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43 करोड़ बेहाल श्रमिकों की पीड़ा बोध के लिए असली समाजवादियों ने रखा उपवास

भुखमरी और बदहाली के लिए भारत सरकार दोषी, अपनी सजा खुद तय करे -राजनाथ शर्मा

बाराबंकी। भारत के 43 करोड़ श्रमिकों की पीड़ा से अपने को जोड़ते हुए गाँधी जयंती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं गाँधीवादी चिंतक राजनाथ शर्मा ने 10 अप्रैल को बेलहरा हाउस स्थित अपने आवास पर सुबह 9 बजे से सायंकाल 6 बजे तक एकदिवसीय उपवास रखा।

इसे लेकर बंगलुरू के 102 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दुराई स्वामी, मुम्बई के 97 वर्षीय डॉ जी.जी पारिख, प्रख्यात लेखक रामचन्द्र गुहा, कर्नाटक विधान परिषद के पूर्व उप-सभापति बी.आर. पाटिल, युसूफ मेहर अली सेंटर की महामंत्री विजया चैहान, कर्नाटक के प्रसिद्ध गांधीवादी प्रसन्ना, राष्ट्रसेवा दल के अध्यक्ष गणेश देवी, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर, लोकतन्त्र सेनानी कल्याण समिति के संयोजक धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, समाजसेवी हिम्मत सेठ और पूर्व विधायक डॉ सुनीलम आदि ने भी अपने अपने आवासों पर उपवास रखा।

गाँधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री राजनाथ शर्मा ने इसे लेकर कहा है कि कोरोना विदेश से आयातित बीमारी है। इसे विदेशों में रहने वाले लोग लेकर भारत आए। विदेश से आ रहे इन लोगों की जांच की जिम्मेदारी भारत सरकार की थी जो कोरोना की सूचना मिलने के बाद भी ट्रम्प के स्वागत में लगी रही। फिर मध्यप्रदेश में सरकार बदलने में लगी रही और इधर ध्यान नहीं दिया।

श्री शर्मा ने कहा है कि भारत सरकार को अपनी इस गलती को स्वीकार करना चाहिए और अपने लिए सजा खुद तय करनी चाहिए। खुद नहीं तय करेगी तो कल जनता करेगी।

श्री राजनाथ शर्मा ने कहा कि स्थिति बिगड़ने के बाद बिना किसी योजना को सरकार ने पूर्णबन्दी घोषित कर दी। इसकी वजह से देश का 43 करोड़ मेहनतकश भुखमरी के कगार पर पहुँच गया है। उन्होंने कहा है कि इस विषम परिस्थिति में हम और कुछ कर नहीं सकते, इसलियर उनकी पीड़ा का स्वतः बोध करने के लिए आज का यह उपवास रखा गया।

श्री राजनाथ शर्मा ने कहा है कि भारत में कोरोना की दस्तक जनवरी में ही उजागर हो चुकी थी। विपक्ष ने इसकी तरफ भारत सरकार का ध्यान भी आकर्षित किया गया लेकिन बहुमत के अहंकार में भारत सरकार ने इस महामारी को लेकर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया। जिसकी कीमत अब 130 करोड़ लोगों को चुकानी पड़ रही है। इसमें 43 करोड़ भुखमरी की चपेट में हैं।

श्री शर्मा ने कहा कि पूर्णबन्दी का सबसे मारक असर बेघर लोगो, प्रवासी मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों, ठेका मजदूरों, निर्माण मजदूरों, दैनिक मजदूरों पर पड़ा है। उन लोगों पर पड़ा है, जो रोज कमाने खाने या मामूली पगार पर जीने वाले हैं। पूर्णबन्दी की वजह से इनकी रोजी रोटी के स्रोत समाप्त हो गए। अचानक हुई बन्दी से करोड़ों मजदूर जैसे तैसे रोते बिलखते गांव लौट आए, लाखों रास्ते में फंस गए। इन लोगों के पास अब आय का कोई साधन नहीं है। सरकार ने राशन देने और बैंकों मे सहायता राशि डालने की घोषणा की है लेकिन जिन लोगों के कार्ड बने नही है, उन्हें राशन भी नही मिल पा रहा है।

श्री शर्मा ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों तथा वर्तमान केन्द्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों के गांव वापसी की कोई योजना नहीं बनायी। सरकार सिर्फ अन्त्योदय की बात प्रचार प्रसार में करती है, जबकि असल में अन्त्योदय को रेखांकित करने का काम नहीं किया गया। उन्होंने कहा है कि यदि गांवों में कुटीर उद्योग के संचालन पर केन्द्र सरकार की नियति साफ होती तो भुखमरी वाली स्थिति नहीं पैदा होती।

श्री शर्मा ने कहा कि जरूरतमंदों व गरीब मजदूरों को रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था सुनिश्चित करना सरकारों का कर्तव्य था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सरकारों में पूंजीपतियों का हमेशा वर्चस्व रहा है जो आज भी है। इसकी वजह से डाक्टर राममनोहर लोहिया ने जिस समाजवाद का सपना देखा था, वह भारतीय संविधान तक ही सीमित रहा है। पूर्णबन्दी घोषित करते समय सरकार को इससे पैदा होने वाली स्थितियों पर भी विचार करना चाहिए था जो नहीं हुआ जिसकी वजह से 43 करोड़ श्रमिक भूखमरी की चपेट में हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए हमें विकास की वर्तमान अवधारणा को बदलने का सुनियोजित संगठित प्रयास करना होगा।

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