अद्धयात्मजीवनशैली

16 जून को है कार्तिकेय षष्ठी, कर्क राशि वालों के लिए शुभकारी

ज्योतिष : शंकर—पार्वती पुत्र देव कार्तिकेय षष्ठी तिथि व मंगल ग्रह के स्वामी हैं तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है। इसीलिए जिन जातकों की कुंडली में कर्क राशि अर्थात् नीच का मंगल होता है, उन्हें मंगल को मजबूत करने तथा मंगल के शुभ फल पाने के लिए इस दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए, क्योंकि स्कन्द षष्ठी भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय होने के जातकों को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए। कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कन्द षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे। कार्तिकेय को स्कन्द देव, मुरुगन, सुब्रह्मन्य नामों से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कन्द षष्‍ठी के अलावा चंपा षष्ठी भी कहते हैं। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है। ज्ञात हो कि स्कन्द पुराण कार्तिकेय को ही समर्पित है।

स्कन्द पुराण में ऋषि विश्वामित्र द्वारा रचित कार्तिकेय 108 नामों का भी उल्लेख हैं। इस दिन निम्न मंत्र से कार्तिकेय का पूजन करने का विधान है। खासकर दक्षिण भारत में इस दिन भगवान कार्तिकेय के मंदिर के दर्शन करना बहुत शुभ माना गया है। यह त्योहार दक्षिण भारत, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में प्रमुखता से मनाया जाता है।

भगवान कार्तिकेय पूजा का मंत्र-

‘देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥’
कार्तिकेय गायत्री मंत्र- ‘ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात’।

यह मंत्र हर प्रकार के दुख एवं कष्टों के नाश के लिए प्रभावशाली है। इसके अलावा स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय के इन मंत्रों का जाप भी किया जाना चाहिए।

शत्रु नाश करेगा यह मंत्र-
ॐ शारवाना-भावाया नम:
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते।

पूजन विधि : स्कन्द षष्ठी व्रत के दिन व्रतधारी प्रातः जल्दी उठ जाएं और स्नानादि करके भगवान का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। अब भगवान कार्तिकेय के साथ शिव-पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करें। पूजन में घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। साथ ही कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन, इत्र आदि से पूजन करें। मौसमी फल, फूल, मेवा का प्रसाद चढ़ाएं। क्षमा प्रार्थना करें और पूरे दिन व्रत रखें। सायंकाल के समय पुनः पूजा के बाद आरती करने के बाद फलाहार करें। व्रतधारी व्यक्तियों को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके भगवान कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए।

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