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अहोई अष्टमी आज, माताएं रखेंगी संतान के लिए व्रत

लखनऊ : कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार अहोई अष्टमी गुरुवार को है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन माताएं उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (सांझ) तक उपवास करती हैं। शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती हैं, लेकिन इसका अनुसरण करना कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय देर से होता है। अहोई अष्टमी का त्योहार अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है।

अहोई अष्टमी का व्रत बृहस्पतिवार को रखा जाएगा। इस दिन सन्तान के लिए लंबी आयु और सुख-समृद्धि मांगी जाती है। निर्जल व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को तारों और भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती है। इसके बाद लड्डू फल और पंचामृत का भोग लगाकर व्रत खोलती हैं। सुबह उठकर स्नान कर निर्जला व्रत रखा जाता है। सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है। पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर उसकी पूजा की जाती है। अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं। पूजा में बाल बच्चों के कल्याण की कामना के साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा को श्रद्धा भाव से सुनना चाहिए।

क्या करें

कच्चा खाना और दूध भात का एक कटोरी में हलवा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता को चढ़ा दें। पूजा के बाद बायने को सास के चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद तारे और चन्द्रमा को जल चढ़ाकर व्रत खोल लें। अहोई व्रत का शुभ मुहूर्त सुबह 6.14 से 7.28 तक और शाम को 6.39 से शुरु होगा।

क्या है मान्यता

इस व्रत से पारिवारिक सुख और संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। व्रत के पीछे कथा प्रचलित है कि दिवाली पर घर को लीपने के लिए एक साहुकार की सात बहुएं मिट्टी लाने के लिए जंगल में गईं तो उनकी ननद भी उनके साथ चली आई। साहूकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थीं उसी जगह स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते वक्त लड़की की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर जाता है। जब साहूकार की लड़की के बच्चे होते हैं तो वह भी सात दिन पर मर जाते हैं। एक-एक कर सात बच्चों की मौत के बाद जब लड़की ने पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा तो लड़की को पता चला कि अनजाने में उससे स्याहू का बच्चा मर गया था। पंडित ने कहा कि अहोई माता की पूजा करने से यह दोष ठीक हो जाएगा। इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। बाद में माता ने अहोई सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया।

 

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