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अर्थव्यवस्था की खराब होती हालत

कन्हैया पांडे

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने बयान जारी कर बताया की वर्ष 2020 21 में भारतीय अर्थव्यवस्था डी ग्रोथ ओर बढ़ रही है। इसका मतलब यह हुआ आने वाले वित्तीय वर्ष में भारत के विकास की दर नकारात्मक होने वाली है। इसे और आसान भाषा में समझें तो आने वाले दिनों जीडीपी की दर नेगेटिव होने जा रही है। देश के केंद्रीय बैंक के गवर्नर का ऐसा बयान आना अस्वाभाविक नहीं है। आर्थिक मामलों के जानकारों का यह मानना था की आने वाले समय में उत्पादन ठप होने के कारण जीडीपी ग्रोथ नेगेटिव होनी ही थी।

लेकिन ऐसी खबर का आना देश के लिए, वहां के नागरिकों के लिए चिंता का विषय है। समस्या के विश्लेषण से पहले आयिये पहले समझते है की क्या होता है जीडीपी?

जीडीपी (ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट) यानी सकल घरेलू उत्पाद ,किसी देश की अर्थव्यवस्था की सीमा में 1 वर्ष के अंदर उत्पादित किए हुए वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्यों का योग होता है ।अर्थात किसी देश की सीमा के अंदर 1 साल में कितना कुछ उत्पादित हो रहा है और वह कितने रुपए में बिक रहा है इसका संपूर्ण योग ही जीडीपी कहलाता है।

जीडीपी का सीधा संबंध उत्पादन से होता है अर्थात जिस देश में जितना अधिक उत्पादन होगा उस देश की जीडीपी उतनी ही अधिक होगी और जीडीपी अधिक होने का मतलब है देश में आर्थिक समृद्धि अर्थात इकोनामिक ग्रोथ। अर्थव्यवस्था में जीडीपी में कमी ग्रोथ रेट में कमी को दर्शाता है और इसी की की चिंता अभी आरबीआई ने अपने आधिकारिक बयान में दर्ज कराई है।

अगर उत्पादन के कम होने के कारणों की तलाश करें तो सबसे बड़ा कारण कोविड महामारी है।
यह महामारी भारत समेत संपूर्ण विश्व के लिए अप्रत्याशित थी इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के पहिए को रोक दिया। भारतीय अर्थव्यवस्था इस महामारी के आने से पहले ही मंदी के दौर की ओर गुजर रही थी अर्थात महामारी आने से पहले ही भारत की अर्थवयवस्था में स्लोडाउन के लक्षण दिखने लगे थे ऐसे में महामारी के आने से करेला के नीम पे चढ़ जाने जैसी स्थिति हो गई।

इस महामारी के कारण देश में एक लंबा लॉकडाउन चला जिससे देश में उत्पादन के लिए लगी हुई विनिर्माण इकाइयों या यूं कहें कंपनियों में उत्पादन ठप हो गया। इससे कंपनी के मालिकों को लाभ मिलना बंद हो गया इसका परिणाम यह आया कि बहुत से लोगो को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार होने लगे आईएलओ के एक आंकड़े के अनुसार मार्च 2020 से लेकर जून 2020 तक भारत में लगभग 15 करोड़ लोगों ने में अपनी नौकरियां गवाही है।


लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर ( अकुशल श्रमिक ) अपने गांव की ओर पलायन कर गए जिससे उनका रोजगार भी प्रभावित हुआ। लॉकडॉउन (देश बंदी) के लंबा खींचने के कारण देश का उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे जीडीपी की दर गिरने लगी। लेकिन सरकार द्वारा अनलॉक की प्रक्रिया अपनाने के बाद भी लोगों की जिंदगी आसानी से पटरी पर नहीं आ पाई क्योंकि कोबिट महामारी की अनिश्चितता लगातार बनी हुई है।

लोगों के पास पैसा होने के बावजूद खर्च करने से बच रहे हैं क्योंकि उन्हें यह नहीं पता यह महामारी काल कितने दिनों तक और चलेगा। ऐसी सोच के कारण बाजार में मांग उत्पन्न नहीं हो पा रही है क्योंकि जिनके पास पैसा होगा वो वस्तुओं को खरीदने बाजार में जाएंगे तभी मांग उत्पन्न होगी और बाजार में मांग ही उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। अर्थव्यवस्था बहुत से लोग ऐसे है जिनकी जेबो में पैसा नहीं है।

लोगों के पास पैसा तभी आएगा जब लोगों के पास रोजगार होगा इस लॉक डाउन ने लोगों का रोजगार छीन लिया जिससे उत्पादन की प्रक्रिया बंद हो गई है और देश की जीडीपी लगातार घटती जा रही है और देश का ग्रोथ रेट नकारात्मक हो चुका है।

बाजार में मांग बढ़ाने या तरलता बढ़ाने में बैंकों की बड़ी भूमिका होती है लेकिन इस महामारी काल में सरकार ने लोगों को अपनी ईएमआई ना भरने की छूट देकर बैंकों की आय पर कुठाराघात किया है। इससे बैंकों की आय कम हो गई और बैंक बाजार में पैसा निवेश नहीं कर पा रहे वर्तमान परिस्थितियों के कारण लोग नया कर्ज लेने से भी कतरा रहे।

बैंकों को इस बात का भी डर है जो ईएमआई रुकी हुई है भविष्य में वह आप आएगी भी या नहीं। ऐसी स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था को चौतरफा दबाव महसूस करना पड़ रहा है उत्पादन पिट गया है, निवेश हो नहीं रहा है, बचत हो नहीं रहा है इससे स्वाभाविक है आर्थिक समृद्धि नकारात्मक रूप से प्रभावित ही होगी। अगर आगे की राह की बात करें तो ऐसी स्थिति से निकलने के लिए सरकार ही कुछ कर सकती है।

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वर्तमान सरकार अपने स्तर पर प्रयास भी कर रही हैं लेकिन सरकार को भी इस बात का अंदाजा नहीं था यह महामारी काल इतना लंबा खींच जाएगा ।सरकार को ऐसी स्थिति से देश की अर्थव्यवस्था को निकालने के लिए लोगों की हाथों में नगद पैसा देना होगा यूनिवर्सल बेसिक इनकम(सबको एक निश्चित राशि देने की योजना) के बारे में भी सरकार सोच सकती है । आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसे योजनाओं को चलाकर सरकार स्थिति में सुधार लाने की कोशिश तो कर रही है लेकिन सरकार की कोष की भी अपनी सीमाएं हैं ।

ऐसे में इसी बात की संभावना जताई जा सकती है की धीरे-धीरे ही सही बाजार में मांग को प्रेरित किया जाए निवेश को आकर्षित किया जाए और उत्पादन की प्रक्रिया को धीरे धीरे बढ़ाया जाए।
स्थानीय स्तर पर लोगों को उत्पादन की प्रक्रिया से जोड़ा जाए इसमें कोई दो राय नहीं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अभी बहुत दिन लग जाएंगे ऐसे में सरकार को समाज कल्याण संबंधी योजनाओं को ध्यान में रखते हुए विशेषकर गैर संगठित क्षेत्रों के लोगों को उत्पादन प्रक्रिया से जोड़ा जाना चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार है।)

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