उत्तराखंड

अब पहाड़ों में भी होगी ‘ऑर्गेनिक गन्ने’ की खेती, जीवन में घुलेगी ‘मिठास’

देहरादून (गौरव ममगाईं)। उत्तराखंड में पहली बार गन्ने की खेती शुरू की गई है, यह करके दिखाया है धामी सरकार ने। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के इस कदम को पर्वतीय जिलों में कृषि के विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। खास बात ये है कि प्रारंभिक चरण में सरकार को सफलता भी मिल गई है। योजना के तहत पहले चरण में पिथौरागढ़ जिले में ऑर्गेनिक गन्ने की खेती शुरू की गई है। अब दूसरे चरण में गढ़वाल के चमोली जिले में खेती की जाएगी।

 उत्तराखंड में वर्तमान में हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर में गन्ने की बड़े स्तर पर खेती की जाती है, जबकि देहरादून में सीमित मात्रा में ही गन्ने की खेती होती है। इसके अलावा शेष 10 पर्वतीय जिलों में गन्ने की खेती न के बराबर होती है। इसका कारण है वहां की विशेष भौगोलिक परिस्थिति। पर्वतीय जिलों में भूमि ढालदार होती है, जिसके कारण खेतों का आकार सीढ़ीनुमा होता है। इनका आकार भी बेहद छोटा होता है, जिस कारण यहां उत्पादकता बहुत कम रहती है। वहीं, गन्ने की खेती को आर्थिक दृष्टि से बेहद लाभकारी माना जाता है। धामी सरकार पेराई सत्र के दौरान ही किसानों को भुगतान कर रही है। इससे किसान उत्पादन के लिए प्रोत्साहित भी हो रहे हैं।

ये होंगे लाभ– धामी सरकार ने राज्य में चीनी उत्पादन को बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत राज्य की चीनी मिलों के आधुनिकीकरण के लिए 25 करोड़ रुपये की धनराशि भी जारी की गई। गन्ने को प्रोत्साहन देने से राज्य चीनी की आवश्यकता को भी पूरी करने के साथ निर्यात भी कर सकेगा। गन्ने की देखरेख भी आसान होती है और पर्वतीय क्षेत्रों में यह फसल जंगली पशु व पक्षियों से भी अन्य फसलों की तुलना में काफी सुरक्षित होती है। ऑर्गेनिक गन्ने के उत्पादन से चीनी की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और ऑर्गेनिक खेती को भी प्रोत्साहन मिलेगा। किसानों को गन्ने का उचित मूल्य मिलेगा, जिससे किसानों की आर्थिकी में बड़ा सुधार हो सकेगा। वहीं, गांवों में कृषि छोड़ रहे लोग खेती को प्रोत्साहित होंगे, जिससे पलायन भी थमेगा।

 जाहिर  है कि सीएम धामी का यह प्रयोग न सिर्फ कृषकों की आर्थिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पलायन जैसी मुख्य समस्या, ऑर्गेनिक खेती व आत्मनिर्भरता के लिहाज से भी मील का पत्थर सिध्द होगा।  

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