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कांग्रेस राजीव गांधी की हत्या में दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाएगी

नई दिल्ली : पार्टी प्रवक्ता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया, ‘कांग्रेस ने सैद्धांतिक रूप से यह फैसला किया है कि इस संबंध में पुनर्विचार की मांग की जाएगी. हमने अभी तौर-तरीकों पर निर्णय नहीं लिया है कि हम सरकार की पुनर्विचार याचिका में हस्तक्षेप करेंगे या अलग से हस्तक्षेप करेंगे.’

इससे पहले, बीते 17 नवंबर को केंद्र सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी. केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि वह इस मामले में एक आवश्यक पक्षकार रहा है, लेकिन उसकी दलीलें सुने बिना ही पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को रिहा करने का आदेश पारित किया गया.

शीर्ष अदालत ने बीते 11 नवंबर को नलिनी श्रीहरन सहित छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया था. न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा अपराधियों की सजा में छूट की सिफारिश के आधार पर यह आदेश दिया था.

न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मामले के दोषियों में से एक आरोपी एजी पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला, इस मामले में भी लागू होता है.

पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा करने का आदेश देने के बाद पैरोल पर बाहर नलिनी ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2022 को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने 30 साल से अधिक जेल की सजा पूरी कर ली थी. न्यायालय के आदेश के बाद नलिनी के अलावा आरपी रविचंद्रन, संथन, मुरुगन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार जेल से बाहर आ गए.

मालूम हो कि तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हो गई थी. महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी.

इस हमले में धनु सहित 14 अन्य लोगों की मौत हो गई थी. गांधी की हत्या देश में संभवत: पहली ऐसी घटना थी, जिसमें किसी शीर्षस्थ नेता की हत्या के लिए आत्मघाती बम का इस्तेमाल किया गया था. राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषी नलिनी श्रीहरन, आरपी रविचंद्रन, एजी पेरारिवलन, संथन, मुरुगन, जयकुमार और रॉबर्ट पायस हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में सात दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. मई 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से चार (पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी) को मौत और अन्य तीन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. साल 2000 में नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन सहित अन्य तीन मौत की सजा को कम कर दिया था.

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