टेक्नोलॉजीस्तम्भ

सोशल मीडिया के बढ़ते खतरे

डाॅ. रमेश ठाकुर

 समूचा सोशल मीडिया अश्लील सामग्री से पटा पड़ा है। फेसबुक का वीडियो वाला विंडो खोलते ही अश्लील साहित्य, पोर्न फिल्म, चित्र दिखने लगते हैं। उन्हें देखकर शर्मिंदगी भी महसूस होती है। सबसे बड़ी बात ये है, वह सामग्री ग्राहकों पर ज़बरदस्ती थोपी जा रही है। यूजरों के लाइक, फाॅलो व शेयर करने के बिना ही प्रस्तुत हो जाती है। फेसबुक व यूट्यूब सोशल मीडिया के ऐसे प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं, जिनसे देश की बड़ी आबादी जुड़ी है। मौजूदा वक्त में हर वर्ग फेसबुक इस्तेमाल कर रहा है। अगर आपने गौर किया हो तो लाॅकडाउन के बीच और उसके बाद से ही फेसबुक पर अश्लील चित्रों-वीडियो की भरमार है। फेसबुक पर वीडियो वाले ऑपशन्स को टच करते ही अश्लील फोटोज व वीडियो अपने आप चलने लगते हैं, जबकि ग्राहक न लाइक करता है और न ही फाॅलो।

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सोशल मीडिया पर अश्लीलता की जड़ें आज इस कदर फैल चुकी हैं जिन्हें काटना मुश्किल है। पुलिस थानों में पंजीकृत होते यौन अपराधों में कम उम्र के युवाओं की संलिप्तता भयाभय करती है। फेसबुक पर उडे़ली जा रही अश्लील लघु फिल्मों को देखकर युवा गलत रास्तों पर चल पड़े हैं। हैदराबाद का हालिया एक केस जिसमें पंद्रह वर्ष के लड़के का कबूलनामा हमें सोचने पर मजबूर करता है, आखिर हम किस राह पर निकल पड़े हैं। आरोपी लड़के ने रिश्तेदार की लड़की से ही दरिंदगी की। उसने बताया घटना को अंजाम देने से पहले उसने सोशल मीडिया पर अश्लील फिल्म देखी, उसके बाद उसने वैसा ही करने को ठानी। सोशल मीडिया पर परोसी जाने वाली गंदगी से किशोरों के मन पर बहुत ख़राब असर पड़ता है।

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कोविड-19 के दौर में इस तरह की कई घटनाएँ सामने आई हैं जिसमें सोशल मीडिया की अश्लील सामग्री देखने के बाद युवाओं ने जघन्य अपराधों को अंजाम दिया। समय की मांग यही है कि सोशल मीडिया से अश्लील सामग्री को पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाए। इस गंदगी के खिलाफ समाज को भी उसे नकारने के लिए संकल्पित होना होगा। ऐसे वीडियो को देखते ही उसकी रिपोर्ट फेसबुक को करें। ताकि फेसबुक इसका प्रसारण बंद करने पर मजबूर हो। नहीं तो इसकी लत में आकर छोटी उम्र के बच्चे अपना जीवन और चरित्र दागदार करते रहेंगे। एक बलात्कार की घटना घटने पर हमारे भीतर जितना रोष उत्पन्न होता है, उतना ही आक्रोश हमें सोशल मीडिया की गंदगी पर होना चाहिए। अश्लीलता के मुख्य कारणों पर प्रहार करना होगा।

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भारत में स्मार्टफोन का बाजार बड़ा विस्तार ले चुका है। हर किसी के हाथ में एन्ड्रॉयड फोन पहुंच गया है। दरअसल, इस विस्तार के पंख तब लगे, जबसे मोबाइल इंटरनेट की दरें कम हुई हैं। मात्र दस-पंद्रह साल के नासमझ बच्चे वर्चुअल डेटिंग का शिकार हैं। कोरोनाकाल में ऑनलाइन पढ़ाई की आड़ में ये सब और आम हो गया है। देश का हर वह चौथा बच्चा जो दस-बारह साल का है, उसका एकाउंट फेसबुक पर है। पढ़ने-लिखने और करियर बनाने की उम्र में ही बच्चे अश्लील सामग्री की ओर आकर्षित हो रहे हैं। बच्चों में अश्लील सामग्रियों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। परिजनों को भी पता है कि उनका बच्चा बिगड़ रहा है, लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है।

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इस समस्या पर केंद्र सरकार को दखल देना होगा, तत्काल प्रभाव से अंकुश लगाने के प्रभावी उपायों पर विचार करना होगा। इंटरनेट का इस वक्त जमकर दुरुपयोग हो रहा है। टेलीकाॅम कंपनियों की हालिया रिपोर्ट बताती है कि मोबाइल डाटा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा लोग अश्लील वीडियो के देखने में खर्च करते हैं। अब प्रत्येक घर में मोबाइल, इंटरनेट की सुविधा है। घर के बड़े-बुजुर्ग इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते कि उनका बच्चा इंटरनेट पर आखिर कर क्या रहा है। कई मर्तबा बच्चे इंटरनेट पर पोर्न साइट्स देखते भी पकड़े गए हैं। बच्चों में सेक्स गेम्स का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। इससे वह बच्चा उम्र से पहले ही दहलीज लांघ रहा है।

सोशल मीडिया के बढ़ते खतरे

आजकल बच्चे अपनी बोलचाल में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं जो कई बार हम सोचने पर भी मजबूर हो जाते हैं। ग़ौरतलब है मोबाइल ग्राहकों की संख्या जितनी बढ़ेगी और जितना जीबी डाटा रोजाना खर्च होगा, उतना ही फायदा सरकारों और टेली कंपनियां को होगा। मोबाइल यूजरों की संख्या भारत में जिस गति से बढ़ रही है, अगले पांच सालों में चीन को भी पछाड़ देगी। हमारे यहां मोबाइल का डाटा अन्य देशों के मुकाबले सस्ता है। अश्लील सामग्रियों की तरफ आकर्षित होने का एक कारण यह भी है। यही डाटा अगर महँगा हो जाए तो लोग बेवजह डाटा खर्च करने से कतराएंगे। ज़िम्बाब्वे की तरह महँगा होना चाहिए। क्योंकि संसार भर में सबसे महँगा इंटरनेट डाटा ज़िम्बाब्वे में ही है। वहां एक जीबी डाटा के लिए ग्राहक को 75.20 अमेरिकी डॉलर यानी 5,270 रुपए देने पड़ते हैं। वहीं, महंगे इंटरनेट के मामले में इक्वेटोरियल गिनी और सेंट हेलेना दूसरे और तीसरे नंबर पर है। जहां 50 अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का भुगतान करना पड़ता है। कोई भी विधि अपनाएं, इस समस्या पर विराम लगाना अतिआवश्यक हो गया है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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