कहानी- सारस का इंटरव्यू
लेखक- जंग हिंदुस्तानी
उस दिन चिडिया घर के गेट पर काफी बड़ी भीड़ थी। पता नहीं कौन कौन से लोग उस सारस पक्षी को देखने के लिए आए हुए थे जिसने किसी आदमी को अपना दोस्त बना लिया था। पता चला कि आज उसका प्रेमी आया हुआ है जो उससे मिलने के लिए बेकरार है। एक पत्रकार होने के नाते मेरी भी उत्सुकता उसे देखने की हो रही थी कि इंसान और पक्षी के बीच में इतना प्रेम कैसे हो सकता है ?
फिर क्या था, मैं भी उन लोगों के पीछे लग गया। यहां पर एक छप्पर में चारों तरफ से ही जाली लगा कर के सारस को रखा गया था। उसके प्रेमी के पहुंचते ही सारस ने दूर से ही पहचान लिया। गरदन उठा उठाकर पंख फैलाकर कूद कूद कर धरती आसमान एक करने लगा। इतना प्रेम एक पक्षी इंसान से करता होगा मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। फिलहाल कुछ मिनट तक बाद सारस से मिलने के बाद उन लोगों को वहां से बाहर कर दिया। उन भेजे के जाने के बाद मैंने वहां के अधिकारियों से निवेदन किया कि मुझे सारस का इंटरव्यू लेना है। उन्होंने सहमति दे दी।
मैंने करीब जाकर सारस को अपना परिचय दिया। पहले तो सारस मुझसे बात करने के लिए तैयार ही नहीं था लेकिन जब हमने उसको उसकी प्रेमी का वास्ता दिया तो वह बातचीत करने के लिए तैयार हो गया।हमारे ढेर सारे सवालों का जवाब उसने जिस तरह से दिया उसी के शब्दों में आपको बताने की कोशिश कर रहा हूं।
सारस ने कहा”- वैसे तो उसे उसके खानदान को लंबी लंबी टांगों और लंबे गर्दन के कारण दुनिया के कुछ बड़े पक्षियों में गिना जाता है लेकिन हमें इंसानी समाज से दूर प्राणी माना जाता है। हमारी दुनिया अलग है। हम अपने बिरादरी के अलावा किसी और के साथ घूम नहीं सकते। मैंने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया, उसी का फल मिल रहा है। देखिए ना, बिना किसी कुसूर के आज मैं यहां पर जेल की कैदी की तरह जीवन बिता रहा हूं। हमारी दुनिया हमारा एक बड़ा सा तालाब था। उसमें हमारे माता पिता और हम दो भाई रहा करते थे। हम दोनों भाई में कौन बड़ा कौन छोटा? हमें इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन हम अपने भाई को बड़ा भाई ही मानते थे। हम दोनों भाइयों के बीच में बचपन से ही एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती थी।हर चीज में जबरदस्त प्रतियोगिता होती। हम तालाब के इस ओर से उस ओर जाने के लिए से दो माह की उमर से ही प्रयास करते रहते थे। मेरा भाई अक्सर हार जाता था। मुझे उसे हराने में बहुत खुशी होती थी भले ही इसके लिए मुझे मेरे मम्मी पापा की डांट पड़ती रहती थी।बड़े-बड़े पंख को होने के बावजूद ज्यादा वजन होने के कारण हम ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान नहीं भर पाते थे लेकिन एक बार में दो चार किलोमीटर तक जरूर चले जाया करते थे वापस लौटने पर घरवालों की डांट सहनी होती थी। मेरे पापा ने मुझे कई बार समझाते हुए कहा कि बेटा! बाहर की दुनिया हमारे लिए नहीं है। हमारा परिवार ही हमारी दुनिया है। हमारा यह तालाब ही हमारा गांव शहर सब कुछ है।
लेकिन जब अन्य पक्षियों जैसे चील और कौवे को आसमान में आजाद उड़ते देखता तो मुझे अपनी छोटी सी दुनिया से बहुत घुटन महसूस होती थी। जब मैं मोर को गांव में टहलते हुए देखता था तो मुझे लगता था कि मैं भी ऐसा कर सकता हूं लेकिन घरवालों से इजाजत नहीं मिल पा रही थी। हम बिना घरवालों को बताए चुपचाप लंबी उड़ान पर निकल जाए करते थे।
एक शाम जब हम देर से घर वापस लौटे तो मम्मी पापा ने बैठाकर समझाया- बेटा , अपने दायरे को समझो। हमारे अनुभव बताते हैं कि बाहर की दुनिया हमारे लिए उपयुक्त नहीं है। हमें बाहरी संपर्क से बचना होगा, हद में रहो, ज्यादा अच्छा रहेगा।”
लेकिन मेरा बागी मन किसी की बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं था।मेरा मन सारी दुनिया घूमने के लिए बेताब हो रहा था। मैं अपने तालाब को इस कोने से उस कोने तक न जाने कितनी बार घूम चुका था और इसलिए मुझे बोरियत तो होने लगी थी।
बड़े भाई ने पिताजी की बात को मान लिया और उन्होंने उड़ान भरना ही बंद कर दिया। इसी बीच उड़ते उड़ते हमारा परिचय एक कौवे से हो गया। अब हम एक साथ उड़ान भरने लगे थे
एक दिन शाम को कौए के साथ उड़ान प्रतियोगिता हुई। मैं एक बार तालाब से निकला और पंख फड़फड़ाकर उड़ान भरा तो कई घंटे तक उड़ता रहा। पीछे मुड़कर मैंने देखा तो मुझे कौआ दिखाई नहीं पड़ा। मैंने सोचा कि हार के डर से वह गायब हो गया है। इधर सूरज भी अस्त हो गया था। मैं चाह कर भी अपने डेरे पर वापस नहीं पहुंच सकता था।उड़ान प्रतियोगिता तो मैं जीत चुका था लेकिन इतना थक गया था कि अब और चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी, इस नाते एक धान के खेत में चुपचाप बैठ गया और रात भर बैठा रहा।
थकावट के कारण थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा कि सुबह हो चुकी है। सूरज निकलने वाला है। गांव के लोग खेतों की तरफ आ रहे हैं। मैं उड़ना चाहता था लेकिन पंखो में दर्द होने के कारण चुपचाप बैठा रहा। अचानक पीछे से आए एक काले रंग के कुत्ते ने मेरे ऊपर हमला कर दिया और मेरी दाहिनी टांग पकड़ ली। मैंने कुत्ते से पिंड छुड़ाने के लिए बहुत कोशिश की
कई चोंच मारी लेकिन कुत्ते ने नहीं छोड़ा। उसने तो जैसे हमारी जान लेने की सोच रखी थी।भला हो दौड़ कर पहुंचे उस इंसान का, जिसने हमें बचा लिया। हीरो की तरह उसने मिट्टी के ढेले को फेंक फेक कुत्ते को भगा दिया। कुत्ते के हमले से मेरा शरीर लहूलूहान हो गया था। उसने मुझे अपने गोद में उठाया और अपने घर ले कर आया।मैं किसी प्रतिरोध की स्थिति में नहीं था। लगभग बेहोश हो चुका था।
जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आप को एक घर के चहरदीवारी में पाया। मुझे देखने के लिए गांव के बहुत से बच्चे आये हुए थे। मेरे लिए एक तश्तरी में चावल और चने के दाने पड़े हुए थे। एक मिटटी के बर्तन में पानी भरा हुआ था। भूख से तो मैं बेताब ही था। जो मिला उससे खाता चला गया। मुझे बचाने वाला मेरे सामने बैठा हुआ था और मुझे अपने हाथ से दुलार कर रहा था।वह युवक, जिसके चेहरे पर हल्की खसखसी दाढ़ी थी, जो मेरा प्राण दाता था और जिस तरह उसने मन से हमारी सेवा की उससे मेरे मन के अंदर जहां एक तरफ डर खत्म हुआ वही दूसरी ओर इंसानों के प्रति नजरिए में बदलाव आया। अब मुझे गांव में अपने दोस्त से साथ रहने में मजा आने लगा। धीरे धीरे हमारे पांव का घाव बिल्कुल ठीक हो गया और उड़ने के लिए पंखों में और भी मजबूती आ गई। लोग दूर-दूर से मुझे देखने के लिए आ रहे थे । मैं भी उनसे मिलना चाहता था। रोज मुझे बड़े प्यार से देखने वालों की भीड़ लगी रहती थी। मैंने पहली बार इन्सानों को इतने करीब से देखा था।
रोज सुबह नहा धोकर हम उड़ने के लिए तैयार हो जाते थे। हमारा दोस्त मोटरसाइकिल से चलता था और हम उड़कर उससे आगे निकलने का प्रयास करते थे। यहां भी मैं जीत जाता था।
उसने मुझे प्रेम की डोर में बांध रखा था। मेरे साथ सोना, मेरे साथ खाना, उठना, बैठना सब कुछ मेरे साथ ही था। कुदरत की ओर से प्रेम करने का इकलौता तोहफा, जो हम सारस जाति को जीवन में एक बार मिलता है, वह हमने अपने दोस्त पर निछावर कर दिया था और मन ही मन प्रेमी मान लिया था।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पता नहीं किसकी हमारी मोहब्बत पर नजर लग गई। दो साल के बाद अचानक एक दिन एक गाड़ी आई और कुछ लोग आए जो खाकी रंग की वर्दी पहने थे।
जो लोग गाड़ी से आए थे वह किसी कानून की बात कर रहे थे। वह कह रहे थे कि यह पक्षी हमारा है। इसको आप अपने साथ नहीं रख सकते। अगर आप रखेंगे हम आपके ऊपर मुकदमा करके आपको जेल भेज देंगे।उन लोगों की बात सुनकर मैं सोच रहा था कि
अभी तक हम अपने आप को आजाद समझ रहे थे ।आज पता चला कि हम किसी की अमानत हैं और वह जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। बिना उसकी इजाजत के हम किसी से प्रेम भी नहीं कर सकते।
उन लोगों ने मुझे ले जाने के लिए कहा। मेरे साथी ने बहुत हाथ जोड़े। मुझे भी बहुत दुख हुआ लेकिन मैं क्या कर सकता था? उन लोगों ने सोंचने का भी मौका नहीं दिया और गाड़ी में लादकर लेकर चले गए। एक पल भी मेरे साथी का मुझे जुदा होना अच्छा नहीं लग रहा था। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है? मुझे लाकर एक बाड़े में रख दिया गया।जब मेरे साथी ने मुझसे मिलने की कोशिश की
तो उसे मिलने से मना कर दिया गया और जब उसके साथ एक और सज्जन समर्थन में आए तो मुझे यहां से हटाकर दूर देश पहुंचा दिया गया।
अब मैं पिछले एक माह से यहां पर कैद हूं। घुट घुट कर के मर रहा हूं। माता-पिता के आदेश ना मानने की सजा पा रहा हूं। मेरा भविष्य क्या है? मुझे नहीं पता, लेकिन इतना जरुर पता है कि कुछ थोड़े से ही इंसान अच्छे होते हैं ,ज्यादा मात्रा में इंसान इंसान नहीं, बल्कि कानून से चलने वाले मशीन होते हैं जो प्यार की भाषा को नहीं समझते हैं।
मैंने देखा कि सारस की आंख से आंसू निकल रहे थे और वह बात बात पर रो रहा था।
सारस की बात को सुनकर मैं भावुक हो गया और फिर मिलने का वादा करके चला आया।
रास्ते भर सोचता रहा कि इंसान और सारस के दोस्ती की यह दास्तान इतनी जल्दी मिटने वाली नहीं, मोहब्बत की जीत जरूर होगी।
(कहानी काल्पनिक है।)