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सिर्फ़ 40 रु. के लिए हिमाचल से दिल्ली तक दौड़े लेखराज

हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव में रहने वाले 70 साल के लेखराज ने 40 रुपये वापस पाने के लिए तीन साल तक संघर्ष किया. इसके लिए वह दिल्ली तक आए और हजारों रुपये खर्च किए. जिला, राज्य और फिर राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपने केस को लेकर जाने वाले लेखराज की जीत हुई और राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन ने राज्य विकास अथॉरिटी को उन्हें 40 रुपये वापस करने का आदेश दिया.

कमीशन के अध्यक्षत जस्टिस डीके जैन ने लेखराज के धैर्य और साहस की प्रशंसा की और उन्हें 5000 रुपये का मुआवजा भी दिया. यह रकम उन्होंने जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन में अपने तर्कों को रखने के लिए खर्च किया था.

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एपेक्स कंज्यूमर पेनल ने कहा, यह केस एक प्रबुद्ध सीनियर सिटिजन का एक परफेक्ट उदाहरण है. वह तब तक अडिग रहे जब तक यह साबित नहीं कर दिए कि सेवा में लापरवाही हुई है और वह निर्दोष हैं.

क्या है मामला

हिमाचल प्रदेश आवास और शहरी विकास प्राधिकरण ने लेखराज को एक घर अलॉट किया था. वहां बाकी मेंटेनेंस अमाउंट नहीं जमा करने पर उनपर डंडात्मक रुप से 40 रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. उन्हें धमकी दी गई कि यह पैसा वह नहीं जमा करते हैं तो घर की साधारण सुविधाएं जैसे पानी और सीवरेज का कनेक्शन काट दिया जाएगा. कोई विकल्प नहीं मिलने पर लेखराज ने 40 रुपये के डंड के साथ मेंटेनेंस अमाउंट जमा कर दिया.

जिला फोरम में की शिकायत
लेखराज ने इसके बाद जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत की, लेकिन वहां से भी उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. फरवरी 2016 में फोरम ने उनकी शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अतिरिक्त डिमांड एलॉटमेंट लेटर में लिखे नियम और शर्तों के आधार पर लिया गया है.

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राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम पहुंचे
इस आदेश के खिलाफ लेखराज राज्य उपभोक्ता कमीशन शिमला पहुंचे. लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा मिली और जिला फोरम के आदेश को बरकरार रखा गया. इसके बाद लेखराज दिल्ली पहुंचे और यहां राष्ट्रीय कमीशन के सामने अपना पक्ष रखा और हिमाचल प्रदेश विकास प्राधिकरण की मनमानी की शिकायत की.

राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम से मिला न्याय
यहां पर कमीशन ने प्वाइंट आउट किया कि प्राधिकरण ने यह नहीं दिखाया है कि किस आधार पर लेखराज से 808 रुपये की जगह 848 रुपये का भुगतान कराया. ऐसा निर्णय कहीं भी विकास प्राधिकरण के रिकॉर्ड में भी नहीं है. इसके बाद कमीशन ने प्राधिकरण को काम में लापरवाही के साथ-साथ लेखराज के अनुचित उत्पीड़न का आरोपी माना. कमीशन ने प्राधिकरण को 4 हफ्ते के अंदर 40 रुपये वापस करने का आदेश दिया है. साथ ही पूरे केस में खर्च पांच हजार रुपए भी लेखराज को देने का निर्देश दिया है.

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