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आधी आबादी पर ‘लॉक’ ‘डाउन’

अशोक पाण्डेय

जानकारी ही बचाव

प्रयागराज: ‘नारी तू नारायणी’ पुरुष प्रधान देश में सिर्फ कहने के लिए एक शब्द है। आज मातृ दिवस है तो लोग सुबह से ही खूब सन्देश बधाइयां और शुभकामनाएं सोशल मीडिया पर दी जा रही हैं। कोई गीत गा रहा है तो कोई कविता लिख रहा है। क्या सच में आप महिलाओं का आदर करते हैं? क्या उन्हें अपने तरह जीवन जीने का अधिकार है? महामारी के चलते लॉकडाउन चल रहा है। ऐसी स्थिति में हमारे घरों में महिलाओं का क्या हाल है? हमने लॉकडाउन में कुछ कार्यरत महिलाओं और घरेलू महिलाओं से बात किया है।

डॉ. शिखा श्रीवास्तव

वाराणसी में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी के पद पर तैनात डॉ. शिखा श्रीवास्तव कहती हैं कि “वर्तमान परिवेश में जहां सभी लोग घरों में खुद को रोककर सुरक्षित कर लिया है। वहीं वो महिला खुद को सबसे मजबूत स्तंभ सा बना लिया है, जिसे ना कोई तनाव है, ना कोई डिप्रेशन है। वो महिला जहां सारे घर की बत्ती आॅन रह जाएगी, एसी कमरों में चलते छूट जाएंगे, दूध उबल कर नीचे गिर जाएगा, पौधों में पानी डालना कोई भूल जाएगा। पर वो ही है जो ऑफिस के काम के साथ-साथ अपने गोल दिमाग से बाकी वो सब करती जाती है। यूं हम कहे तो किसी रोबोट से कम नहीं है।”

विधु सिंह

विधु सिंह मुंबई में हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड कम्पनी में मैनेजर पद पर कार्यरत हैं। वो कहती है कि जरूरी सेवाओं में होने के नाते ऑफिस रोज जाना पड़ता है। ऐसे में सैकड़ों ग्राहकों से मिलना पड़ता है। डर रहता है पता नहीं कौन कहां से आया है। आगे कहती हैं सात महीने का हमारा छोटा बच्चा है घर में और सब लोग हैं बाहर से आने के बाद डर लगा रहता है। हम मजबूरी में नौकरी कर रहे हैं। बाकी घर का काम करना तो जरूरी ही है।”

डॉ. साधना श्रीवास्तव

उ.प्र. राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साधना श्रीवास्तव कहती हैं “यह बात सत्य है कि लॉकडाउन के दौरान महिलाओं की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। वह अपने लिए बिल्कुल समय नहीं निकाल पा रही”। आगे वह महामारी के परिपेक्ष में कहती हैं “हम सब जानते हैं कि सरकार ने मोबाइल फोन की रिंगटोन से लेकर हर वह साधन जिसे संचार हो सकता है, चाहे विज्ञापन हो समाचार पत्र हो, मीडिया हो, सोशल मीडिया हो, या व्यक्तिगत संचार के माध्यम से। संचार को ही कोरोना से युद्ध का सबसे सशक्त हथियार कहा जा सकता है। जानकारी ही बचाव है यह मूलमंत्र है।”

अर्चना श्रीवास्तव

प्रयागराज में रहने वाली अर्चना श्रीवास्तव घरेलू महिला है वो वह कहती हैं लॉकडाउन के कारण पति और बच्चे घर ही में रहते हैं। पहले पति ऑफिस जाते थे और बच्चे स्कूल चले जाते थे। घर के सभी काम निपटाने के बाद ठीक-ठाक समय बच जाता था। उसमें हम गाना सुनती थी। किताबों को पढ़ती थी। अपने सहेलियों से बात करती थी। लेकिन अब हमारे लिए बिल्कुल समय नहीं बचता है क्योंकि सारा दिन इन लोगों की फर्माइश ही पूरी करते रह जाते हैं। अब तो पता ही नहीं चलता है कि दिन और रात कब होता है। कोल्हू का बैल हो गए।”

हेमा सिंह

सेवा क्षेत्र में काम करने वाली हेमा सिंह कहती हैं कि कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है। इसका असर सभी सेक्टरों में पड़ा है लेकिन सबसे ज्यादा हम लोग परेशान हैं, हमारे जैसे जो अपना और अपने परिवार की जरूरतों के लिए घरों से ही काम करना पड़ता है। जिसमें मुझे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे- वर्क कल्चर का अभाव, अशांति, ऊपर से पता नहीं महीने की सैलरी मिलेगी कि नहीं। सुबह उठते ही हमारे दिमाग में घंटी बज जाती है। तेजी से घड़ी चलने लगती है। ढेर सारे कामों की लिस्ट होती है और इधर-उधर दौड़ कर रोबोट की तरह झटपट काम करने के लिए लग जाती हूं।”

इन सभी महिलाओं से बातचीत करने के बाद लगा कि इनका लॉकडाउन कुछ यूं ही है “नाश्ता, सफाई, बर्तन, तैयार होना, मीटिंग, मेल, टार्गेट, बच्चे की क्लासेस, लंच बनाना, बर्तन, फ़ोन, मेल, मीटिंग, टार्गेट, बच्चे का होमवर्क, रात का खाना, कल की मीटिंग”….खैर हमारे यहां महिलाओं पर ‘लॉक’ ‘डाउन’ तो कई वर्षों से है। वर्तमान समय  में भारतीय सरकारद्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम एवं योजनाओं का संचालन तो की जा रहीं हैं लेकिन इन योजनाओं का क्रियान्वयन निचले  स्तर तक उचित ढंग से न पहुँच सकने के कारण स्त्रियों को  अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह सत्य है कि वर्तमान समय में स्त्रियों की  स्थिति में काफी बदलाव आए हैं।

लेकिन फिर भी वह अनेक स्थानों पर पुरुष-प्रधान मानसिकता से पीड़ित हो रही है इस सन्दर्भ में युगनायक एवं राष्ट्रनिर्माता स्वामी विवेकानन्द का  यह कथन उल्लेखनीय  है-

”किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर  है, वहाँ  की महिलाओं की स्थिति। हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए, जहाँ वे अपनी समस्याओं को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सकें। हमें नारीशक्ति  के  उद्धारक नहीं, वरन  उनके सेवक और सहायक बनना चाहिए।  भारतीय नारियाँ संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भाँति अपनी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। इसी आधार  पर भारत के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ सन्निहित हैं। ”

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