सकल-परिवर्तन के शिल्पी मोदी
स्तम्भ: बहुत बदले हैं नरेंद्र मोदी, राजनीतिक आकार में, निजी प्रभाव में, वैश्विक व्यापकता में और कीर्ति में। कल तक अमरीका उन्हें वीजा नहीं दे रहा था। आज राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चलकर उनके जिले में आये। कल दो लाख वर्ग किलोमीटर की भूमि के मुख्यमंत्री पद से उन्हें बर्खास्त किया जा रहा था। अब वे तैंतीस लाख वर्गकिलोमीटर भूमि के प्रधानमंत्री दोबारा बन गए। सोमनाथ से अयोध्या रथ से आने के बीच बिहार के जेल में डाले गए। आज वे अयोध्या में भव्य मन्दिर का शिलान्यास कर आये हैं ।
मोदी के खौफ से आक्रामक विस्तारवादी लाल चीन आज भारतीय जमीन से हट रहा है। सरकार को अपनी तर्जनी से संचालित करने वाली सोनिया गाँधी, अब मोदी के साठ प्रतिशत लोकसभाइयों की तुलना में सदन की दस प्रतिशत भी नहीं रहीं। मोदी का आकार ही नहीं उनके राजबल का भी विस्फोट हुआ है।
विश्लेषक और दर्शक आज बेझिझक यह तो मानेंगे ही कि बहत्तर वर्षीय बूढ़े भारत में आज नवयौवन का संचार तो हुआ है। भले ही अगले माह (15 सितम्बर) उसके प्रधानमंत्री सत्तर साल के हो जायें। सोमनाथ से अयोध्या तक में मात्र सारथी रहे नरेंद्र दामोदर मोदी का श्रेष्ठतम नयापन यही रहा कि अब जहाँ खण्डहर था, वहीँ चन्द दिवस पूर्व उन्होंने भव्य मन्दिर का शिलान्यास कर दिया। इतिहास रचा। हिन्दूमन को प्रफुल्लित कर दिया। सबसे नया अजूबा पांच सदियों बाद कर दिखाया। इसीलिए राष्ट्रीय इतिहास में उनका स्थान तो अब अमर हो गया।
मोदी के घोरतम आलोचक भी नकार नहीं सकते कि भारत जो 2020 में है, वह 2014 (सोलहवीं लोकसभा निर्वाचन) के बाद बहुत ज्यादा बदल गया है। नूतन हुआ है। अधिक समग्रता लिए है। ज्यादा ताकतवर है। न ढीला है, न डिग सकता है। इस सकल-परिवर्तन के शिल्पी नरेंद्र मोदी ही हैं।
पिछले दशक में करीब सभी दल (भाजपा के आडवाणी खेमे को मिलाकर), पिले पड़े थे कि नरेन्द्र मोदी साबरमती पार कर यमुना तट न पहुँच पायें। मगर मोदी थे कि वे हस्तिनापुर के सिंहासन को हथियाने पर तुले रहे। पानीपत की चौथी लड़ाई की घोषणा तब हो ही गयी थी। इसके सेनापति खुद मोदी ही थे। अतः कयास तब था कि क्या यवनिका पतन के पूर्व वे प्रधानमंत्री बन जायेंगे अथवा आधुनिक इतिहास में मात्र फुटनोट बनकर रह जायेंगे।
उन्होंने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी थी कि भारत को स्वयं बदलना पड़ा। ये सब के सब बिन्दु आधारित हैं: सदियों से चले आ रहे हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों पर, राज्य की अर्थनीति पर, एशियाई कूटनीति पर, सैन्यशक्ति के विस्तारीकरण पर, विधि व्यवस्था को मज़हबी फन्दे से मुक्त कराने पर और मूलभूत नागरिक समानता को नैसर्गिक न्याय पर स्थापित करने पर। ये सारी विकृतियाँ सुलतानों और कांग्रेसियों ने इस प्राचीन राष्ट्र पर थोपी थी। प्रतिरोध की धुन को मोदी आरोह पर ले गये, बदलाव की सुगबुगाहट तेज कर दी। मोदी ने भारत को झकझोरा।
वे रहें अथवा जायें, पर देश के कलेवर ने अपना रूपरंग बदल डाला। मसलन तीन राष्ट्रीय मुद्दों पर मोदी को राजधर्म सिखानेवाले अटल बिहारी वाजपेयी ने सभी पर समझौता कर लिया था, सत्ता के समीकरण बनाने के खातिर। मूलतः हिन्दुओं की इस पार्टी ने रंग बदलने में गिरगिट को मात कर दिया था। मोदी ने उसके पुराने रंग को प्रांजल कर मूल भगवा वर्ण को लौटाया, भाजपा को स्वाभाविक रूप दिया। जैसे संविधान की धारा 370 को निरस्त करने की मांग पूरी की। अल्लामा इकबाल के इमामें हिन्द राजा राम को ठौर दिलाया। मोदी आस्था पर सौदा नहीं चाहते थे। राजपाट भले ही न मिलता।
आठवीं लोकसभा (1984) में दो कस्बों (हनमकोंडा और मेदक) तक सिकुड़ी भारतीय जनता पार्टी ने सोलहवें सदन में 303 जीता। ईशान से नैऋत्य तक पार्टी को मोदी ने फैला दिया । चुनाव में राष्ट्रीयता को मोदी ने ठोस रूप दिलाया, जब भाजपा ने अपने प्रत्याशियों, हिमाच्छादित बौद्ध लद्दाख से तटवर्ती कन्याकुमारी तक, रेगिस्तानी कच्छ से जमदग्निभूमि अरुणाचल प्रदेश तक में कमल खिला दिया। भूगोल पर कब्जा भी कर दिखाया। भूशास्त्र के छात्र अब भाजपाई सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र को याद कर भारत के चारों सीमावर्ती इलाके को रेखांकित करने में सुगमता पाएंगे।
प्रधानमंत्री पद पर आसीन होकर नरेंद्र मोदी पंडित अटल बिहारी वाजपेयी से सर्वथा भिन्न रहे। इसके तर्कसम्मत कारण हैं। अटलजी समीकरण की देन थे। विपन्न मोदी संघर्ष की उपज हैं। तब भी राम को घर दिलाना, कश्मीर का संवैधानिक विलय और सभी भारतीयों का एक पत्नीव्रत होना, चुनाव घोषणापत्र का अभिन्न हिस्सा बनाया और पाया। पूर्व में गठबंधन का अंकगणित हल करने में अटलजी ने इन तीनों मुद्दों पर समझौता कर लिया था।
पुलवामा में हुए शहीदों की तेरहवीं को नरेंद्र मोदी ने अत्यंत वीरोचित रिवायत से (2019) निष्पादित कराया। इस्लामी पाकिस्तान के सीमापार आतंकी शिविरों पर बम बरसा कर भारत ने बता दिया कि फौजी दबंगई का जवाब होता है। दे भी दिया गया। इसी क्षेत्र में आठवीं सदी के उमय्याद आततायी गाजी इमदादुद्दीन मोहम्मद बिन कासिम के काल से चली आ रही फौजी दहशतगर्दी का माकूल उत्तर मोदी ने दिया। इसी कासिम को इस्लाम अपनाने वाले गुजराती हिंदु वणिकपुत्र मोहम्मद अली जिन्ना ने “प्रथम पाकिस्तानी” करार दिया था।
भारतीय कभी “आँख में भर लो पानी” वाला गीत गाया करते थे। उनके अगुवा थे जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने कश्मीर गँवाया, फिर अक्साई चीन (लद्दाख) और बोमडिला (अरुणांचल) को कटते देखा। मगर मोदी ने सूक्ति बदल डाली। आज का नारा है, “जहाँ हमारा लहू गिरा है, वह कश्मीर हमारा है।”
अंत में एक खास विषय है। मोदी तर्जनी और मध्यमा उँगलियों को उठाकर अंग्रेजी का “वी” अक्षर दिखाते हैं। अर्थात विजय या विक्टरी। यह मशहूर मुद्रा हिटलर को हराने के बाद विंस्टन चर्चिल ने बनाई थी। तब इस ब्रिटिश राजनयिक ने सुझाया भी था कि पराजय पर निर्भीक होकर ललकारना, मगर विजय पर विनयशील होना चाहिए।
इस दृष्टि से गुजरात के मुख्यमंत्री से भारत के प्रधानमंत्री बननेवाले मोदी अपनी सोच के फलक को व्यापक बनायें, प्रतिपक्ष के प्रति अपनी दृष्टि को संवेदनशील बनाएं, क्योंकि बुलंद अट्टालिकाएं जमीन पर से ऊपर उठती हैं और धराशायी होकर धरती पर ही आ गिरती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)