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कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती:

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान को कौन नही जानता। आज से करीब 25 वर्ष पहले हुए करगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों से लोहा लिया और इस दौरान वह वीरगति को प्राप्त हो गए। आज उन्हीं विक्रम बत्रा का जन्मदिन है। कैप्टन विक्रम बत्रा 24 साल की उम्र में 1999 में करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उन्हें युद्धकाल का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ मरणोपरांत दिया गया था। उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें प्यार से ‘द्रास का टाइगर’, ‘करगिल का शेर’ और ‘करगिल का हीरो’ आदि कहा जाता है।

9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर विक्रम का जन्म हुआ था। विक्रम की स्कूली पढ़ाई पालमपुर में ही हुई। सेना छावनी का इलाका होने की वजह से विक्रम बचपन से ही सेना के जवानों को देखते थे। कहा जाता है कि यहीं से विक्रम खुद को सेना की वर्दी पहने देखने लगे। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चले गए। कॉलेज में वे एनसीसी एयर विंग में शामिल हो गए।कारगिल युद्ध में क्या हुआ था विक्रम बत्रा के साथ : 1999 में करगिल युद्ध शुरू हो गया। इस वक्त विक्रम सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे।

विक्रम बत्रा के नेतृत्व में टुकड़ी ने हम्प व राकी नाब स्थानों को जीता और इस पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया था। श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर महत्वपूर्ण 5140 पॉइंट को पाक सेना से मुक्त कराया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बाद भी कैप्टन बत्रा ने 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को कब्जे में लिया।

कैप्टन बत्रा ने जब रेडियो पर कहा- ‘यह दिल मांगे मोर’ तो पूरे देश में उनका नाम छा गया।इसके बाद 4875 पॉइंट पर कब्जे का मिशन शुरू हुआ। तब आमने-सामने की लड़ाई में पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। गंभीर जख्मी होने के बाद भी उन्होंने दुश्मन की ओर ग्रेनेड फेंके। इस ऑपरेशन में विक्रम शहीद हो गए, लेकिन भारतीय सेना को मुश्किल हालातों में जीत दिलाई।

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