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स्वर्ग से देवता भी आते हैं कुंभ मौनी अमावस्या पर स्नान करने

ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली

पौराणिक ग्रंथों एवं शास्त्रों की माने तो प्रत्येक वर्ष माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को प्रयागराज की पावन भूमि पर पवित्र गंगा नदी में स्नान एवं दान का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी भी मान्यता है कि माघ महीने में देवगण अदृश्य रूप में स्नान करने पहुंचते हैं । महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि माघ महीने में समस्त तीर्थ एवं देव गण प्रयागराज के भूमि पर एकत्र हो जाते हैं। ऐसे में जो मनुष्य प्रयागराज की संगम में स्नान करके जप, तप, बयज्ञ, हवन, दान पुण्य करता है, वह निष्पाप होकर स्वर्ग लोक का अधिकारी बन जाता है । सामान्यतया माघ मास की अमावस्या तिथि के दिन गंगा स्नान करने से परम पुण्य की प्राप्ति होती है। उसमें भी यदि अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ एवं महाकुम्भ की स्थितियां बन जाए तो इसके महत्व में कई गुना वृद्धि हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि मनुष्य के द्वारा जाने अनजाने में किए गए पूर्व के सभी पापों से मुक्ति गंगा यमुना एवं अदृश्य सरस्वती नदी में स्नान करने से हो जाता है।

माघ मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को ही मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। मौन शब्द से मौनी बना है जिसका तात्पर्य होता है शांत रहना, मौन रहना आंतरिक रूप से ईश्वर एवं अपने ईष्ट देव का ध्यान करना । इस दिन अमावस्या तिथि में मौन रहते हुए पश्चिम वाहिनी गंगा नदी में स्नान करके जप, तप, यज्ञ, हवन, भजन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।

स्कन्द पुराण में कहा गया है-
सहस्त्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोटि कुम्भ स्नानेन तत्फलम् ।।
अश्वमेघ सहस्राणि वाजपेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भ स्नानेन तत्फलम्॥

‘कार्तिक मास में एक हजार स्नान, माघ मास के सौ स्नान, वैशाख के करोड़ों स्नानों का फल कुम्भ के एक स्नान के फल के बराबर होता है।’ इस प्रकार महाकुम्भ पर्व के समय मौनी अमावस्या के शुभ संयोग में गंगा स्नान से निवृत्त होकर ईष्ट देव के साथ-साथ पितरों का तर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन व्रत करने से परिवार के अभी सदस्यों के सुख शांति में वृद्धि के साथ-साथ पुत्री और दामाद की आयु बढ़ती है।

श्री विष्णु पुराण के अनुसार कुंभ पर्व की महत्ता श्रेष्ठ एवं अतुलनीय है क्योंकि समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से अमृत को पीने के लिए असुरों एवं देवताओं में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। ऐसे में इंद्र देव के आदेश पर उनके पुत्र जयंत दानवों से अमृत कलश को छीनकर स्वर्ग लोक की ओर भागने लगे। ऐसा होते देख सभी दानव जयंत का पीछा करने लगे। तब अमृत कलश को बचाने के लिए चार ग्रह सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति तथा शनि देव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दैत्यों तथा देवताओं के मध्य अमृत कलश के लिए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदे धरती पर चार जगह हरिद्वार, नासिक, उज्जैन तथा प्रयागराज में गिर गयीं । इसी कारण से इन चार जगहो पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। वह भी तब जब चार ग्रह सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति और शनि देव की विशेष स्थितियां होती हैं। प्रयागराज के संगम तट पर प्रत्येक 12 वर्षों के बाद पूर्ण कुंभ की स्थिति तब बनती है, जब देवगुरु बृहस्पति वृष राशि में तथा सूर्य देव का गोचर मकर राशि में होता है।

श्री विष्णु पुराण में प्रयाग कुंभ का वर्णन इस प्रकार मिलता है-
“मकरे च दिवा नाथे वृषे च बृहस्पतौ।
कुम्भ योगो भवेतत्र प्रयागे ह्यती दुर्लभ:।”
अर्थात कहा गया है कि जब मकर राशि मे सूर्य एवं वृष राशि मे देव गुरु बृहस्पति का गोचर होता है। तब अत्यंत दुर्लभ योग कुम्भ का निर्माण होता है। आगे श्री विष्णु में ही कहा गया है।
“माघे वृष गते जीवे मकरे चंद्र भास्करौ।
अमावस्याम यदयोग: कुम्भाख्यस्तर।।”


कुम्भ योग में अमावस्या तिथि का सुबह संयोग तब होता है। जब अर्थात जब वृष राशि मे बृहस्पति गोचर करते हैं तथा मकर राशि में सूर्य और चंद्रमा गोचर करते हैं। तब कुम्भ में अमावस्या का योग बनता है। इस वर्ष महाकुम्भ पर्व के दौरान सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति के साथ शुक्र तथा शनि का सुंदर एवं पुण्य दायक योग बन रहा है। मौनी अमावस्या के दिन देवगुरु बृहस्पति वृष राशि में गोचर करेंगे, सूर्य एवं चन्द्रमा का गोचर मकर राशि में हो रहा होगा। चंद्रमा तथा सूर्य पर देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि पड़ेगी तथा शनि देव अपनी स्वराशि कुंभ में विद्यमान रहकर अपना पूर्ण फल प्रदान करेंगे तथा शुक्र अपनी उच्चाभिलाषी स्थिति में रहकर इस दिन की महत्ता को अत्यंत बढ़ाने वाले होंगे। यह सभी इस दिन बनने वाले यह सभी दुर्लभ योग परम पुण्य दायक साबित होंगे।

इस वर्ष माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि 28 जनवरी दिन मंगलवार की रात में 7 बजकर 10 मिनट से आरंभ होगा जो 29 जनवरी दिन बुधवार को रात में 6 बजकर 28 मिनट तक व्याप्त रहेगा। उत्तराषाढ़ नक्षत्र प्रातःकाल 8 बजकर 40 मिनट पश्चात श्रवण नक्षत्र व्याप्त रहेगा। सिद्धि योग सम्पूर्ण दिन और रात को 10 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। बुधवार के दिन अमावस्या होने से प्रजा जनों के लिए शुभप्रद एवं कल्याण कारक होगा। इस प्रकार 29 जनवरी दिन बुधवार को मौनी अमावस्या का स्नान सूर्योदय पूर्व से आरंभ होकर संपूर्ण दिन सायं काल 6 बजकर 28 मिनट तक चलता रहेगा।

(लेखक उत्थान ज्योतिष संस्थान प्रयाग के निदेशक हैं)

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