दस्तक-विशेष

रामराज में लज्जा सर्ग

उर्मिल कुमार थपलियाल

((व्यंग्य) )

आप तो जानते ही हैं कि यूपी में रामराज्य दबे पांव आने वाला है। जगह जगह तोरणद्वार लग गए हैं। वीतरागी रंग के नारंगी झंडे बैनर, तान दिए गए हैं। सारे गुंडे मवाली बिहार भाग गए हैं। पुलिस वाले साधारण सर्वोदयी कार्यकत्र्ता लगने लगे हैं। धूप तक भगवा हो गई है। अभी तो अच्छे दिनों की आहटें दरवाजों पर दस्तक दे रही हैं। हर हाथ में एक एक पत्थर दे दिया गया है ताकि तबीयत से पत्थर उछालें और आसमान में छेद हो जाए। ऐलान कर दिया गया है कि सब लोग फटाफट सदाचारी हो जायं। वरना सज़ा नहीं अब दंड दिया जाएगा। आपसी सहमति और अनुमति के साथ किया गया दुराचार भी सदाचार हो जाता है। अच्छे दिनों की नाक में बदबू न आए इसलिए बूचड़खाने बंद कर दिए गए हैं। सारे रोमियो अब रामलाल हो गए हैं। सारे मजनूं अब मिज्जन हो गए हैं। लैला का नाम लीलावती रख लिया गया है। एक कौतूहल भरा सन्नाटा है चारों ओर। हैलीकॉप्टर तक पुष्पक विमान हो गए हैं।
एक मजेदार वाकया सुन लीजिए- पहले ने दूसरे से पूछा- अब ये बताओ अगर एक पेड़ पर तीस आम लगे हैं उनमें से आठ अमरूद तोड़ लिए गए तो पेड़ पर कितने संतरे बचेंगे। दूसरा नवोदित बुद्घिजीवी था। बोला- भइया तब तो पांच गेंडे, दस कुत्ते और तीन उल्लू बचेंगे। अब भाई साहब आप बताइए कि इन दोनों में कौन राष्ट्रभक्त है और कौन देशद्रोही। आखिर छल कपट को ही तो फारूख अब्दुल्ला कहते हैं। अब तो भइया मई का महीना है। मौसम थरथरा रहा है जैसे कि पहले का गुंडा बदमाश हो। कल की बात है मेरे एक मुसलमान दोस्त हैं। आजकल सिर्फ सब्जी सलाद खा रहे हैं आधे मन से। बड़े अनमने थे। मैंने पूछा- बात क्या है। काहे परेशान हो। बोले- बीबी को तीन तलाक कहके आ रहा हूं। मैंने पूछा- क्यूं ? तीन बार क्यूं। वे खीझ कर बोले- अरे औरत एक बार में सुनती कहां है। मुझे लगा तीन तलाक का यह तर्क तो सुप्रीम कोर्ट तक नहीं जानता। आखिर कश्मीर के पत्थरबाज भी अपनी अक्कल से पत्थर चुन कर ही तो भारतीय सैनिकों पर फेंकते हैं। पाकिस्तान कहता है कि वो पत्थर नहीं हैं कबूतर हैं। सच बात है किसी शायर को लानतें देकर दाद नहीं दी जाती। फूल तो गांधीवाद है और पत्थर जिन्नाबाद। सबको पता है कि हमारे यहां नेता लज्जित नहीं होते। वे तो स्वयं लज्जा का कारण होते हैं। पहले तो ये था कि जिस देश के लोग आपस में लज्जित नहीं हो पाते थे उन्हें सरकार झेलनी पड़ती थी। विजय माल्या जैसे पराक्रमी कभी लज्जित नहीं होते। उनके तो उत्तेजित कलेन्डरों को भी लज्जा नहीं आती थी। अब फिल्मों की हसीन हिरोइनें लज्जा करने लग गईं तो गई भैंस पानी में।
अब नई सरकार का कहना है कि वह भगवान की तरह सबकी लाज रखेगी। लज्जा तो यूं भी महिलाओं का आभूषण है। मर्द तो बेशरम होते ही थे हैं और रहेंगे। हमारे तो देवताओं तक ने कभी कुर्ता या कमीज़ नहीं पहनी और कभी लज्जित नहीं हुए। नया निज़ाम भरोसा बांट रहा है। अफसरों का स्थानान्तरण करना धर्मान्तरण नहीं होता। तवे पर पड़ी रोटी को भी पलटना पड़ता है। शराब पीने वाले अफसर को मद्य निषेध विभाग का सचिव बना कर उसे नया नरक भोगने का पुण्य दिया गया है। अब काफी हो गया मित्रों। मौत या दुर्घटना दस्तक देकर नहीं आती। यूं भी रामराज में व्यंग्य अनाथ होने लगता है। निंदा रस निचुड़ने लगता है। नए आदेश दिए जा रहे हैं कि सूरज ज्यादा तपे तो उसे गिरफ्तारी का नोटिस दिया जाय। लू चले तो उसमें तपन न हो। कहीं ऐसा न हो कि अगर गर्मियों में पानी की किल्लत हो जाय तो हमें सरकारी पैट्रोल पीना पड़े। रक्षा करना राम जी। सुना है इस बार आमों के पेड़ों को हमेशा की तरह झुलसा और खर्रा रोग नहीं दिया जाएगा। आम उन्हीं का मिलेंगे जो गोश्त नहीं खाते। चिड़ियाघर के शेरों को आदत डाली जा रही है कि वे घास चारा खाएं। ऐसा न हुआ तो इस साल से दुर्गा जी उसकी सवारी नहीं करेंगी। बांस की खपच्ची का धनुष कंधे पर रखने वाला अर्जुन नहीं होता। संजोग से कोई योगी नहीं बनता। आया समझ में।

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