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हेल्थ पॉलिसी खरीदते समय इन चार बातों का रखें ध्यान, नहीं फसेंगे जाल में

आज के समय में हेल्थ पॉलिसी खरीदना हर किसी की जरूरत बन गई है। बहुत संभव है कि आप भी काफी समय से हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने की सोच रहे हों लेकिन अलग-अलग तरह की तमाम पॉलिसी होने की वजह से आप यह तय नहीं कर पा रहे हों कि कौन-सी पॉलिसी ली जाए। हर कोई पॉलिसी से जुड़े ‘नियम एवं शर्तों’ को नहीं समझ पाता है। ऐसे में पॉलिसी खरीदने से पहले यह समझना जरूरी है कि कौन-सी पॉलिसी आपकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है और कौन-सी चीजें हैं जिन्हें नजरंदाज किया जा सकता है।

वेटिंग पीरिएड

आपको हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय वेटिंग पीरिएड से जुड़े नियमों को अनिवार्य तौर पर समझना चाहिए। यह ऐसी अवधि होती है, जिस दौरान आप अपने हेल्थ पॉलिसी का क्लेम फाइल नहीं कर सकते हैं। आम तौर पर तीन तरह के वेटिंग पीरिएड होते हैं। इसके तहत पॉलिसी लेने के पहले 30-90 दिन के भीतर अगर आपको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है तो एक्सीडेंट छोड़कर अन्य मामलों में आपका क्लेम स्वीकार नहीं किया जाता है। इसके अलावा कई तरह की पहले से मौजूद बीमारियों, सर्जरी के लिए भी आपको एक निश्चित अवधि का वेटिंग पीरिएड सर्व करना पड़ता है। यह अवधि 12 माह से 48 माह के बीच हो सकती है। इसके अलावा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां कुछ खास बीमारियों के लिए अलग-अलग वेटिंग पीरिएड रखती हैं। प्रेगनेंसी के लिए भी वेटिंग पीरियड से जुड़े नियम अलग-अलग होते हैं।

नो-क्लेम बोनस (NCB)

अगर आप किसी तरह का क्लेम नहीं करते हैं तो कंपनियां आपको नो-क्लेम बोनस देती हैं। आम तौर पर अगर आप किसी साल में अधिकतम 50 फीसद तक ही क्लेम करती हैं तो कंपनियां आपके इंश्योरेंस कवर की राशि में पांच फीसद तक का इजाफा कर देती हैं। हालांकि, अलग-अलग इंश्योरेंस कंपनियां अलग-अलग एनसीबी देती हैं। इससे जुड़ने नियमों को समझना जरूरी है ताकि आपको क्लेम लेते समय किसी तरह की दिक्कत ना हो।

फ्री-लुक पीरियड

अगर आपने किसी की सलाह पर Health Insurance Policy खरीद ली है और बाद में आपको लगता है कि पॉलिसी के नियम एवं शर्तें आपकी जरूरतों के अनुरूप नहीं है तो आप परेशान हो जाएंगे। यहां पर फ्री-लुक पीरियड काम आता है। इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने पर लगभग सभी इंश्योरेंस कंपनी आपको पॉलिसी वापस करने की सहूलियत देती है। यह अवधि अमूमन 15 दिन से 30 दिन की होती है। ऐसे मामलों में इंश्योरेंस कंपनी टैक्स एवं मेडिकल टेस्ट में आए खर्च को छोड़कर प्रीमियम की शेष राशि लौटा देती हैं।

को-पेमेंट

कई तरह की पॉलिसीज को-पेमेंट क्लॉज के साथ आती हैं। इसका मतलब है कि अगर आप क्लेम फाइल करते हैं तो इसके एक हिस्से का भुगतान आपको खुद करना होगा। इस राशि का भुगतान आपको खुद करना होगा। उदाहरण के लिए अगर आपने 20,000 रुपये का क्लेम फाइल किया है और को-पेमेंट क्लॉज के मुताबिक आपको 20 फीसद राशि का पेमेंट करना है तो आपको चार हजार रुपये अपने पॉकेट से देने होंगे। शेष 16,000 रुपये इंश्योरेंस कंपनी देगी।

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