सरकार, आरबीआई और आम आदमी के लिए राहत के संकेत, सस्ता कच्चा तेल महंगाई घटाने में बनेगा मददगार
नई दिल्ली : कच्चे तेल की कीमत घटकर गुरुवार को कारोबार के दौरान 99.75 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। करीब एक माह में इसमें 20 डॉलर और पिछले चार माह में 30 डॉलर की कमी आई है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का असर सीधे पर पेट्रोल-डीजल के दाम पर होगा जिससे परिवहन लागत घटने से रोजमर्रा के सामान भी सस्ते हो सकते हैं। दुनिया की दिग्गज वित्तीय संस्थाओं का अनुमान है कि इस साल के अंत तक कच्चा तेल 65 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा होने पर आम आदमी के साथ सरकार और रिजर्व बैंक को भी बड़ी राहत मिलेगी। कच्चा तेल का दाम इस साल मार्च में 130 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गया था। इसके बाद पेट्रोल-डीजल, सीएनजी और रसोई गैस समेत अन्य तरह के ईंधन के दाम कई बार बढ़े।
इसका सीधा असर रोजमर्रा के सामान से लेकर आने-जाने एवं अन्य सेवाओं पर हुआ। इससे थोक महंगाई बढ़कर 15 फीसदी के पार पहुंच गई। महंगाई पर अंकुश के लिए रिजर्व बैंक को 15 दिन के भीतर रेपो दर में 0.90 फीसदी का इजाफा करना पड़ा। जबकि सरकार को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला लेना पड़ा।
आईआईएफल के उपाध्यक्ष अनुज गुप्ता का कहना है कि मौजूदा वैश्विक हालात को देखते हुए कच्चा तेल का दाम अगले कुछ हफ्तों में घटकर 92 डॉलर प्रति बैरल आने का अनुमान है। उनका कहना है कि भारत जैसे देश के लिए यह बहुत बड़ी राहत होगी क्योंकि यह अपनी जरूरत का 80 फीसदी आयात करता है। गुप्ता का कहना है कि सस्ता कच्चा तेल महंगाई घटाने में चौतरफा कारगर होता है। इससे सरकार को राजस्व की बचत होती है जिसे वह आम लोगों की सुविधाओं के लिए अन्य जगहों पर खर्च कर सकती है। डॉलर के मुकाबले रुपया के मजबूत होने से आयात सस्ता होगा। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है जिसका ज्यादातर भुगतान डॉलर में किया जाता है। ऐसे में रुपया मजबूत होगा तो कच्चे तेल का आयात सस्ता होगा। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने का मौका मिलेगा। इसके अलावा जरूरी दवाओं का आयात भी सस्ता हो जाएगा।
सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक मांग घटने और आपूर्ति बढ़ने से कच्चा तेल इस साल दिसंबर तक 65 डॉलर प्रति बैरल और अगले साल घटकर 45 डॉलर प्रति बैरल तक आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर असर होगा। तेल सस्ता होने से परिवहन लागत घटेगी जिससे खाने-पीने समेत अन्य उपभोक्ताओं उत्पादों की कीमत घट सकती है। इसके अलावा रोजमर्रा के अन्य उत्पादों की परिवहन लागत भी घटेगी।
महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को खाद्य तेलों पर आयात शुल्क खत्म करना पड़ा है, जिससे बड़ी मात्रा में राजस्व का नुकसान हो रहा है। दूसरी तरफ रिजर्व बैंक मई-जून में रेपो दर में 0.90 फीसदी इजाफा कर चुका है। रिजर्व बैंक के इस कदम से बैंकों ने कर्ज महंगा कर दिया है। यदि कच्चे तेल के असर से महंगाई घटती है तो रिजर्व बैंक दरों में वृद्धि को रोक सकता है जिसका लाभ उपभोक्ताओं को होगा।
कच्चे तेल के दामों में नरमी आने की वजह से रिफाइनरी कंपनियों के डीजल, पेट्रोल और विमान ईंधन (एटीएफ) के शोधन से प्राप्त मार्जिन में बड़ी गिरावट आई है। जून में कच्चे तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं और रिफाइनरी इकाइयों को ‘अप्रत्याशित’ लाभ हो रहा था, जो अब समाप्त हो गया है। बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। ब्रोकरेज समूह सीएलएसए ने कहा, इससे दो सप्ताह पहले लगाए गए अप्रत्याशित लाभ कर को जारी रखने की जरूरत पर सवाल खड़े होते हैं। सरकार ने एक जुलाई को पेट्रोल और एटीएफ पर छह रुपये प्रति लीटर तथा डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर का निर्यात शुल्क लगाया था। इसके अलावा कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन पर 23,250 रुपये प्रति टन का अप्रत्याशित कर लगया गया था। उस समय वित्त मंत्रालय ने कहा था कि हर पखवाड़े कर की समीक्षा की जाएगी।