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तीन तलाक : कानून का स्वागत होना चाहिए

अजित वर्मा

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को अवैध ठहराये जाने के बाद सरकार इस सम्बंध में कानून बनाने की तैयारी कर रही है। इस कानून के लिए विधेयक मसविदा तैयार हो चुका है, जिसमें सजा का प्रावधान किया गया है। अगर किसी पति ने अपनी पत्नी को एक बार में तीन तलाक दिया तो उसे तीन साल की कैद हो सकती है। इसके साथ ही महिला और बच्चों को हर्जाना भी देना पड़ेगा। केंद्र द्वारा बनाये गये विधेयक के प्रारूप को राज्यों को भेजा गया है और उनसे जल्द जवाब मांगा गया है। यह विधेयक संसद शीतकालीन सत्र में ही पेश किया जा सकता है। राज्यों के जवाब मिलने के बाद बिल को कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे सत्र में पेश कर दिया जायेगा।  कानून बन जाने पर तीन तलाक देना गैरजमानती अपराध होगा। सरकार ने इस बिल को “मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल” नाम दिया है। अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिया था और इसे प्रतिबंधित कर दिया था। कोर्ट ने सरकार से इस पर कानून बनाने को भी कहा था।

आश्चर्यजनक रूप से सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद भी देश में ‘तीन तलाक’ से जुड़े कई मामले सामने आये थे। सरकार की तरफ से कहा गया था वो तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए नया कानून ला सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पहले 177 (2017 में) और फैसले के बाद 66 मामले सामने आए। सबसे ज्यादा केस यूपी से हैं। इसलिए, सरकार को इस पर कानून लाना पड़ रहा है।  प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया जाएगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में कानूनी व्यवस्थाएं अलग हैं।  विधेयक का यह प्रारूप केन्द्रीय मंत्रियों की जिस समिति ने तैयार किया है, उसमें सर्वश्री राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद और पीपी. चौधरी आदि शामिल थे। श्री राजनाथ सिंह इस समिति के प्रमुख थे।

प्रस्तावित विधेयक में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को ही शामिल किया गया है। अगर किसी मुस्लिम महिला को एक बार में तीन तलाक दिया जाता है तो वो मजिस्ट्रेट के सामने इसके खिलाफ अपील और हर्जाने की मांग कर सकती है। एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत किसी भी रूप में गैरकानूनी ही होगा। बोलकर या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (यानी वॉट्सऐप, ईमेल, एसएमएस) के जरिए भी एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी ही होगा।
तीन तलाक के खिलाफ जिस तरह मुस्लिम महिलाओं ने एकजुटता दिखायी थी उसक यह परिणाम होना ही था। हमारा मानना है कि देश में एक समान नागरिक संहिता की जरूरत है। समान नागरिक संहिता के बावजूद देश में सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक बहुलता दोनों कायम रह सकती हैं। कानून के सम्मुख समानता के लिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। अगर पहले ही समान नागरिक संहिता लागू हो गयी होती तो तीन तलाक जैसे मसले ही समाप्त हो गये होते। 

 

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