सवर्ण अफसरशाह बनाम पिछड़ा किसान !!
स्तंभ: सोनिया—कांग्रेस तथा ममता—कांग्रेस (तृणमूल) और 15 अन्य राजनैतिक दलों के सर्वसम्मत प्रत्याशी यशवन्त सिन्हा को राष्ट्रपति बनने में दुतरफा बाधा आ गयी है। कल से (23 जून 2022) एक और उम्मीदवार आ रहें जो हैं । एक कृषिजीवी है, गोपालक भी, आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू के अलावा। यूं भी यशवंत सिन्हा विजयोन्मुखी उम्मीदवार तो है नहीं । सत्तारुढ भाजपा और उसकी हमसफर पार्टियां मजबूत संघर्ष में तो हैं ही।
यह तीसरा प्रतिस्पर्घी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकसभाई नगरी वाराणसी से सटे हुये चंदौली क्षेत्र का है। गंगा के दक्षिणपूर्वी दिशा में स्थित चंदौली 1957 (दूसरे लोकसभा) निर्वाचन मशहूर हुआ था। जब नेहरु—कांग्रेस के प्रत्याशी ठाकुर त्रिभुवन नारायण सिंह थे जो बाद में 1967 में यूपी के संविद सरकार में मुख्यमंत्री भी रहे थे। तो आज राष्ट्रपति पद हेतु यहीं के किसान कलानी गांव (इलिया क्षेत्र) के वासी विनोद कुमार यादव है। अपनी जीत से आश्वस्त हैं क्योंकि दैवी संदेश पाकर ही वे चुनाव में उतर रहे है। काशी में मीडिया को यादवजी ने बताया कि साक्षात भोलेशंकर, त्रिपुरारी, महादेव त्रिशूल धारी नंदी पर सवार उनके सपने में आये और वरदान दिया कि भारत के उच्चतम पद पर तुम आसीन होगे। यादव को एक बड़े यादव का सपना भी याद आया। यूपी विधानसभा के विगत निर्वाचन के दौरान यदुवंशी, गोपिकावल्लभ, द्वारकाधीश, वासुदेव श्रीकृष्ण ने अखिलेश यादव को स्वप्न में बता दिया कि वे ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे।
अर्थात गोरखपुर के नाथ संप्रदाय के मुखिया योगी आदित्यनाथ विजयी नहीं होंगे। विनोद यादव ने पत्रकारों में कहा कि ‘ वह शनिवार (25 जून) को संसद भवन जाकर नामांकन दायर करेंगे। प्रधानमंत्री से भाजपा के उम्मीदवार बनाने का अनुरोध भी करेंगे ताकि वह दमदारी के साथ चुनाव लड़ सकें और राष्ट्रपति चुने जाने के बाद खुशी-खुशी अपने घर चंदौली वापस आ सकें। विनोद कुमार यादव ने कहा कि वह किसान के बेटे हैं और 10वीं तक की पढ़ाई किए हुए हैं। विनोद यादव ने बताया कि वह वर्ष 2005-06 से चुनाव लड़ना शुरू किए थे। उन्होंने ब्लाक सदस्य, ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ा। हालांकि किसी भी चुनाव में उन्हें जीत नहीं मिली। इस बार चूंकि महादेव स्वयं सपने में आए और उन्होंने कहा कि महामहिम वाला भी चुनाव लड़ लो।” अत: ईश्वरीय आज्ञा का पालन करते हुए वह तैयार हो गए हैं। चुनाव लड़ने के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, गोवा, दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के सांसदों से उनकी बात चल रही है। सभी ने आश्वस्त किया है कि वे चुनाव लड़ें तो वह सहयोग करेंगे।
किन मुद्दों के आधार पर लड़ेंगे ? विनोद यादव ने कहा कि आजकल जनता बहुत त्रस्त है। कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनके समाधान के लिए वे चुनाव लड़ना चाहते हैं। 15 साल की लड़कियों को पढ़ने-लिखने के लिए नि:शुल्क फीस होना चाहिए। सभी प्राइमरी स्कूल में इंग्लिश के दो-दो शिक्षक हों। हर गांव में ट्यूबवेल लगे ताकि किसानों को सिचाईं में दिक्कत न हो। लड़की की शादी हो तो सारा खर्च लड़के वालों को उठाना चाहिए। विनोद यादव की समता स्थानीय लोग कर करते हैं काशी के ही पुराने उम्मीदवार नरेन्द्रनाथ दुबे ”धरती पकड़” से जिनका हाल ही में निधन हुआ। दुबेजी भी विधानसभा, विधान परिषद, संसद और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग ले चुके हैं। उनका नामांकन 2012 के चुनाव में करीब पचास सांसदों ने किया था जो बड़ा राष्ट्रीय समाचार बना था। हालांकि बाद में सारे हस्ताक्षर जाली पाये गये थे।
इस समूचे चुनावी अभियान में गंभीरता वाला बिंदु यह है कि यशवंत सिन्हा को यही आभास है कि उन्हें भारत के प्रधान न्यायाधीश जुलाई के अंत में राष्ट्रपति भवन का अध्यासी नियुक्त कर देंगे। अपनी विपक्षी को यह झारखण्डी राजनेता कमजोर ही समझ रहा है, ममता बनर्जी और सोनिया गांधी की तरह। अर्थात अब यह सोलहवें राष्ट्रपति का चुनाव बड़ी जनरुचि से भरी लड़ाई हो गयी। सवर्ण अफसर के रुप में सिन्हाजी चार पार्टियों के सदस्य रह चुके है। कभी किसी जनसंघर्ष में नहीं रहे। बल्कि आमजन से कभी भी कोई सरोकार ही नहीं रहा। तुलनात्मक रुप से विनोद यादव गांववालों को दूध—घी सप्लाई करता रहा। उनके दुख—सुख में साथ रहा। चंदौली पूर्वांचल धान का कटोरा कहा जाता हे। शेरशाह सूरी और जलालुद्दीन अकबर के राजस्व मंत्री रहे राजा टोडामल खत्री ने यहीं के हेतमपुर में किला बनवाया था। आयु से युवा, विनोद यादव, 84—वर्षीय यशवंत सिन्हा तथा 64—वर्षीया द्रौपदी मुर्मू से कही अधिक कार्यक्षमता के धनी हैं।
यशवंत सिन्हा के क्षेत्र में द्वादश ज्योर्तिलिंग में एक देवघर पड़ता है। वैद्यनाथ धाम यहीं हैं। सिन्हा साहब के समर्थकों ने उनसे वैद्यनाथ धाम की तीर्थ यात्रा जरुर सुझाया होगा। उनके ऐसा करने से विनोद यादव के सपने में प्राप्त शिव का वरदान कमतर हो सकता है। सिद्धौर राजवंश ने संथाल परगना में बाबा वैद्यनाथ मंदिर बनवाया था। यहां स्वयंभू लिंग है। यशवंत सिन्हा इसी क्षेत्र (डुमका) के जिलाधिकारी रह चुके है। पर कठिनायी यह है कि बाबा वैद्यनाथ के आराधक संथाल जनजाति वाले ज्यादा है। द्रौपदी मुर्मू संस्थाली हैं। मतलब यही कि लौकिक मतदान पर दैवी वैजनाथ धाम की कृपा भी आदिवासी के पक्ष में जायेगी।
अगले माह प्रस्तावित चुनाव में त्रिकोणीय मतदान में सवर्ण, पिछड़ा तथा जनजाति के प्रत्याशी होंगे। मगर यशवंत सिन्हा पूर्णतया आश्वस्त होगे कि वैधानिक तथा तकनीकी कारणों के आधार पर विनोद यादव का नामांकन रद्द कर दिया जायेगा। तब मायावती कहेंगी कि मनुवादी विजयी हुआ। समाजवादी अखिलेश यादव खिन्न हो जायेंगे कि एक पिछड़ी जाति का प्रत्याशी राष्ट्रपति बनने से वंचित कर दिया गया। भाजपायी हर्षित होंगे कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवासी साथी का प्रतिनिधि राष्ट्रपति बन गया। अर्थात एक बेटी, जो एक बड़ी उम्र तक घर के बाहर शौच जाने के लिए अभिशप्त थी। वो लड़की, जो पढ़ना सिर्फ इसलिए चाहती थी कि परिवार के लिए रोटी कमा सके। वो महिला, जो बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम कर रही थी। वो महिला, जिसे जब ये लगा कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उससे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो खुद सबके घर जा कर ‘खाने को दे’ कह के बैठने लगीं। वो महिला, जिसने अपने पति और दो बेटों की मौत के दर्द को झेला और आखिरी बेटे के मौत के बाद तो ऐसे डिप्रेशन में गईं कि लोग कहने लगे कि अब ये नहीं बच पाएंगी। जिस गाँव में कहा जाता था राजनीति बहुत खराब चीज है और महिलाएं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, उसी गाँव की महिला अब भारत की ‘राष्ट्रपति’ बनने जा रही है। द्रौपदी अब राष्ट्रपति भवन को ”जनभवन” बनायेंगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)