दस्तक-विशेष

छत्तीसगढ़ में धड़ल्ल से मारे जा रहे नेवले

nevlaaरायपुर (एजेंसी)। छत्तीसगढ़ में वन विभाग वन्य प्राणियों की रक्षा करने के दावे जरूर करता है  लेकिन ग्रामीण इलाकों में खुलेआम जिस तरह से वन्य प्राणियों को मारा जा रहा है  उससे विभाग के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। बटेर के बाद यहां अब नेवला का शिकार धड़ल्ले से किया जा रहा है। शिकार की प्रक्रिया ऐसी  जिसे देखकर कोई भी इंसान हैरान रह जाएगा। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस तरह के अवैध शिकार पर आपत्ति भी जताई है। सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में आज भी ग्रामीण परंपरागत ढंग से जीव-जंतुओं का शिकार बड़ी बेरहमी से कर रहे हैं। कहीं बटेर तो कहीं तोता  कहीं खोह तो कहीं नेवला  सूबे के कांकेर जिले में चारामा विकासखंड के एक गांव में मादा नेवले को पहले उसकीमांद में धुआं छोड़कर शिकार किया गया। दिनदहाड़े ग्रामीण शिकार कर रहे थे  लेकिन उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था। सूबे के चारामा विकासखंड में एक ऐसा भी गांव है  जहां शिकार करना एक परंपरा है। चारामा निवासी सुरेश चंद्र मिश्र बताते हैं कि यहां ग्रामीण इलाकों में शिकारी सबसे पहले मादा नेवले की मांद का पता लगाते हैं  जो खेत की मेड़ में स्थित मांद में अपने बच्चों के साथ रहती हैं। उन्होंने बताया कि शिकार करने के लिए सबसे पहले खेत की मेड़ को खोदा जाता है  फिर मांद के अन्य रास्तों को मिट्टी डालकर बंद कर दिया जाता है। इसके बाद मिट्टी की एक मटकी में छेद करके उसमें पैरा डालकर आग लगाकर मांद में धुआं किया जाता है। मिश्र बताते हैं कि मांद में धुआं तब तक किया जाता है  जब तक मादा नेवले और उसके बच्चों की जान नहीं निकल जाती। इसके बाद फिर से गैंती की सहायता से खुदाई की जाती है तथा मर चुके नेवले की पूंछ को पकड़कर उसे बाहर निकाला जाता है।
उन्होंने बताया कि कई बार नेवले के दुधमुंहे बच्चे भी अपनी मां से लिपटे मृत अवस्था में बाहर निकलते हैं। मादा नेवले को बाहर निकालने के बाद शिकारी उसके बच्चों को वहीं छोड़कर मादा नेवले को अपने झोले में रख वहां से चंपत हो जाते हैं।  चारामा की एक स्वयंसेवी संस्था ‘सृजन’ से जुड़ी माधवी यदु कहती हैं कि नेवले के शिकार के लिए जैसी प्रक्रिया अपनाई जाती है  ठीक वही प्रक्रिया शिकारी नेवले को जीवित पकड़ने के लिए भी अपनाते हैं। जब नेवले को जीवित पकड़ना होता है तब ये धुआं कुछ कम करते हैं  ताकि नेवले का दम न घुंटे  केवल बेहोश हो जाए।
जानकारी के मुताबिक  नेवले का ज्यादातर शिकार ग्रामीण ही करते हैं। वे जीवित नेवले को शहर में किसी मदारी  जादूगर या फिर जरूरतमंद लोगों के हाथों बेच देते हैं। एक शिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया ‘‘कुछ लोग नेवले का उपयोग टोना-टोटका के लिए भी करते हैं। वे पैसे देकर हमसे नेवला पकड़वाते हैं।’’ चारामा वन परिक्षेत्र अधिकारी एस.सी. नाग का कहना है कि नेवले का शिकार करना अपराध की श्रेणी में आता है। ग्रामीण नेवले या अन्य किसी भी जीव-जंतु का शिकार नहीं करें। उन्होंने कहा कि शिकायत मिलने पर शिकार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल  विभाग चाहे लाख दावे कर ले पर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में बटेर,  तोता, नेवला  खोह सहित विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु लगातार शिकारियों की भेंट चढ़ रहे हैं।

Related Articles

Back to top button