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अब कंपनियां बदलेगी आपके सोचने का तरीका, पुणे में शुरू हुई देश की पहली डिजाइन थिंकिंग लैब

हम कोई सामान क्यूं खरीदते हैं? क्या दुकान में घुसते ही उसकी पैकेजिंग हमें आकर्षित करती है? या कोई तय अखबार ही हम रोज क्यूं पढ़ते हैं? क्या हमें उसके खबरें परोसने का तरीका पसंद आता है? या हम उसकी खबरों की जानकारी और गहराई से प्रभावित होते हैं? मोबाइल या कंप्यूटर पर कोई वेबसाइट हमारी पसंदीदा वेबसाइट कैसे बन जाती है? ये सारे सवाल ऐसे हैं जो सिर्फ हमारे और आपके जैसे प्रयोगकर्ताओं को ही नहीं परेशान करते, बल्कि इन्हें बनाने वाली कंपनियों को भी बार बार सोचने और अपने उत्पाद को बदलते रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। 

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अब कंपनियां बदलेगी आपके सोचने का तरीका, पुणे में शुरू हुई देश की पहली डिजाइन थिंकिंग लैबइन सारे सवालों का जवाब छिपा है ग्राहकों की सोच में। किसी उत्पाद की तरफ ग्राहक को आकर्षित करने की जो किसी कंपनी की रणनीति होती है, उसे कॉरपोरेट जगत ने एक नया नाम दिया है, डिजाइन थिकिंग।

किसी ग्राहक या प्रयोगकर्ता की सोच को अपने उत्पाद की तरफ मोड़ने की प्रकिया डिजाइन थिकिंग है यानी सोच को डिजाइन करना। आईटी इंडस्ट्री का ये नया प्रयोग है और डिजाइन थिकिंग की पूरी दुनिया में खुली चंद चुनिंदा प्रयोगशालाओं में एक, भारत के आईटी हब पुणे में खुली है।

निहिलेंट यूजर एक्सपीरियंस लैबोरेटरी नाम की देश की इस पहली डिजाइन थिंकिंग प्रयोगशाला के संस्थापक एल सी सिंह बताते हैं, ‘पूरी दुनिया में जितनी भी खरीददारी होती है, उसके पीछे ग्राहक का भावनात्मक लगाव बहुत बड़ा फैक्टर है।

हमारी 99 फीसदी खरीदारी भावनात्मक होती है यानी कि बाजार में जो हमें खरीदना होता है, उसके बारे में काफी कुछ फैसला हम पहले ही कर चुके होते हैं। इन फैसलों को प्रभावित करने में विज्ञापनों को बड़ा हाथ होता है।’

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डिजाइन थिंकिंग कैसे किसी ग्राहक की सोच को प्रभावित कर सकती है, ये दिखाने के लिए निहिलेंट ने अमर उजाला को अपनी पुणे में हजारों वर्ग फिट में फैली इस लैब में आमंत्रित किया। अमर उजाला पहला हिंदी अखबार है जिसे इस लैब में जाने की अनुमति मिली।

लैब में अत्याधुनिक उपकरणों से लैस कमरे बने हुए हैं, जिसमें किसी ग्राहक के शोरूम में घुसने पर उसकी चहलकदमी को फर्श में छिपे सेंसर्स से रिकॉर्ड करने से लेकर किसी उत्पाद को देखते समय उसकी आंखें कहां कहां जाती है, तक की थर्मल और इमेजिंग रिकॉर्डिंग की जाती है। ये सारी रिकॉर्डिंग जो डाटा तैयार करती है, उसका विश्लेषण लैब में निहिलेंट के बनाए सॉफ्टवेयर करते हैं।

भारत में अपनी तरह का पहला प्रयोग 

निहिलेंट के संस्थापक एल सी सिंह ने अमर उजाला को इस पूरी लैब का भ्रमण करने के दौरान बताया कि डिजाइन थिकिंग को अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश अपना चुके हैं। भारत में ये प्रयोग नया है। देश के बड़े कॉरपोरेट हाउसेस ने इसमें काफी दिलचस्पी दिखाई है।

डिजाइन थिकिंग आने वाले कल का प्रयोग है और इसके लिए निहिलेंट अभी से तैयार है। जमाना बदल रहा है और अब किसी भी उत्पाद को बेचने की रणनीति कॉरपोरेट हाउस के एसी कमरों की बजाय बाजार में जाकर बिना उसके उपयोगकर्ता की भावनाएं समझे तैयार नहीं हो सकती।

इस डिजाइन थिकिंग का मुख्य मकसद यही है कि कैसे कोई कंपनी अपने उत्पाद के हिसाब से अपने ग्राहकों की सोच डिजाइन कर सकती है, या फिर कैसे ग्राहकों की सोच के मुताबिक अपने उत्पाद को डिजाइन कर सकती है।

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वाराणसी का गौरव – एल सी सिंह
निहिलेंट के संस्थापक एल सी सिंह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी से हैं। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से तकनीकी पढ़ाई करने के बाद उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से अपने क्षेत्र की योग्यता हासिल की।

​देश में आईटी क्रांति के सूत्रधारों में से एक एलसी सिंह ने दो दशक तक टीसीएस के सीनियर वीपी पद पर रहने के बाद अपनी खुद की आईटी कंपनी निहिलेंट शुरू की। इस समय निहिलेंट अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत दुनिया के तकरीबन सभी महाद्वीपों में आईटी सेवाएं दे रही है। मौजूदा समय में कंपनी का टर्न ओवर करीब 500 करोड़ रुपये है।

 
 

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