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केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट- दागी नेताओं के मामलों के लिए हो विशेष अदालत

दोषी और सजायाफ्ता नेताओं के आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से ऐसे मामलों के लिए विशेष अदालतों की शुरूआत करने के लिए कहा है। उच्चतम अदालत ने केंद्र से ये भी कहा कि वह बताए कि इसमें कितना फंड और वक्त लगेगा। कोर्ट ने कहा इसके बाद हम देखेंगे कि जजों की नियुक्ति कैसे होगी। 

केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट- दागी नेताओं के मामलों के लिए हो विशेष अदालत

 
बता दें कि दागी और दोषी नेताओं पर दायर की गई चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट लगातार सुनवाई कर रहा है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधियों के जुर्म साबित होने की औसत दर क्या है? अदालत ने ये भी पूछा कि क्या नेताओं पर चलने वाले ट्रायल को एक वर्ष में पूरा करने के उसके आदेश का प्रभावी ढंग से पालन हो सका है?
 
बता दें कि मंगलवार को भी इस मामले में सुनवाई की हुई थी। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा, हम यह जानना चाहते हैं कि जनप्रतिनिधियों की दोषसिद्धि का औसत क्या है। हम यह देखेंगे कि नेताओं को दोषी नहीं ठहराया जाता है, तो उसके पीछे क्या वजह रही। बुधवार को इसी मुद्दे पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करने के आदेश दिए।

वहीं इस दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं से यह भी जानना चाहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं? कितने जनप्रतिनिधियों पर जुर्म साबित होने के बाद प्रतिबंध लगे? पीठ ने कहा कि अगर उनके पास इससे संबंधित कोई डाटा है तो उसे पेश किया जाए। आंकड़े चुनाव आयोग से प्राप्त किए जा सकते हैं। 

अदालतों में 20-20 वर्ष तक मामले लंबित हैं
याचिकाकर्ताओं से कोर्ट ने यह भी कहा कि आप सजा होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक को लेकर बहस कर रहे हैं, लेकिन अदालतों में 20-20 वर्ष तक मामले लंबित रहते हैं। इस दौरान वे चार कार्यकाल पूरा कर लेते हैं। ऐसे में यदि उन्हें छह वर्ष या आजीवन चुनाव लड़ने से रोक भी दिया जाए तो इसका क्या मतलब है? याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि 34 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकॉर्ड है।

न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और उम्र सीमा भी तय करने की मांग
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि जनप्रतिनिधि भी अधिकारियों की तरह ही सरकारी नौकर हैं। अत: दोष साबित होने पर उन पर भी आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। वहीं एक अन्य वकील कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि दागी नेताओं की वजह से चुनाव की पवित्रता के साथ समझौता किया जा रहा है। याचिका में केंद्र और चुनाव आयोग को यह भी निर्देश देने को कहा गया है कि चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा तय करें। 

 

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