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तीन तलाक पर अब मजबूर विपक्ष भी समर्थन में उतरा, जल्द बनेगा कानून

संसद के आगामी बजट सत्र में तीन तलाक विधेयक के आखिरकार कानून में बदल जाने के आसार बन गए हैं। बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित विधेयक में कांग्रेस की आज तक उठाई जा रही अधिकतर आपत्तियों का निराकरण कर दिया गया है। इसके बाद कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दल इस विधेयक के पक्ष में आ गए हैं। ऐसे में राज्यसभा में एनडीए का बहुमत न होने के बावजूद इस बिल के दोनों सदनों से पारित होने की संभावना प्रबल हो गई है। पिछली एनडीए सरकार द्वारा लोकसभा से पारित किए गए विधेयक के मुख्यतया चार बिंदुओं पर विपक्ष को आपत्ति थी।

पहली यह कि नागरिक संहिता के तहत आने वाले विवाह और तलाक जैसी प्रथाओं को आपराधिक मामला बना दिया गया था। दूसरी आपत्ति इस ‘अपराध’ की एफआईआर कोई भी दर्ज कर सकता था, यहां तक कि पुलिस भी स्वतर संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी। तीसरी आपत्ति इसे गैर-जमानती अपराध बना दिए जाने की थी। और सबसे बड़ी आपत्ति थी कि तलाक देने वाले मर्द को तो जेल भेज दिया जाएगा लेकिन उसके पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण कैसे होगा?

बुधवार को कैबिनेट द्वारा पारित विधेयक में इनमें से तीन बातों का संज्ञान लेकर समाधान कर दिया गया है। पहला – केवल तलाक दी जाने वाली महिला या उसके खून के रिश्तेदार ही एफआईआर लिखा सकते हैं। दूसरा – तलाक देने वाले पुरुष को पुलिस जमानत दे सकती है। तीसरा – तलाक दी गई महिला और उसके बच्चों को भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता मिलेगा। यानी विपक्ष को अब केवल एक ही बात पर आपत्ति रह गई है – तलाक को सिविल अपराध के बजाए क्रिमिनल मामला बना दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील और कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि सरकार ने हमारी लगभग सभी बातें मान लीं हैं। अब केवल एक ही मांग है जो पूरी नहीं हुई। ऐसे में हमारे पास इस बिल की विरोध करने का ज्यादा आधार नहीं रह गया है। हम संसद के दोनो सदनों में अपनी बात जरूर कहेंगे लेकिन इस विधेयक का समर्थन भी करेंगे।
मजबूरी इसलिए
दरअसल लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद विपक्ष के हौसले पस्त हैं। हार की समीक्षा में कांग्रेस ने पाया कि तीन तलाक का विरोध करने की वजह से पार्टी की छवि कठमुल्ला समर्थक और हिंदू-विरोध की बन रही थी। इसीलिए अल्पसंख्यकों का वोट उसे नहीं मिला और बहुसंख्यक भी उससे दूर रहे। वैसे भी पिछले एक साल से अध्यादेश के माध्यम से यह कानून तो देश में लागू है ही। तो वे अब इसे औपचारिक जामा पहनाने में अड़चन क्यों डालें।
बदहाल विपक्ष
वहीं दूसरी ओर लोकसभा चुनाव से पहले दिखी विपक्षी एकता अब खत्म हो चुकी है। राजद और वामदलों के सामने अस्तित्व बचाने का सवाल है। सपा-बसपा अलग हो चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस कमजोर हो चुकी है। दक्षिण भारत की पार्टियों के सामने वैसे भी यह बड़ा मुद्दा नहीं था। ऐसे में इस विधेयक के संसद के कोनों सदनों द्वारा पारित होने की संभावना प्रबल हो गई है।

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