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कई देशों में मंदी की आहट , भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है

नई दिल्ली : पूरी दुनिया मंदी (global recession) की आहट से सहमी हुई है। अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका हर बीतते दिन के साथ भयावह होती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अमेरिकन इकॉनमी की ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है। उसका कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी के मंदी से बचने के आसार दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में मंदी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। उनका तर्क है कि विकसित देशों में मंदी से दुनियाभर में कमोडिटीज की कीमतों में कमी आएगी। इससे भारत में महंगाई से निपटने में मदद मिलेगी।

सिटीग्रुप (Citigroup) के मैनेजिंग डायरेक्टर और भारत में इसके चीफ इकनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती (Samiran Chakraborty) ने ब्लूमबर्ग टीवी के साथ इंटरव्यू में कहा कि भारत कमोडिटीज का नेट इम्पोर्टर है। इसलिए विकसित देशों में मंदी से भारत को महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलनी चाहिए। लेकिन भारत को भी वैश्विक मंदी के कारण दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इससे एक्सपोर्ट प्रभावित होगा और इकनॉमिक ग्रोथ में कमी आएगी। इस समय देश के नीति निर्माताओं का जोर महंगाई को काबू करने पर है। इसलिए कहा जा सकता है कि मंदी भारत के लिए कुछ मायनों में फायदेमंद हो सकती है।

पूरी दुनिया में मंदी की आशंका जोर पकड़ रही है। महंगाई को काबू में करने के लिए दुनियाभर के देशों के केंद्रीय बैंकों ने प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई (Russia-Ukraine war) और महामारी के दौर में उठाए गए राहत के कदमों को वापस लिए जाने के कारण महंगाई चरम पर है। यही वजह है कि अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई विकसित देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में तेजी से इजाफा कर रहे हैं। आरबीआई (RBI) भी मई के ब्याज दरों में 90 फीसदी इजाफा कर चुका है।

जानकारों का कहना है कि इसमें अभी और तेजी देखने को मिल सकती है। इसकी वजह यह है कि महंगाई आरबीआई की तय सीमा से कहीं अधिक स्तर पर बनी हुई है। चक्रवर्ती ने कहा कि अगर महंगाई काबू में नहीं आती है तो आरबीआई रेपो रेट को छह फीसदी तक ले जा सकता है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने हाल में कहा था कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई (CPI inflation) अगली तीन तिमाहियों तक आरबीआई के सीमा से ऊपर बनी रह सकती है। आरबीआई ने इसके लिए दो से छह फीसदी की टारगेट रेंज रखी है।

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