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समुद्री डकैतों केलिए खौफ बन कर उभर रही भारतीय नौसेना

विवेक ओझा

दुनिया के अलग-अलग सागरों, महासागरों की अहमियत सभी देशों के लिए है। बड़ा देश हो या कोई छोटा देश, सभी को समंदर के रास्ते व्यापार करना होता है। इसीलिए कहते हैं कि सागर सुरक्षित है तो समृद्धि सुरक्षित है। क्या हमने कभी यह गौर किया है कि मध्य पूर्व के देशों से अमेरिका, चीन या फिर भारत को ऊर्जा व्यापार किस तरीके से होता है। लाल सागर से होते हुए स्वेज नहर के रास्ते यूरोप को वस्तुओं की सप्लाई कैसे होती है। अरब सागर के रास्तों से तेल या कोयले से भरे जहाज भारत के पश्चिमी तटों पर कैसे पहुंचते हैं। इसका जवाब है महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गोंे के जरिए। इन समुद्री व्यापारिक मार्गों को इंटरनेशनल सी लाइंस ऑफ कम्युनिकेशन के नाम से जाना जाता है जो वैश्विक कानूनों के मुताबिक हर देश के लिए खुला रहता है यानी महासागरों के हर हिस्से में हर देश को फ्रीडम ऑफ नेविगेशन दिया गया है लेकिन इन अधिकारों को हरने का काम अगर किसी ने किया है तो चीन के बाद समुद्री डाकुओं ने ही किया है। हिंद महासागर के कई इलाकों में समुद्री डकैती जारी है। सोमालिया, इथोपिया, इरिट्रिया और जिबूती जैसे देशों के समुद्री डकैत समंदर में सामानों से भरे जहाज लूटने में लगे हैं और अब भारतीय नौसेना इनके लिए एक काल बनके उभरी है। भारतीय नौसेना ने अरब सागर और अदन की खाड़ी जैसे क्षेत्रों में मैरीटाइम सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए 35 समुद्री लुटेरों को पकड़कर उन्हें मुंबई लेकर आई। इस कार्यवाही को आईएनएस कोलकाता ने अंजाम दिया है।

भारतीय नौसेना ने समुद्री डकैतीरोधी अभियान (एंटी सी पायरेसी) के तहत अफ्रीकी देश सोमालिया के तट से इन 35 समुद्री डाकुओं को पकड़ा और आगे की कार्यवाही के लिए मुंबई पुलिस को सौंप दिया गया। इंडियन नेवी ने यह अभियान ऑपरेशन संकल्प नाम से चलाया और इसके तहत अपने जहाजों को अरब सागर और अदन की खाड़ी में तैनात किए। इसके बाद से लगातार इंडियन नेवी की तारीफ दुनियाभर में हो रही है। अमेरिकी नौसेना ने भारत की नौसेना की तारीफों केपुल बांध दिए हैं। निश्चित रूप से यह भारत की नेवी पर गर्व करने वाला क्षण है। यहां इस बात का जिक्र भी जरूरी है कि इंडियन नेवी के आधुनिकीकरण और जरूरी सुधारों से भारत सरकार ने किसी प्रकार का कोई समझौता पिछले 10 वर्षों में नहीं किया है जिसके चलते आज नेवी की ताकत निखर कर सामने आई है। इंडियन नेवी और साथ ही देश को गौरवान्वित महसूस कराने का अवसर मार्कोस कमांडोज ने दिया है। मार्कोस कमांडोज ने इंडियन नेवी के स्पेशल विंग के रूप में समुद्री आपदाओं के बीच सबसे बड़े रक्षक के रूप में काम किया है और वहीं समुद्री डकैतों और अन्य अपराधियों के लिए भक्षक की भूमिका निभाई है।

भारतीय नौसेना आक्रामकता के साथ मानवतावादी भी
भारतीय नौसेना ने हाल के समय में समुद्री लुटेरों के खिलाफ विभिन्न अभियानों में 100 से अधिक लोगों को बचाया है। इनमें से 27 पाकिस्तानी और 30 ईरानी भी शामिल हैं। भारतीय नौसेना इस समय अरब सागर में समुद्री डकैतीरोधी अभियान ‘ऑपरेशन संकल्प’ भी चला रही है। इंडियन नेवी ने अन्य मिशनों के साथ ही हमले की 13 घटनाओं का जवाब देकर 110 लोगों की जान बचाई है जिनमें 45 भारतीय और 65 अंतरराष्ट्रीय नागरिक शामिल थे। अरब सागर में अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए भारतीय नौसेना ने समुद्री डकैती या ड्रोन हमलों को विफल करने के लिए इस क्षेत्र में निगरानी विमानों के साथ 10 युद्धपोतों की भी तैनाती की है। भारतीय नौसेना ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कार्गो ट्रैफिक को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अरब सागर और आसपास के क्षेत्रों में समुद्री लुटेरा और ड्रोनरोधी अभियान चलाने के लिए पी-8आई निगरानी विमान, सी गार्डियन ड्रोन और बड़ी संख्या में कर्मियों के साथ युद्धपोतों को तैनात किया है।

इंडियन नेवी के मार्कोस कमांडोज की भूमिका
मार्कोस कमांडोज इंडियन नेवी का विशेष विंग है जिसे पानी के साथ-साथ हवा और जमीन पर भी मारक कार्यवाही के लिए तैयार किया गया है। दुश्मनों को निशाना बनाने का इनका तरीका नायाब है। ये अपने को किसी भी रूप में ढाल लेने में सक्षम हैं। इन्हें समंदर का सिकंदर और चलता फिरता प्रेत जैसे नाम से भी जाना जाता है। कुछ ही समय पहले मार्कोस कमांडोज ने अरब सागर में लाइबेरिया के झंडे वाला एक कार्गो शिप एमवी लीला नोरफोक पर फंसे लोगों को बचाया था। ये शिप ब्राजील में रियो डी जिनेरियो से बहरीन के खलीफा बिन सलमान पोर्ट तक यात्रा करने वाला था और इस मालवाहक जहाज में लौह अयस्क लदा हुआ था। एमवी लीला जब सोमालिया के तट से गुजर रहा था, तभी उस पर 5 से 6 हथियारबंद समुद्री लुटेरों ने हमला किया और जहाज पर कब्जा कर लिया। इस जहाज़ पर सवार 21 में से 15 क्रूमेंबर्स भारतीय थे। लिहाजा एक्शन में आई इंडियन नेवी और नेवी के बेस्ट ऑफ द बेस्ट कहे जाने वाले मार्कोस कमांडोज़। मार्कोस के शिप पर पहुंचने और रेस्क्यू करने तक सारे समुद्री लुटेरे जहाज छोड़कर भाग चुके थे।

मार्कोस कमांडोज से घबराते हैं लुटेरे
मार्कोस कमांडोज की तुलना अमेरिका के नेवी सील्स से किया जाता है और कुछ मामलों में तो ये यूएस नेवी कमांडो से भी बेहतर कार्य करते हैं। गौरतलब है कि अमेरिकी सेना की एक एलीट फोर्स है नेवी सील्स। नेवी सील्स ने ही 2011 में ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में उसके घर में घुसकर मारा था। सील्स का मतलब है सी, एयर एण्ड लैन्ड यानि वो सैनिक जो जमीन, आसमान और पानी, तीनों में लड़ने में सक्षम होते हैं। नेवी सील्स की ही तर्ज पर भारतीय सेना के तीनों अंगों के पास अपनी एलीट फोर्स है। इंडियन आर्मी की स्पेशल फोर्सेज हैं पैरा स्पेशल फोर्स, एयरफोर्स में गरुड़ कमांडोज और इंडियन नेवी के लिए मार्कोस। मार्कोस यानी मरीन कमांडो फोर्स का निकनेम क्रोकोडाइल होता है क्योंकि ये किसी मगरमछ की तरह ही पानी के अंदर मिशन को अंजाम देने में सक्षम होते हैं। इनका ध्येय वाक्य है दि फ्यू, दि फीयरलेस। मार्कोस देश के शक्तिशाली कमांडो बल में से एक होते हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, पैरा कमांडो, गरुड़, फोर्स वन जैसे सुरक्षा बल का ही हिस्सा होते हैं।

भारत में मार्कोस का गठन साल 1987 में हुआ था। मार्कोस कमांडो सबसे खतरनाक लड़ाके इसलिए भी माने जाते हैं क्योंकि भारतीय नौसेना के मार्को या मरीन कमांडो फोर्स में सबसे कठिन ट्रेनिंग से तैयार सैनिक शामिल किए जाते हैं। इन कमांडो को अमेरिकी नेवी सील्स की तर्ज पर तैयार किया जाता है जो तेज और गुप्त रिएक्शन के लिए जाने जाते हैं। मार्कोस कमांडो बेहद खतरनाक ट्रेनिंग करके मार्कोस का हिस्सा बनते हैं। मार्कोस कमांडो को समुंदर का सिकंदर भी कहा जाता है। पानी में मौत को मात देने में इस कमांडो को महारथ हासिल है। पानी में स्पेशल ऑपेरशन्स के लिए ही इन्हें ट्रेंड किया जाता है। मार्कोस कमांडो को अनकंवेंशनल वॉरफेयर, होस्टेज रेस्क्यू, पर्सनल रिकवरी जैसी कई मुहिम में शामिल किया जाता रहा है। मार्कोस कमांडो हर परिस्थिति में ऑपरेशन के लिए तैयार रहते हैं। ऑपरेशन कैक्टस, ऑपरेशन लीच, ऑपरेशन पवन के साथ ही चक्रवात ऑपरेशन में भी मार्कोस कमांडो ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। खासतौर पर इन कमांडो ने 26/11 के हमलों के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया था। मार्कोस ने 2008 में ताज होटल में हुए हमले में शुरुआती चरणों में मदद भी की थी।

समुद्री डकैती के लिए चर्चित है हॉर्न ऑफ अफ्रीका
हॉर्न ऑफ अफ्रीका पूर्वोत्तर अफ्रीका में एक प्रायद्वीप है। अफ्रीकी मुख्य भूमि के पूर्वी भाग में स्थित यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा प्रायद्वीप है। यह लाल सागर की दक्षिणी सीमा के साथ स्थित है तथा गार्डाफुई चैनल, अदन की खाड़ी और हिंद महासागर में सैकड़ों किलोमीटर तक फैला हुआ है। अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र भूमध्य रेखा और कर्क रेखा से समान दूरी पर है। हॉर्न में इथियोपियाई पठार, ओगाडेन रेगिस्तान, इरिट्रिया और सोमालियाई तटों के ऊंचे इलाकों के जैवविविधता वाले क्षेत्र शामिल हैं। अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया के देशों वाले क्षेत्र को दर्शाता है। इस क्षेत्र ने साम्राज्यवाद, नव उपनिवेशवाद, शीत युद्ध, जातीय संघर्ष, अंतर-अफ्रीकी संघर्ष, गरीबी, बीमारी, अकाल आदि का अनुभव किया है। हॉर्न ऑफ अफ्रीका देशों सोमालिया, इथोपिया इरिट्रिया और जिबूती में अत्यधिक गरीबी, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं के अभाव के चलते समुद्री डकैती बहुत से लोगों के लिए एक व्यवसाय सा बन गई है।

हॉर्न ऑफ अफ्रीका का महत्त्व
अफ्रीका में राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा कारणों से भारत की दिलचस्पी बढ़ रही है, विशेष रूप से उपक्षेत्र- हॉर्न ऑफ अफ्रीका। हॉर्न ऑफ अफ्रीका रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक क्षेत्र के निकट है। मध्य-पूर्व में उत्पादित तेल का लगभग 40 प्रतिशत लाल सागर की शिपिंग लेन से होकर गुजरता है। जिबूती इस शिपिंग रूट का मुख्य बिंदु है। यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और चीन जैसे देशों का जिबूती में सैन्य अड्डा है। भारत के आर्थिक विकास के लिए संचार की नई समुद्री लाइनों पर निर्भरता के साथ दिल्ली ने घोषणा किया कि उसके राष्ट्रीय हित अब उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अदन से मलक्का तक विस्तृत हैं।

समुद्री डकैती जैसी घटनाओं का कारण और समाधान
समुद्री डकैती को कई कारक बढ़ावा देते हैं। इनमें अशिक्षा, असाक्षरता, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, विकास का अभाव शामिल हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन और समुद्री अपराध के बीच संबंध होने की बात भी सामने आई है। शोधकर्ताओं ने समुद्र के तापमान और दक्षिण चीन सागर और पूर्वी अफ्रीका के समुद्री क्षेत्र में पिछले 15 वर्षों के दौरान हुई समुद्री डकैती की घटनाओं का विश्लेषण किया है। यह दोनों ही क्षेत्र ऐसे हैं जहां बड़े पैमाने पर समुद्री डकैती की घटनाएं सामने आई हैं। हालांकि इन दोनों क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एकदम उलट है, जहां समुद्र में बढ़ता तापमान पूर्वी अफ्रीका में मछली उत्पादन में गिरावट के साथ जुड़ा है। वहीं दूसरी तरफ यह दक्षिण चीन सागर में मछलियों के वृद्धि की वजह है। कई शोधों में पता चला है कि बढ़ते तापमान के कारण मछलियों के उत्पादन में गिरावट आई है, जिसके कारण पूर्वी अफ्रीका में समुद्री डकैती की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इसके कारण आर्थिक अवसरों को नुकसान पहुंचा है। वहीं इसके विपरीत दक्षिण चीन सागर में जहां वाणिज्यिक रूप से पकड़ी जाने वाली मछलियों की कुछ प्रजातियां गर्म पानी में कहीं बेहतर फल-फूल रहीं हैं, वहां मछली उत्पादन में वृद्धि से मछली पकड़ने से जुड़े परिवारों की आय में वृद्धि हुई है। इससे अपराधों की ओर प्रोत्साहन में गिरावट हुई है। पहले किए गए शोध भी इस ओर इशारा करते हैं कि आर्थिक असुरक्षा किसी व्यक्ति को अपराध की राह पर जाने की सोच को प्रभावित कर सकती है। वहीं मछली पकड़ने जैसे व्यवसायों को देखें जो सीधे तौर पर पर्यावरण से जुड़े हैं उनपर जलवायु परिवर्तन के व्यापक असर पड़ने की आशंका है।

शोधकर्ता बो जियांग का कहना है कि परिणामों से पता चलता है कि जैसे-जैसे जलवायु में बदलाव जारी है, हिंसा और आपराधिक व्यवहार पर इसका जटिल प्रभाव होगा। इससे यह भी सामने आता है कि कौन अपराधी है या हो सकता है। उनके मुताबिक जब आर्थिक स्थिति खराब होती है तो यह मछुआरे अपराध का सहारा लेने लगते हैं। वहीं जैसे ही स्थिति सुधरती है, वो इससे बाहर निकल जाते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यह परिणाम वैश्विक अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले एक और गंभीर प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। प्रोफेसर गैरी लाफ्री ने जानकारी दी है कि वैश्विक व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं क्षेत्रों से आता है। जो कई अरबों डॉलर का है। ऐसे में अगर इसे ऐसे ही नजरअंदाज कर दिया जाए तो इन क्षेत्रों में समुद्री डकैती का एक बड़ा आर्थिक प्रभाव हो सकता है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।

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