते 30 दिन के दौरान दुनिया में किए गए 75 फीदी जीनोम सीक्वेंस में जितने भी एस जीन म्यूटेशन मिले हैं, वह सभी भारत में मौजूद हैं। एस जीन म्यूटेशन ही किसी वायरस की आनुवांशिक स्थिति में बदलाव का कारण होते हैं और जन स्वास्थ्य के लिहाज से यह आपात स्थिति भी पैदा कर सकते हैं। भारत के जीनोम एक्सपर्ट डॉ. विनोद कुमार का कहना है कि किसी भी वायरस का तोड़ निकालने के लिए उसकी आनुवांशिक संरचना का पता होना बहुत जरूरी है। इससे हम पता लगा सकते हैं कि आखिर उसका कैसा व्यवहार है? जब तक इन बातों का पता नहीं चलता है तब तक जांच, इलाज, टीका किसी की खोज नहीं हो सकती है। इसलिए जीनोम सीक्वेंस पर इतना जोर दिया जा रहा है क्योंकि अब तक हम जितने भी वैरिएंट के बारे में जानते हैं वह सभी इनके जरिए मुमकिन हो पाया है।