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तालिबान की सत्ता वापसी के बाद,पहली बार सार्वजनिक तौर पर सज़ा-ए-मौत

काबुल: तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि हत्या के दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति जिसे हत्या का दोषी ठहराया गया था उसे सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दी गई. तालिबान की सत्ता वापसी के बाद से यह इस तरह की पहली सजा है.

तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा ने पिछले महीने न्यायाधीशों को सख्त इस्लामी कानून को पूरी तरह से लागू करने का आदेश जारी किया, जिसमें चोरों के लिए सार्वजनिक फांसी, पत्थरबाजी, कोड़े मारने और अंगों काटने पर जोर दिया गया.

तालिबान ने इस आदेश के बाद से सार्वजनिक कोड़े मारने की कई घटनाओं को अंजाम दिया है, लेकिन इसी नाम के प्रांत की राजधानी फराह में बुधवार को दी गई फांसी तालिबान द्वारा इस तरह से स्वीकार की जाने वाली पहली घटना है.
तालिबान ने क्या कहा

तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने एक बयान में कहा कि इस्लामिक कानून में न्याय के ‘आंख के बदले आंख’ सिद्धांत का जिक्र करते हुए क़िसास के आदेश को लागू किया गया था.

मुजाहिद ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय को हमवतन लोगों की एक सार्वजनिक सभा में क़िसास के इस आदेश को लागू करने का निर्देश दिया गया था.’

मुजाहिद ने कहा कि सजा देने का निर्णय ‘बहुत सावधानी से’ लिया गया था. उन्होंने यह भी जोड़ा कि इसे देश की तीन सर्वोच्च अदालतों के साथ-साथ तालिबान के सर्वोच्च नेता द्वारा अनुमोदित किया गया था.

जिस व्यक्ति को सजा दी गई, उसकी पहचान हेरात प्रांत के ताजमीर के रूप में हुई थी, जिसे एक अन्य व्यक्ति की हत्या और उसकी मोटरसाइकिल और मोबाइल फोन चोरी करने का दोषी ठहराया गया था. वारदात पांच साल पहले की बताई जा रही है.

बताया गया है कि पीड़ित परिवार द्वारा जुर्म का आरोप लगाने के बाद तालिबान के सुरक्षा बलों ने ताजमीर को गिरफ्तार कर लिया था. तालिबान के बयान में कहा गया था कि उसने कथित तौर पर हत्या की बात कबूल की थी.

शुरुआत में यह स्पष्ट नहीं था कि सजा-ए-मौत का तरीका क्या था, हालांकि अतीत में ऐसी सजा देने के लिए फांसी और पत्थरबाजी की जाती थी. बताया गया है कि इसके लिए कई प्रमुख लोग काबुल से पहुंचे थे, साथ ही कथित तौर पर सैकड़ों दर्शक भी वहां मौजूद थे.

उदार होने की बात से पलटा तालिबान

जब तालिबान ने 1990 के दशक के अंत से 2000 तक देश पर शासन किया, तो इसने तालिबान अदालतों में अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्तियों में से कई को सार्वजनिक फांसी दी, कोड़े मारे और पथराव किया.

हालांकि, जब 2021 में अमेरिका और नाटो बलों की वापसी के अंतिम सप्ताहों में तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली, तो इस्लामवादियों ने अधिक उदार होने और महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की अनुमति देने का वादा किया था.

हालांकि, इसके बजाय उन्होंने छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध जैसे नए नियमों के साथ अधिकारों और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया है.

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