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सफलता के लिए सूर्य को जगाना होगा: राकेश

ताइक्वांडो चैंपियन का सपना, मेरा प्रत्येक शिष्य राष्ट्रीय स्तर पर लहराये तिरंगा

भावना शुक्ला: मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नही होता, हौसलो से उड़ान होती है। यह पंक्तियां उस सख्श पर सटीक बैठती है। जिसने बचपन में ही अपना लक्ष्य ताईकांडों बनाया था। सरल स्वभाव, मृदुभाषी स्नेही की असीम क्षमता रखने वाले ताइक्वांडो चैंपियन।

जी हां हम बात कर रहे है बाराबंकी नवाबगंज क्षेत्र में स्थित कटरा मोहल्ला निवासी राकेश कुमार धानुक की। जिनका जन्म साधारण परिवार में 1982 को चुन्नीलाल के घर हुआ था। इनकी माता का नाम रामदुलारी था। परिवार की स्थित को देखते हुए पढ़ाई तो ज्यादा नही कर पाये लेकिन अपने उत्साह को कम नही होने दिया। कठिन परिश्रम और लगन के साथ उन्होंने ताइक्वांडो में अपना कैरियर बनाया। मेहनत का नतीजा कि उन्हें हर जगह सम्मान मिलता है। अब यह चैंपियन जनपद के प्रतिष्ठित कालेजो में बच्चो को ताइक्वांडो सिखाते है। आज उन्हें हर हिंदुस्तानी नाज से देखता है और गर्व महसूस करता है। ऐसे भारतीय ताइक्वांडो चैंपियन प्रेमी पर मुझे नाज है। जो अपने कठिन परिश्रम के बल पर ब्लैक बेल्ट टू डेन हासिल किया।

उन्होंने कहा हम प्रैक्टिस के लिए सुबह जल्दी उठ जाते है, शायद यही उनकी सफलता का राज भी है। उनका मानना है कि हमे किसी भी सफलता के लिए सूर्य को जगाना होगा। अगर सूर्य ने आपको जगाया तो यह निश्चित है कि आपकी असफलता का कारण आपका आलस्य है। एक प्रश्न के उत्तर में ताइक्वांडो चैंपियन ने यह भी बताया कि बहुत लोग अपना लक्ष्य निश्चित नहीं कर पाते है। जो इधर-उधर भटकते रहते है। हम उन लोगों को यही बताना चाहेंगे कि सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करें और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चित हो जाये, आपको सफलता जरूर मिलेगी।

उन्होंने आगे कहा कि हम अपील करना चाहेंगे कि प्रत्येक माता- पिता अपने बच्चों को ताइक्वांडो आवश्यक सिखाये। क्योंकि विपरीत परिस्थितियों में यह आपके बच्चे को जरूर काम आता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। जब शरीर स्वस्थ रहेगा तभी आपका बच्चा पढऩे में तेज होगा। अब सरकार भी ताइक्वांडो पर जोर दे रही है और विपरीत परिस्थितियों में मनचलों को इससे सबक भी सिखाया जा सकता है। ताइकांडो बालकों से ज्यादा बालिकाओं के लिए आवश्यक है। आयेेदिन घटनाएं बढ़ती जा रही है, जिससे उन से निपटा जा सकता है और घटनाओं को स्वयं रोका जा सकता है।

एक प्रश्न के उत्तर में श्री धानुक भावुक होकर बोले मैं चाहता हूँ कि मेरे माता- पिता जीवित होते और हम अपनी सफलता उन्हें दिखा सकता। शायद वह मुझे देखकर बहुत खुश होते।

उन्होंने अगले प्रश्न के उत्तर में कहा हम अपने शिष्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखना चाहते है। हमारा विश्वास है कि हमारे शिष्य हमारी इच्छा जरूर पूरी करेंगे। हमारे शिष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताइक्वांडो क्षेत्र में तिरंगा जरूर लहराएंगे।

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