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लंबित कॉलेजियम सिफारिशों पर सुप्रीम कोर्ट की सरकार को दो टूक

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि न्यायमूर्ति की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशें अधर में नहीं रह सकतीं। कोर्ट ने कहा कि सरकार को उन्हें अनिश्चित काल तक रोकने की बजाय उन नियुक्तियों को अधिसूचित करना चाहिए या विशिष्ट आपत्तियों का हवाला देते हुए उन्हें वापस भेजना चाहिए।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों के लिए नौ नाम हैं। उन्हें पिछले कुछ महीनों में नए सिरे से भेजा गया था। पीठ ने कहा, या तो उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए या अगर सरकार को कुछ कहना है, तो उन्हें आपत्तियों के साथ वापस भेजा जाना चाहिए। यह अधर में लटका नहीं हो सकता। नाम अनिश्चित काल तक आपके पास क्यों पड़े रहे?

पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि शीर्ष अदालत को इस संबंध में निर्देश जारी करना पड़े। पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया भी शामिल थे। पीठ ने नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा अत्यधिक देरी के खिलाफ शिकायत करने वाली एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि इस अदालत के फैसले में उल्लिखित प्रक्रियाएं और इसमें निर्धारित समय-सीमा अपने आप काम करनी चाहिए। इसे इस अदालत द्वारा किसी भी निगरानी की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। पीठ ने अप्रैल 2021 के फैसले का जिक्र अपने आदेश में किया। इस फैसले में सरकार को नामों पर कार्रवाई करने के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की गई थी।

पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की नौ सिफारिशें कई महीनों से केंद्रीय कानून मंत्रालय के पास बिना किसी इनपुट के लंबित हैं। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को आश्वासन दिया कि वह इस मुद्दे पर गौर करेंगे और 20 अक्टूबर को समाधान लेकर आएंगे जब मामले की अगली सुनवाई होगी।

उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अनुशंसा करने के बाद यह सूची केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेजी जाती है, जो इसे शीर्ष अदालत को भेजता है। इसके बाद शीर्ष अदालत कानून मंत्रालय को अपनी अंतिम अनुशंसा भेजने से पहले उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों के बारे में संबंधित उच्च न्यायालयों से पदोन्नत किए गए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श लेता है।

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