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संवेदनाओं के बीच सेना की सख्ती

यदि भारतीय सेना ने कोई सर्जिकल स्ट्राइक की है, तो उसकी रणनीति एवं साहस की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक्स ही आतंकी समूहों की कनेक्टिविटी एवं मोबलाइजेशन को खत्म कर पाएंगी। बिना ऐसी कार्रवाईयों के नगा विद्रोही सीमा पर ड्रग्स और आम्र्स स्मगलिंग को अंजाम देने के साथ-साथ दूसरे आतंकी समूहों के साथ कनेक्टिविटी का प्रयास करते रहेंगे, जो हमारी सुरक्षा एवं सम्प्रभुता के लिहाज से घातक होगा। सेना की ऐसी कार्रवाईयां केवल पूर्वोत्तर के विद्रोहियों को ही सख्त संदेश नहीं देंगी बल्कि पाकिस्तान में बैठे आतंकियों एवं उनके आकाओं के लिए चेतावनी सिद्ध होंगी जैसा कि 27 सितम्बर को हुयी कार्रवाई के बाद देखने को भी मिला है।

दस्तक टाइम्स ब्यूरो

भारतीय सेना ने भारत-म्यांमार सीमा पर एक और सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया है, जब यह सूचना मिली तो वास्तव में ऐसा लगा कि भारत सरकार ने भारतीय सेना को जो फ्री हैंड करने का निर्णय लिया था वह सही था। इससे भारत के लोगों के बीच सुरक्षा का वातावरण पुन: निर्मित होने लगा है और अलगाववादियों व आतंकवादियों में भय का निर्माण। लेकिन शाम तक विरोधाभासी सूचनाओं का एक भरा पूरा संसार निर्मित हो गया, जिसमें एक तरफ आंतकी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के खापलांग गुट(एनएससीएन-के) की तरफ से किया गया दावा था और दूसरा सेना की तरफ से आया आधिकारिक वक्तव्य। महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों से आयी सूचनाओं से यह सिद्ध नहीं हो पा रहा था कि सेना ने कोई सर्जिकल स्ट्राइक की है? अब प्रश्न यह उठता है कि क्या इस तरह की सूचनाएं सेना की प्रतिष्ठा को कमजोर करती हैं या फिर उसे समृद्ध बनाती हैं? दूसरा प्रश्न यह है कि क्या भारतीय सेना अपनी पिछली कुछ कार्रवाईयों तथा सेना प्रमुख द्वारा दिए गये वक्तव्यों द्वारा आतंकवादियों को कड़ा संदेश देने में सफल हो गयी है?
सामान्य, लेकिन परिपक्व सूचनाओं के अनुसार बुधवार तड़के भारत की सेना ने आंतकी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के खापलांग गुट (एनएससीएन-के) के खिलाफ म्यांमार सीमा पर लांग्खू गांव के पास कार्रवाई को अंजाम दिया। यह बात विपक्षी यानि नगा गुट भी स्वीकार करता है। लेकिन क्या यह वास्तव में सर्जिकल स्ट्राइक ही थी ? दरअसल एनआईए की मोस्ट वॉन्टेड सूची में शामिल ‘एनएससीएन-के’ के इसाक सूमी की सोशल मीडिया साइट पर लिखी गयी एक पोस्ट में कहा गया है कि भारत-म्यांमार सीमा से 10-15 किलोमीटर दूर म्यांमार के अधिकार क्षेत्र वाले नगा इलाके के भीतर लांग्खू गांव के बाहरी इलाके में मुठभेड़ हुई। इसके अनुसार प्रात: लगभग तीन बजे के आसपास यह मुठभेड़ तब शुरू हुई जब नगा आर्मी की एलीट यूनिट ने म्यांमार के अधिकार क्षेत्र वाले इस गांव के बाहरी इलाके में भारतीय सीमा की टुकड़ी को अपने अस्थाई शिविर की तरफ आते देखा। इस नेता का दावा है कि मुठभेड़ में तीन भारतीय सैनिक मारे गए और काफी संख्या में घायल हुए, लेकिन नगा आर्मी में कोई हताहत नहीं हुआ। प्रत्युत्तर में भारतीय सेना की पूर्वी कमान की तरफ से कहा गया कि सुबह 4:45 बजे भारत-म्यांमार सीमा पर फायरिंग हुई, जिसमें भारतीय सैनिकों को नुकसान की रिपोर्ट गलत है और ‘एनएससीएन-के’ के काडर को भारी नुकसान हुआ है। नगा सोशल साइट पर जो सूचना दी गयी है, उसके अनुसार सेना ने यह ऑपरेशन असम-नागालैंड बॉर्डर के पास किया है। यह बात सेना भी मान रही है, इसी आधार पर प्रस्तोताओं का एक वर्ग इस निष्कर्ष पर पहुंच गया कि भारतीय सेना ने पुन: एक सर्जिकल स्ट्राइक की है। लेकिन भारतीय सेना तो यह कहते हुए दिख रही है कि 27 सितंबर की सुबह, भारत-म्यांमार सीमा पर काम कर रही भारतीय सेना की एक टुकड़ी पर अज्ञात आतंकियों ने हमला किया। सेना ने तत्काल जवाबी कार्रवाई की और आतंकवादियों पर गोलियां बरसाईं। सेना की तरफ से इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि सेना ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार नहीं की। यानि सेना के बयान के अनुसार उसने कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की। फिर भी कुछ लोग इसे सर्जिकल स्ट्राइक सिद्ध करने पर अमादा हैं, आखिर क्यों? क्या इसके साथ कोई न्यू आर्मी डायनामिक्स जुड़ी है? क्या ऐसा भी हो सकता है कि भारतीय सेना ने 2015 का इतिहास दोहराया हो लेकिन वह भारत-म्यांमार सम्बंधों की संवेदनाओं को देखते हुए इसका खुलासा न किया जा रहा हो, क्योंकि पिछली बार म्यांमार की सरकार भारत के प्रचारवादी रवैये से खासी नाराज नजर आई थी।
यदि पूर्वोत्तर में एनएससीएन की गतिविधियों पर ध्यान दें तो यह 1980 से वहां संगठित तरीके से अपनी गतिविधियां चला रहा है। हालांकि 1988 में इसमें विभाजन हो गया। जिसके एक धड़े यानि नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ भारत सरकार समझौता कर चुकी है लेकिन खापलांग गुट के साथ कोई समझौता नहीं हुआ है। एनएससीएन आरम्भ से ही वृहत्तर नगालैंड (नगालिम) की मांग करता रहा है (समझौते के बाद इसाक-मुइवा ने अपना स्टैंड बदल दिया है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है) -यानि नगालैंड के अलावा मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम, यहां तक कि म्यांमार के भी नगा आबादी वाले सारे इलाकों को मिलकार नगाओं का एक अलग देश की मांग। खापलांग इस समय पूर्वोत्तर का सबसे खतरनाक गुट बना हुआ है जिसके ज्यादातर नेता नगालैंड से बाहर रहते हैं और वहीं से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इस संगठन का विस्तार म्यांमार से सटे भारत के चार राज्यों-नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश तक है। इन राज्यों की लगभग 1643 किलोमीटर की सीमा म्यांमार से लगती है जिसमें 16 किलोमीटर का भूभाग फ्री जोन है, जिसमें दोनों तरफ आठ-आठ किलोमीटर की सीमाएं शामिल है। इसी क्षेत्र या इसके आसपास ये अपनी बॉर्डर क्रॉस गतिविधियां चलाते हैं। ऐसी स्थिति में यह मुद्दा न केवल भारत के राज्यों तक सीमित रह जाता है बल्कि म्यांमार की सीमा के अंदर तक पहुंच जाता है। जाहिर है सेना की जरा सी नरमी नार्थ-ईस्ट में उथल-पुथल की वजह बन जाएगी और जरा सी भी सक्रियता भारत-म्यांमार सम्बंधों की संवेदनाओं के लिए घातक होगी। ऐसे में सेना को सक्रियता और धैर्य के बीच संतुलन साधने की जरूरत होगी। लेकिन यदि सेना सख्त संदेश देने में नाकाम रहती है तो समस्याएं इससे कहीं ज्यादा बड़ी हो सकती हैं क्योंकि पूर्वोत्तर के कई आतंकी गुटों को मिलाकर बना यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया’ निरंतर विस्तार ले रहा है जिसमें एनएससीएन (खापलांग गुट) के अलावा कुछ मणिपुरी उग्रवादी संगठन, कामतापुर लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन, एनडीएफबी का सोनबिजित गुट और उल्फा का परेश बरुआ गुट शामिल है।
कुल मिलाकर, यदि भारतीय सेना ने कोई सर्जिकल स्ट्राइक की है, तो उसकी रणनीति एवं साहस की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक्स ही आतंकी समूहों की कनेक्टिविटी एवं मोबलाइजेशन को खत्म कर पाएंगी। बिना ऐसी कार्रवाईयों के नगा विद्रोही सीमा पर ड्रग्स और आम्र्स स्मगलिंग को अंजाम देने के साथ-साथ दूसरे आतंकी समूहों के साथ कनेक्टिविटी का प्रयास करते रहेंगे, जो हमारी सुरक्षा एवं सम्प्रभुता के लिहाज से घातक होगा। सेना की ऐसी कार्रवाईयां केवल पूर्वोत्तर के विद्रोहियों को ही सख्त संदेश नहीं देंगी बल्कि पाकिस्तान में बैठे आतंकियों एवं उनके आकाओं के लिए चेतावनी सिद्ध होंगी जैसा कि 27 सितम्बर को हुयी कार्रवाई के बाद देखने को भी मिला है। उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना द्वारा म्यांमार सीमा पर की गयी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के विदेशमंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि हाफिज सईद पाकिस्तान के लिए अब बोझ बन गया है। पाकिस्तान अब उनसे परेशान है। उन्होंने यह भी कहा कि लश्कर के कैंप में न केवल साजिश रची जाती है, बल्कि उन्हें अंजाम भी दिया जाता है। इससे न केवल भारत अस्थिर रहता है, बल्कि पाकिस्तान भी अब उनसे परेशान है। बहरहाल चीन इन दिनों म्यांमार पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर भारत और म्यांमार के रिश्ते नाजुक दौर में जा सकते हैं, इसलिए धैर्य एवं गैर-प्रचारवादी विशेषताओं के साथ सेना को कार्रवाईयां करनी चाहिए। इस तरह के प्रचार भारतीय उपमहाद्वीप में एक प्रकार के विशेष भय का निर्माण कर रहा है जिससे हमारे पड़ोसी हमसे छिटक कर और दूर जा सकते हैं, जो हमारी कूटनीतिक असफलता होगी।

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