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10 रुपए के नकली सिक्के की फैक्ट्री, आरबीआई के मैटेरियल का इस्तेमाल

बवाना। अक्टूबर में जब दिल्ली पुलिस ने दिल्ली से सटे बवाना में एक फैक्ट्री पर छापा मारा तो उन्होंने वहां देखा कि मजदूर 5 रुपए और 10 रुपए के नकली सिक्के बना रहे थे। इसी के साथ नकली सिक्के के इस बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ था। इसके बाद पुलिस ने दिल्ली और हरियाणा में नकली सिक्के बनाने वाली दो और फैक्ट्रियां पकड़ीं और लाखों रुपए के नकली सिक्कों को जब्त किया।400x400_mimage8489433bd67912477980ab375ed97aed

नकली फैक्ट्री में मजदूरों को बनाया था बंधक

बवाना के नकली सिक्कों की फैक्ट्री की दो मंजिला इमारत में मजदूरों को ठहरने के लिए कमरे बने और वहीं किचन भी था जहां उनके लिए खाना तैयार होता था।

इस फैक्ट्री में लगभग 15 मजदूरों को गैरकानूनी तौर पर बंधक बनाकर रखा गया था। उनको फैक्ट्री से निकलने पर मनाही थी। उनको हर महीने 10,000 रुपए सैलरी देने का वादा किया गया था।

कैसे हुआ नकली सिक्के के रैकेट का भंडाफोड़

अक्टूबर में पुलिस ने रोहिणी में 42 साल के नरेश कुमार को 40,000 रुपए के 10 रुपए के नकली सिक्कों के साथ पकड़ा।

नरेश ने पुलिस की पूछताछ में इस रैकेट के बारे में सबकुछ बता दिया। उसने स्वीकार लूथरा उर्फ सोनू और उपकार लूथरा उर्फ राज का नाम लिया और कहा कि ये दोनों बवाना में नकली सिक्कों की पैक्ट्री चलाते हैं। राजेश कुमार नाम के शख्स को उसने फैक्ट्री मैनेजर बताया। पुलिस ने राजेश को गिरफ्तार कर लिया लेकिन दोनों लूथरा भाई फरार हैं। इन दोनों पर पुलिस को शक है कि देश में नकली सिक्कों का गोरखधंधा करने वाले ये बड़े खिलाड़ी थे।

राजीव कुमार नाम के मजदूर ने दोनों भाइयों के बारे में बताया है कि वे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी बनकर मजदूरों से मिले थे और कहा था कि उनको सिक्के बनाने का काम मिला है। उन्होंने मजदूरों से फोन रख लिए थे। बवाना की फैक्ट्री में चौबीसों घंटे सिक्के बनाए जाते थे।

पुलिस का कहना है कि लूथरा ब्रदर्स कम से कम पिछले सात साल से नकली सिक्के बनाने का काम कर रहे थे। वे फैक्ट्री में काम करने के लिए ऐसे लोगों को तलाशते थे जो या तो मजबूर थे, कर्ज में दबे थे या फिर जल्दी पैसा बनाना चाहते थे। किसी को शक न हो इसके लिए वे उनसे आरबीआई के अधिकारी बनकर मिलते थे। 10 रुपए के हर सिक्के पर लूथरा ब्रदर्स 7 रुपए कमाते थे।

सिक्के बनाने में आरबीआई के डाई का इस्तेमाल

पुलिस की जांच में पता चला कि सिक्के ढालने की मशीनें मायपुरी से खरीदी गई थीं। फैक्ट्री में कुल छह हाइड्रोलिक मशीनें के साथ दो प्रेसिंग मशीनें और कुछ और मशीने पकड़ी गईं जिनसे सिक्कों को आकार दिया जाता था।

जांच में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई हैं कि इन 10 रुपए के सिक्कों को ढालने में उसी डाई का इस्तेमाल होता था जिसे आरबीआई के यूनिट में यूज किया जाता है। अब पुलिस इस मामले की जांच कर रही है कि आरोपियों के पास आरबीआई का यह डाई कैसे पहुंचा।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सिक्का बनाने के लिए एल्यूमिनियम और मेटल शीट्स को अन्य फैक्ट्रियों में काटा जाता था। उसे बवाना वाली फैक्ट्री में लाकर हाइड्रोलिक और प्रेसिंग मशीनों से डाई का इस्तेमाल कर नकली सिक्के बनाए जाते थे।

कैसे हो असली और नकली सिक्के की पहचान?

लूथरा ब्रदर्स की फैक्टरी में बनाए गए नकली सिक्के अभी भी बाजार में चल रहे हैं। बड़े पैमाने पर कई सालों से मॉल और बाजारों में नकली सिक्कों की सप्लाई चल रही थी।

आम आदमी के लिए नकली और असली सिक्कों में फर्क करना मुश्किल है लेकिन दोनों सिक्कों में कुछ अंतर है। इन अंतर के आधार पर आप नकली और असली सिक्कों को पहचान सकते हैं। नकली सिक्कों में रुपए का निशान थोड़ा मोटा है। नकली सिक्कों के बीच का हिस्सा और किनारा वाला हिस्सा ज्यादा उभरा हुआ होता है।

नकली सिक्कों के दूसरे हिस्से में लिखा सत्यमेव जयते स्पष्ट नहीं लिखा है, यह मिटा-मिटा सा है। जिन सिक्कों में बीच में 10 लिखा है, वह सिक्का भी बाजार में नकली माना जा रहा है।

10 रुपयों के नकली सिक्कों के कारोबार का अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन भी है। 2012 में दिल्ली के सराय काले खां से नकली सिक्के जब्त किए गए थे। धरे गए लोगों ने कहा था कि इन नकली सिक्कों को नेपाल में ढालकर भारत में सप्लाई किया गया था। इस तरह बाजार में कई तरह के नकली सिक्के चलने का संदेह है।

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