इंफाल : मणिपुर में हिंसा की खबरें अब भी आए दिन आती रहती हैं। इसी बीच अटकलें हैं कि मणिपुर में नेतृत्व परिवर्तन भी हो सकता है। एन बीरेन सिंह सरकार के ही विधायकों के दिल्ली पहुंचने के बाद इस तरह के कयास और भी तेज हो गए हैं। हालांकि सीएम बीरेन सिंह ने इस तरह के कयासों को कोरी अफवाह बताते हुए खारिज किया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के चलते इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं। हालांकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि उनके कुछ विधायक दिल्ली पहुंचे हैं। उनका दावा है कि मणिपुर में जातीय हिंसा के समाधान के लिसए वह बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व के नेताओं से मुलाकात करने गए हैं।
कुछ दिन पहले रिपोर्ट आई थी कि मणिपुर सरकार में सहयोगी नागा पीपल्स फ्रंट, नेशनल पीपल्स पार्टी और जेडीयू मुख्यमंत्री पर इस्तीफे का दबाव बना रहे हैं। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि बीजेपी नेतृत्व के इस बात कि लिए मनाने के प्रयास कई बार हो चुके हैं कि एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए और नया मुख्यमंत्री बनाया जाए। 2017 में वह मणिपुर के मुख्यमंत्री बने थे। वहीं पिछले साल 3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू हुई।
इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मणिपुर में नुकसान भी उठाना पड़ा। यहां दोनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। शुक्रवार को मुख्मंत्री और उनके सहयोगी दलों के बीच बैठक हुई थी। बता दें कि राज्य की कुल 60 सीटों में से 53 एनडीए के पास हैं जिनमें से 37 बीजेपी के ही पास हैं। बैठक में निर्णय लिया गया था कि मणिपुर में शांति स्थापित करने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
बीरेन सिंह ने कहा था, मैं खुद दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलना चाहता हूं। हालांकि वर्तमान में संसद का सत्र चलने की वजह से थोड़ी मुश्किल आ रही है। मैंने सोचा कि अभी क्यों डिस्टर्ब किया जाए। मैंने कहा कि जब भी बैठक होगी मैं जाऊंगा। लेकिन कुछ लोग पहले ही पहुंच गए। इसका इस्तीफे से कोई लेना देना नहीं है। कल की बैठक में 35 विधायक मौजूद थे और हमने ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी का आभारी हूं कि अगले 100 दिन के कामकाज में मणिपुर को प्राथमिकता दी गई है।
मणिपुर के एक मंत्री ने ही दावा किया था कि पिछले साल जून में मुख्यमंत्री ने लगभग इस्तीफा दे ही दिया था। वह अपना त्यागपत्र लेकर राजभवन पहुंच गए थे। लेकिन तभी उनके आवास के बाहर उनके समर्थन में महिलाओं ने मानव श्रृंखला बनाई। इसके बाद उन्होंने फैसला बदल लिया। बताया गया कि उनका त्यागपत्र दो मंत्रियों ने छीन लिया और फाड़ दिया। वे चाहते थे कि बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहें। बता दें कि मणिपुर की हिंसा में अब तक 200 से ज्यादा की मौत हो गई है। वहीं 50 हजार लोगों को घर बार छोड़ना पड़ा।
नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट के बीच शुक्रवार को मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पत्रकारों से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि पिछली रात उनकी एनडीए सहयोगियों के साथ बैठक हुई थी। इस दौरान यह निर्णय लिया गया कि मणिपुर में स्थायी शांति के लिए एक ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा जाएगा। बता दें कि एनडीए सहयोगियों के पास राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 53 सीटें हैं। वहीं, अकेले भाजपा के पास 37 सीटें हैं।
मणिपुर की स्थिति को विपक्ष द्वारा एक बार फिर जोरदार तरीके से उठाया गया है, जिसे सभी उम्मीदों को झुठलाने और भाजपा को न केवल 370 लोकसभा सीटों के लक्ष्य से, बल्कि 272 के बहुमत के आंकड़े से भी पीछे रोकने में कामयाब होने के बाद एक नई आवाज मिल गई है। लोकसभा में इंडिया गठबंधन के अब 232 सदस्य हैं और भाजपा के पास 240 सदस्य हैं, जबकि सहयोगी दलों के पास एनडीए के 293 सदस्य हैं।
जून 2023 में, जब सरकार पर दबाव चरम पर था, तब मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने लगभग पद छोड़ दिया था। इस दौरान एक मंत्री ने भी दावा किया था कि सीएम अपना इस्तीफा लेकर गवर्नर हाउस के लिए निकल चुके हैं। हालांकि, सीएम इंफाल में उनके आवास के बाहर एकत्र हुईं सैकड़ों महिला समर्थकों के चलते वापस लौट आए थे। इस दौरान यह दावा भी किया गया था कि दो मंत्री जी सिंह को सीएम बने रहना देखना चाहते थे, उन्होंने इस्तीफा छीनकर फाड़ दिया था।