दस्तक-विशेषफीचर्ड

काश के कोई दशहरा एेसा भी आये कि मै भी अपने रावण को मार कर राम हो जाऊँ…

काश हम अपने अज्ञान,अहंकार,मोह अंधकार,दुख रूपी रावण का अपने ज्ञान रूपी राम से वध करवा ले,पर एेसा होगा कैसे जब तक वैराग्य रूपी लक्ष्मण हमारे विचारों को संयमित,संशोधित और रूपांतरित नही करेगा,तब तक राम रूपी ज्ञान का प्राकट्य संभव कहॉं । क्यो कि ज्ञान तो वैराग्य के वगैर रहता ही नही अगर वैराग्य हो जाये तो ज्ञान स्वंम ही प्रकट हो जायेगा और ज्ञान आ गया तो शक्ति और भक्ति स्वरूपा सीता भी मिल ही जायेंगी।..चाहे स्वर्ण मृग को पाने कि मायावी लालसा कितनी बार क्यो न आये जिसके आते ही दुख रूपी रावण हमारे सुख शांति रूपी सीता का अपहरण कर ले जाये किंतु सुख शांति स्वरूपा शक्ति भक्ति का साथ उसे कभी उपलब्ध नही हो सकेगा,लाख जतन कर ले किंतु सुख रूपी सीता और दुख रूपी रावण का कभी संयोग न हुआ है न होगा, सुख रूपी सीता का सतीत्व तो ज्ञान रूपी राम से ही संयोग करेगा ।

सत्य तो ये है कि रावण तो त्रेतायुग मे राम ने अपना मारा था,लक्ष्मण रूपी वैराग्य ने मेघनाथ रूपी कामनाओं का वध स्वंय के सापेक्ष मे किया था। हमारी कामनाओं का मेघनाथ,भोग कि अासुरी प्रवृतियो वाला कुंभकर्ण आज भी ज़िंदा है तो दुख,मोह,अहंकार रूपी रावण मरे भी तो कैसे..राम ने जिस रावण का वध किया उसकी आत्मा आज भी राम से हँस कर पूछती होगी कि आपने हमारा तो वध कर दिया किंतु ये आप के अंश रूपी संसारी कभी हमे न मार पायेंगे ..? पर राम का इशारा समझो वे कहते है कि देखो महावीर, बुद्ध , रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, तुकाराम, सरीखे लाखों ज्ञानियों , भक्तों ,संतों मुनियों को वे निरंतर अपने मेघनाथ, कुंभकर्ण,रावण को मेरे गुण रूपी ज्ञान वैराग्य भक्ति से मार कर भरत रूपी प्रेम कि गंगा को प्रवाहित कर शत्रुघ्न रूपी निर्भयता से पूरे संसार को संदेश दे रहे है कि मै सदा ही हर क्षण तुम्हारे अंदर शक्ति आनंद प्रेम स्वास्थ्य और सुख के “सच्चिदानंद ” स्वरूप मे विद्यमान हूँ ।

जिसको तुमने दुख,मोह,अज्ञानता घृणा तृष्णा तिरस्कार के रावण रूपी अवगुणो से आच्छादित कर रख्खा है।तुम इन अवगुणो को हमारी ज्ञान रूपी अग्नि मे आहुति दे दो,तो गुण रूप आत्मा से तो मै सदा तुम्हारे अंदर विद्यमान हूँ ही बस तुम्हें अपने शरीर के रहते इन अवगुणो के रूप मे विद्यमान रावण का संहार करना होगा।तभी तुम मुक्त होकर आत्म को परमात्म से संयोग कर सकोगे और मुक्त अवस्था मे हमारे साथ विचरण करोगे।…

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाई न जे परलोक सँवारा ।।

सो परत् दुख पावहि, सिर धुन धुन पछिताय। कालहि कर्महि ईश्वरहि मिथ्या दोष लगाई।।

काश के कोई दशहरा एेसा भी आये कि मै भी अपने रावण को मार कर राम हो जाऊँ ।…
विजयदशमी पर आप सभी के रावण के वध कि कामना लिये आपका शुभाकांक्षी …

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