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आखिर क्या है वजह जो वर्षों पड़ा रहा PNB फर्जीवाड़े पर पर्दा?

भारत के इतिहास में पंजाब नैशनल (PNB) बैंक में हुआ सबसे बड़ा कॉर्पोरेट फ्रॉड भारतीय कंपनियों में ऑडिटिंग के कमजोर स्टैंडर्ड्स की ओर इशारा करता है। बैंक में लगभग सात वर्ष तक मिलीभगत से गड़बड़ियां होती रहीं और सालों बाद इनका अचानक पता चला।आखिर क्या है वजह जो वर्षों पड़ा रहा PNB फर्जीवाड़े पर पर्दा?

PNB की शाखाओं का ऑडिटर्स की एक टीम की ओर से ऑडिट होने के अलावा कॉनकरेंट ऑडिट भी चल रहा था और इसके बावजूद फ्रॉड होना हैरान करता है। अगर दो टीमें कई वर्षों तक किसी चीज का पता लगाने से चूकती हैं तो यह इस तरह की ऑडिटिंग की क्वॉलिटी को लेकर सवाल खड़े होते हैं। एक बैंकर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘ऑडिट में बिजनस करने के लिए अप्रूवल रखने वाली कंपनियों, फंडिंग हासिल करने वाले बिलों, इशू किए गए लेटर ऑफ क्रेडिट, शॉर्ट-टर्म फंडिंग टूल्स को देखा जाता है।’ 
सरकारी बैंक PNB को 11,300 करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट स्कैंडल से बड़ा झटका लगा है। इस फ्रॉड को बैंक के कर्मचारियों ने जूलर्स नीरव मोदी और गीतांजलि जेम्स के मेहुल चोकसी के साथ मिलकर अंजाम दिया। PNB ने 2011 से विभिन्न बैंकों को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) जारी किए थे, जिनसे डायमंड मर्चेंट्स को फंडिंग मिलती थी। इन LoU की एक्सपायरी होने के साथ ही इन्हें आगे बढ़ा दिया जाता था। इस गड़बड़ी का पता कुछ समय पहले लगा, जब अकाउंट को संभालने वाले अधिकारी रिटायर हुए थे। 

इस तरह के घपलों को ऑडिटर्स की ओर से तुरंत पकड़ा जाना चाहिए था क्योंकि कॉनकरेंट ऑडिट भी चल रहा था। हालांकि, PNB का दावा है कि उसका इंटरनल कोर बैंकिंग सिस्टम और SWIFT के जरिए चलने वाला इंटरनैशनल मेसेजिंग सिस्टम इंटीग्रेट नहीं थे और इसी वजह से यह फ्रॉड हुआ है। 

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस मामले में स्टैच्युटरी ऑडिटर्स से जुड़े दो प्रमुख मुद्दे हैं। अधिकतर सरकारी बैंकों के चलन के अनुसार कई शहरों के लिए बहुत से ऑडिटर्स नियुक्त किए जाते हैं। इन ऑडिटर्स के पास एक विशेष बिजनस से जुड़ी सभी ट्रांजैक्शंस की जानकारी उपलब्ध नहीं होती और वे केवल एक ब्रांच से जुड़ा डेटा देख सकते हैं। इसके अलावा इनमें से अधिकतर ऑडिटर्स के लिए सरकारी बैंक उनके सबसे बड़े या बहुत से मामलों में एकमात्र क्लाइंट होते हैं। इससे ऐसी स्थिति बनती है जिसमें ऑडिटर्स शायद वास्तव में स्वतंत्र नहीं होते। 

RSM इंडिया के सुरेश शर्मा ने कहा, ‘इस मामले में बैंक और रेग्युलेटर्स सहित सभी संस्थानों के सिस्टम की नाकामी रही है और इस वजह से केवल ऑडिटर्स पर उंगली उठाना ठीक नहीं होगा। बैंकों को क्लाइंट्स के ऑडिटर्स के साथ ही अपने इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की नियुक्त को लेकर अधिक सतर्कता बरतनी होगी।’ 

इस मामले में PNB के ऑडिटर्स में से किसी से भी टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं हो सका। सरकारी बैंकों का ऑडिटर्स नियुक्त करने का सिस्टम बहुत पुराना है। प्राइवेट सेक्टर के एक बैंक में ऑडिटर्स एक या दो होते हैं, लेकिन सरकारी बैंकों के ऑडिटर्स की संख्या सैंकड़ों में होती है। हाल ही में एक सरकारी बैंक ने अपने कॉनकरेंट ऑडिटर्स की संख्या 1,400 से घटाकर केवल 30 कर 35 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की थी। बिग 4 के नाम से मशहूर चार बड़ी ऑडिट कंपनियां देश की दिग्गज कंपनियों के ऑडिट के लिए 1.5-5 करोड़ रुपये के बीच फी लेती हैं। 

 

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