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दिल्ली में स्कूल जाने से महरूम हैं तेरह लाख से अधिक बच्चे

नई दिल्ली : दो करोड़ की आबादी वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के 13 लाख से अधिक बच्चे आज भी स्कूल जाने से महरूम हैं। वे या तो दिनभर आवारागर्दी करते हैं या फिर बाल मजदूर के रूप में काम करने को विविश हैं। दिल्ली में तीन से 18 साल की उम्र वाले स्कूल जाने वाले बच्चों की कुल संख्या लगभग 75 लाख है। इनमें से केवल 45 लाख बच्चे ही ऐसे हैं, जो किसी निजी या सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। बाकी 30 लाख में से 17 लाख बच्चे अवैध स्कूलों में बढ़ते हैं, जबकि बाकी बचे 13 लाख बच्चे या तो सड़कों पर घूमते हैं या फिर बाल मजदूरी करते हैं। सरकार ने स्कूल नहीं जाने वाले सभी बच्चों का सर्वेक्षण कराने की योजना बनाई थी, जिसे अब सरकार ने नवजात से छह साल तक के बच्चों तक सीमित कर दिया है। कानूनविद खगेश झा ने इसी साल आरटीआई के जरिए स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों का डाटा हासिल किया है। वह इस स्थिति के लिए शिक्षा प्रणाली को जिम्मेदार बताते हैं। उन्होंने कहा बवाना में ढोल बजाने वालों की एक कॉलोनी है, जहां के 80 बच्चे किसी स्कूल में नहीं जाते। एक पैरंट से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को स्कूल भेजने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि उनका बेटा कक्षा आठ तक स्कूल जाने के बाद भी कुछ लिख-पढ़ नहीं सकता था। इसी वजह से अन्य लोगों ने भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि इससे तो बेहतर है कि बच्चा कुछ काम-धंधा सीख कर परिवार की सहायता करे।

एनजीओ चेतना के डायरेक्टर संजय गुप्ता का कहना है ज्यादातर बच्चे पहली पीढ़ी के सीखने वाले बच्चे होते हैं। जिन्हें स्कूल जाने के बाद भी स्कूल में किनारे कर दिया जाता है, क्योंकि स्कूल के शिक्षक और स्टाफ इन बच्चों का खुले दिल से स्वागत नहीं करते। जामिया मिलिया में प्रोफेसर जानकी राजन कहते हैं पहली पीढ़ी के नवसिखुआ को पढ़ाना आसान नहीं है। उन्हें पढ़ाने के लिए आपको अलग तरह की अध्यापन-कला का इस्तेमाल करना पड़ता है। बहुत से पैरंट्स ऐसे भी हैं, जो अपने बच्चों को ऐसे निजी स्कूल में भेजते हैं, तो मान्यता प्राप्त नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह के स्कूल इंग्लिश पढ़ाते हैं, जो इन बच्चों के माता-पिता को आकर्षत करते हैं।

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