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Uttarakhand : ओम पर्वत और ग्लेशियर्स पर ग्लोबल वार्मिंग का संकट

दस्तक ब्यूरो

उत्तराखंड के पर्यावरण, उसके पर्वतों, नदियों, झीलों, ग्लेशियर को बचाने के लिए अब देवभूमि के लोग काफी संवेदनशील हो गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चपेट से उत्तराखंड के पर्वतों, ग्लेशियर को बचाने की चिंता अब सभी को सता रही है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ क्षेत्र से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते पर जो ओम पर्वत पड़ता है, उससे इन दिनों ओम गायब हो गया है और यह पर्वत बर्फविहीन हो गया है और काला पड़ गया है। करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र रही ओम की आकृति भी गायब हो गई। देखने के लिए बचा है तो सिर्फ काला पहाड़। ओम पर्वत की ऐसी हालत देखकर स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटक और वैज्ञानिक भी हैरान और चिंतित है। बर्फ पिघलने से विश्व प्रसिद्ध ओम पर्वत से ॐ का गायब होना सही संकेत नहीं है। पर्यावरणविद और स्थानीय लोग वैश्विक तापमान में वृद्धि और उच्च हिमालयी क्षेत्र में हो रहे निर्माण कार्यों को इसके लिए दोषी मान रहे हैं। पिछले दिनों पिथौरागढ़ प्रवास पर अपने मूल गांव गुंजी गईं उर्मिला सनवाल गुंज्याल ने खुलासा किया कि वह इस महीने की 16 अगस्त को ओम पर्वत के दर्शन के लिए गई थीं। जब वह फोटो खींचने के लिए नाभीढांग गईं तो उन्हें ओम पर्वत पर बर्फ नजर नहीं आई। ओम गायब था जिससे उन्हें बहुत निराशा हुई।

उल्लेखनीय है कि कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील की व्यास घाटी में स्थित ओम पर्वत 5,900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर स्थित नाभीढांग से ओम पर्वत के दर्शन होते हैं। भारतीय पर्यावरण संस्थान उत्तराखंड के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पर्यावरण एवं जंतु विज्ञान विभाग गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बीडी जोशी का कहना है कि यदि इसी तरह से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मनुष्यों की आवाजाही बढ़ती गई और पहाड़ों में विकास के नाम पर, तीर्थाटन के नाम पर और पर्यटन के नाम पर लोगों की भीड़ बढ़ती गई और सड़कों का जाल पहाड़ों में अंधाधुंध तरीके से बिछाया जाता रहा और सुरंगें बनती रही तो एक दिन हमेशा के लिए उत्तराखंड के पहाड़ ग्लेशियर विहीन हो जाएंगे और ओम पर्वत हमेशा के लिए गायब हो जाएगा।

प्रोफेसर बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में मनुष्यों की आवाजाही जिस तरह से बढ़ रही है उससे मोटर-गाड़ियां भी पहाड़ में तेजी से आ रही है और ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और ध्वनि प्रदूषण भी पहाड़ों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। प्रोफेसर जोशी का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण केवल बर्फ को ही नहीं पिघलाता बल्कि इससे पहाड़ों में रहने वाले वन्य जीव और वनस्पतियां भी प्रभावित हो रही हैं और वन्यजीवों की प्रजनन की प्रक्रिया बाधित हो रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के चारों धामों के लिए खास तौर से बद्रीनाथ और केदारनाथ के लिए जो हेलीकॉप्टर सेवा युद्ध स्तर पर शुरू की गई है। उससे पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है क्योंकि इन हेलीकॉप्टर सेवाओं से वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जीव जंतुओं का रहना इस क्षेत्र में मुश्किल हो गया है।

उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियों को तुरंत रोका जाना चाहिए और अंधाधुंध तरीके से सड़कों, सुरंगों और मकानों के निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए। प्रोफेसर जोशी ने उत्तराखंड में पर्यटन और तीर्थाटन के नाम पर अंधाधुंध निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की मांग की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिथौरागढ़ में ओम पर्वत के दर्शन करने के बाद यहां पर्यटन और धार्मिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई। इस सीजन में गर्मी अधिक होने की वजह से तापमान में बढ़ोतरी हुई तो वहीं हिमालयी क्षेत्र में वाहनों की आवाजाही बढ़ने के कारण वातावरण में भी बदलाव आया, जिसका सीधा असर ओम पर्वत पर भी दिखाई दिया। ओम पर्वत चीन सीमा से लगे लिपुलेख दर्रे के पास है। इसकी ॐ आकृति के कारण ही यह पर्वत ओम पर्वत के नाम से पहचाना जाता है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि ओम पर्वत पर बनने वाली आकृति इस बार गायब हो गई है।

चमोली में एक और पिथौरागढ़ में चार ग्लेशियर झील ज्यादा संवेदनशील
इसके साथ ही थोड़ा कम संवेदनशील वाले चार झीलों को इ कैटेगरी और कम संवेदनशील चार झीलों को उ कैटेगरी में रखा है। अ कैटेगरी की पांच झीलों में से एक झील चमोली और चार झील पिथौरागढ़ जिले में हैं। इ कैटेगरी की चार झीलों में से एक चमोली, एक टिहरी और दो झीलें पिथौरागढ़ जिले में हैं। इसके साथ ही उ कैटेगरी की चार झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिले में मौजूद हैं, जो कम संवेदनशील है। ऐसे में गृह मंत्रालय ने सभी 13 ग्लेशियर झील में से अति संवेदनशील पांच झीलों जिसको अ कैटेगरी में रखा है, उस पर तत्काल ऐक्शन लेने के निर्देश दिए थे। इस बात को करीब पांच महीने का वक्त बीत चुका है, लेकिन अभी तक कोई भी टीम इन पांचों संवेदनशील ग्लेशियर झील के अध्ययन को नहीं भेज पाई है। हालांकि, आपदा विभाग के अनुसार चमोली जिले में मौजूद वसुधारा झील के लिए टीम तैयार की जा चुकी है जिसे जल्द ही भेजा जाएगा।

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