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पृथ्वी दिवस का महत्व व कोरोना महामारी से पर्यावरण पर प्रभाव: डॉ० भरत राज सिंह

डॉ० भरत राज सिंह

बाराबंकी (उमेश यादव/राम सरन मौर्या) : 22 अप्रैल को विश्व भर में पृथ्वी दिवस मनाया जाएगा।पृथ्वी पर वायु,जल,मृदा,ध्वनि सहित तमाम प्रकार के प्रदूषणों पर रोकथाम लगाने के लिये दशकों से जारी है।लखनऊ के स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज के महानिदेशक-तकनीकी व विख्यात पर्यावरणविद डॉ० भरत राज सिंह बताते है कि 22 अप्रैल,1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका में पहला पृथ्वी दिवस पर्यावरण संरक्षण के रूप में दुनिया भर में मनाया गया।जिसमें लगभग 20 मिलियन से अधिक लोग स्वच्छ और सुरक्षित रहने वाले पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए रैलियों, प्रदर्शनों और गतिविधियों में भाग लेने के लिए एकत्र हुए और इस प्रयास के लिए धन्यवाद के साथ पर्यावरण संरक्षण एजेंसी की स्थापना की गई थी। इसके अलावा, स्वच्छ वायु अधिनियम, स्वच्छ जल अधिनियम और लुप्तप्राय प्रजातियां अधिनियम सभी पेश किए गए और पारित किए गए। यह पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए आमूल परिवर्तन की शुरुआत थी जो दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष कार्य है ।

पृथ्वी दिवस के अवसर पर विश्व भर में पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव हेतु छोटे बच्चों को भी यह एहसास दिलाने आवश्यकता है कि वे पृथ्वी की रक्षा करने में भाग ले और इसे सुरक्षित बनाने हेतु, जल संरक्षण, पुनर्चक्रण और ऊर्जा की बचत, पर्यावरण की रक्षा में योगदान करे ।

विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित 20-शहरों में से भारत के 10- शहरों जिनमें लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, गाजियाबाद, आगरा जैसे उत्तर-प्रदेश के ही 7-शहर है, जिसमें भारत की राजधानी दिल्ली भी उनमें से एक है। आज कोविड-19 के संक्रमण की वैश्विक महामारी के दौरान लाक-डाउन से वाहनों के आवागमन रुकने व निर्माण कार्यो के ठप होने से प्रदूषण में अप्रत्याशित कमी आई है और आसमान नीला दिखने लगा है तथा कई लोग पहली बार हिमालय पर्वत स्पष्ट रूप से देख रहे हैं।

COVID-19 महामारी दुनिया भर के देशों पर कहर बरपा रही है, जिसके कठोर अवरोध से अर्थव्यवस्था की गतिविधि को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जहाँ COVID-19 महामारी प्रकोप से दुनिया भर के देशों पर वैश्विक स्वास्थ्य संकट पैदा हुआ है वहीं पृथ्वी के पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है, क्योंकि राष्ट्र लोगों के आवागमन को प्रतिबंधित करते हैं।

वैज्ञानिकों में एक बड़ा मतांतर देखा जा रहा है, जो हवा की गुणवत्ता से निहित है। ऐसा लगता है कि महामारी से काफी प्रभावित देशो में वायु प्रदूषण में भारी कमी आ रही है – जैसे कि चीन, इटली, स्पेन, अमेरिका आदि जहां उद्योग, विमानन और परिवहन के कारण पर्यावरण को पीसते रहें हैं।

1. वायु प्रदूषण में काफी गिरावट

दुनिया के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट आई है- जैसे उपग्रहों के डेटा ने नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2) जैसी प्रदूषणकारी गैसों में महत्वपूर्ण गिरावट दिखाई है।

2. पानी एक बार फिर साफ हुआ है

दुनिया भर के कई देश न्यूयॉर्क में कार्बन डाइऑक्साइड जैसे वायु प्रदूषकों में 5- से 10% की गिरावट आई है। मीथेन उत्सर्जन में भी काफी गिरावट आई है। 35% के क्षेत्र में कुछ अनुमान के साथ, ट्रैफ़िक का स्तर भी काफी नीचे है। कार्बन मोनोऑक्साइड के उत्सर्जन में भी 50% की कमी आई है।
3. विमानो के बंद होने सें वायु प्रदूषण में गिरावट आयी है।हवाई यात्रा में उल्लेखनीय कमी होने से पर्यावरण पर एक और दिलचस्प प्रभाव पड़़ा है। पिछले तीन महीनों में 67 मिलियन कम यात्रियों ने उड़ान भरी है ।

4. कोयला दहन में कमी आने से प्रदूषण उत्सर्जन में गिरावट आयी है

कोरोना वायरस के परिणामस्वरूप पर्यावरण पर एक और प्रभाव कोयले की खपत में गिरावट से हुआ है। 2019 की ऊर्जा जरूरतों के लिए इसमें लगभग 59% कमी आई है । इसके विपरीत, वाणिज्यिक या शैक्षिक भवनों में लोगों की संख्या कम हो जाने से उनकी ऊर्जा की खपत चौथाई से 30% तक कम होनी चाहिए। एयरबॉर्न पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर मार्च की शुरुआत से मार्च के अंत तक 36% तक गिर गया है।

5. भारत में वायु गुणवत्ता में सुधार:

पूरे देश ने 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ मनाया, देश भर में वायु प्रदूषण के स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट आई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण 22 मार्च को दोपहर 1 बजे 126 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो और दिनो के सापेक्ष लगभग आधा था । हालांकि, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और औद्योगिक गतिविधियों को बंद करने के बावजूद गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा और नोएडा में प्रदूषण का स्तर ‘खराब’ और ‘मध्यम’ स्तर पर रहा। कोलकाता ने वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया। पश्चिम बंगाल में दिन के दौरान शहर के सभी स्वचालित हवाई निगरानी स्टेशनों में पीएम 2.5 वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘संतोषजनक’ था।

निजी वाहनों की कमी, अन्य गैर-जरूरी परिवहन, कोई भी निर्माण गतिविधि वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए योगदान कर रही है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन एक दीर्घकालिक मुद्दा बना रहता है। जब सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करेगी, तो यह संभावना है कि स्वच्छ ऊर्जा (सौर ऊर्जा) इसका अधिक से अधिक स्थान ले सकती है। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) निर्माताओं को अप्रैल और मई में रोकना बंद करना पड़ सकता है। क्योंकि चीन कुछ घटकों के लिए एकमात्र स्रोत है। वर्तमान सामान्य में, पर्यावरण संबंधी चिंताएं संपार्श्विक थीं।

भारत अब केवल तकनीकी समाधान और शमन उपायों पर निर्भर नहीं रह सकता है। यह देखा जाना बाकी है कि मौजूदा संकट का पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशीलता के साथ व्यावसायिक कार्यों में बदलाव पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा या संकट के कम होने के बाद यह हमेशा की तरह पुनः अपने ढंग से बढेगा ।

अप्रैल 2020 में दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता और लखनऊ में साफ हवा देखी गई क्योंकि वायु गुणवत्ता सूचकांक दो (2) अंकों के भीतर रहा, लखनऊ में 10 अप्रैल 2020 को एक्यूआई 60 के सापेक्ष 59 रहा । यह यह उल्लेखनीय है कि भारत वर्ष में वाहनों की संख्या 2019 तक लगभग 310 मिलियन हैं, जो 2016 में 239 मिलियन थी जिसमें लगभग 39% की बढोत्तरी दर्शाता है।यदि शासकीय वाहनों को कम कर दे तो 217 मिलियन वाहन लाकडाऊन में बंद रहे, इसके अलावा रेल, हवाई जहाज आदि अन्य परिवहन के बंद होने से प्रदूषण में 90% प्रतिशत की गिरावट आई ।इसी कारण लखनऊ व प्रदेश के अन्य शहरों में नवम्बर 2019 के सापेक्ष अप्रैल 2020 में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) निम्न तालिका में दिखाया गया है ।

क्रमांक

 शहर

15 नवम्बर 2019

08अप्रैल 2020

21 अप्रैल 2020

1

लखनऊ

467

94

97

2

कानपुर

418

154

78

3

वाराणसी

811

146

30

4

इलाहाबद

622

56

33

5

गाजियाबाद

714

155

63

6

आगरा

293

126

154

7

दिल्ली

494

117

151

 

उपरोक्त से स्पष्ट है कि लाकडाऊन के कारण प्रदूषण में अप्रत्याषित कमी आई है और पेड-पौधो में हरियाली आ गई है तथा चिडिया भी दिखने लगी है।नदियों के पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है और गंगा का पानी हरिद्वार में पीने लायक हो गया है। इसका असर जलवायु सुधार में भी दिखने लगेगा।आज जब हम सुबह–शाम घरों के बाहर खडे होते है तो शुद्ध हवा में सासें लेते है। इससे दो- बाते उभर कर आती है कि मनुष्य यदि धरती में छेड-छाड एक सीमा तक करेगा तो प्रकृति उसे अच्छे जीवन-दान देती रहेगी अन्यथा प्रकृति अपने आप ही महामारी अथवा किसी दैविक आपदा के रूप में सृष्टि में विनाश लीला के साथ जन-जीवन समाप्त कर अपने को ठीक कर लेगी । आइये इस धरती-दिवस पर शपथ लें कि मानवता की रक्षा के लिये प्रकृति का संरक्षण रखेगे ।

 

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