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जैविक घड़ी के साथ चलकर जीवन में आती है स्वास्थ्य की क्रान्ति

डॉ. योगी रवि

नई दिल्ली: आधुनिक जीवन शैली में दौड़ता इंसान प्रकृति के संतुलित प्रवाह से कहीं आगे निकल चुका है। वैश्वीकरण का प्रभाव तथा प्रतिस्पर्धा में सफल होने की चुनौतियाँ स्वास्थ्य के प्राकृतिक नियमों को कहीं पीछे छोड़े जा रही हैं। परिणामतः जीवन शैली से नये रोगों का पैदा होना तथा उनका जटिल रोगों में परिवर्तित होना, अब सामान्य होता जा रहा है।

जैविक घड़ी (Biological Clock) प्रकृति का वह चक्र है, जो ऊर्जा को शरीर के विशेष भाग में निश्चित समय तक रोककर उस भाग को कार्यशीलता के लिए नियमित बनाती है। साथ ही उस भाग का शोधन तथा विशेष कार्यक्षमता भी प्रदान करती है। जैविक घड़ी की गति का आधार पूरी तरह प्रकृति है, ना कि मानवीय स्वभाव, चिन्तन या संकल्पशक्ति। बिना किसी बाहरी आयामों से प्रभावित हुए वह अपने निश्चित चक्र में गति करती रहती है।

जैविक घड़ी के गतिचक्र तथा कार्यप्रणाली को निम्न प्रकार से समझते हैं-

  • प्रातःकाल 3 से 5 बजे: यह समय जीवनीशक्ति का विशेष रूप से फेफड़ो में होता है। दो गिलास से तीन गिलास गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम जैसे प्रयाेग करना विशेष रुप से लाभप्रद है। इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध प्राण वायु और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। यह समय ब्रह्म मुहूर्त का होता है इस समय में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वाले जीवन को आलसी व निस्तेज पाते हैं।

फेफड़े सम्बन्धी रोगों की चिकित्सा का यह सर्वोत्तम समय होता है। अन्य समय की अपेक्षा इस समय फेफड़ों को कहीं अधिक बेहतर बनाया जा सकता है।

  • प्रातःकाल 5 से 7 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल – त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

कब्ज, गैस, अपच, पेट के निचले हिस्से में दर्द व आतों की समस्या जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए इस समय के चिकित्सा प्रयोग विशेष लाभ दें पाते हैं।

  • प्रातःकाल 7 से 9 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं।
    भूख न लगना, कम या अधिक लगना, पाचन सम्बन्धी समस्या को दूर करने के लिए यह समय बहुत उपयुक्त है।
  • प्रातःकाल 9 से 11 बजे: इस समय जीवनी शक्ति अग्नाशय व प्लीहा में रहती है। किसी भी प्रकार की मधुमेह, अग्नाशय ग्रन्थि के अन्य असन्तुलन तथा प्लीहा सम्बन्धी समस्याओं के उपचार के लिए यह समय सर्वाधिक उपयुक्त है।
  • प्रातःकाल 11 से 1 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है। दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम ) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसीलिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते हैअथवा दही खा सकते है ।

  • दोपहर 1 से 3 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।
  • दोपहर 3 से 5 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।
  • संध्याकाल 5 से 7 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

  • रात्रि 7 से 9 बजे : इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है।
  • रात्रि 9 से 11 बजे : इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।

  • रात्रि 11 से 1 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।
  • रात्रि 1 से 3 बजे: इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।

प्राकृतिक जैविक घड़ी को जीवन की आदतों से अतिरिक्त मदद कर सकते हैं। प्रथ्वी के चुम्बकत्व के उपयोग के लिए पूर्व व दक्षिण दिशा में सिर करके सोने की आदत डालना, कड़ी भूख लगने पर जमीन पर कुछ बिछाकर ही सुखासन में बैठकर भोजन करने की आदत डालना, क्योकि इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है।

शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।

जैविक घड़ी के साथ यदि तालमेल बना सकें और नियमित रूप से उसके साथ चल सकें, तो कुछ ही दिनों में स्वास्थ्य की दिशा में क्रान्ति आ सकती है। आधुनिक जीवन शैली से उत्पन्न रोगों से लड़कर उन्हें जीता भी जा सकता है। बिना किसी दवा के प्राकृतिक स्वास्थ्य के साथ आनन्द व शान्ति को जीवन में नियमित कर सकते हैं।

(लेखक योग विशेषज्ञ व प्राकृतिक चिकित्सक हैं।)

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