जब अटलजी की सादगी देख चकित हुए थे लोग, रिक्शे पर प्रचार करने निकल पड़े थे वाजपेयी
नई दिल्ली : बात 1960 की है। तब भारतीय जनता पार्टी (BJP) का वजूद नहीं था। उस समय भारतीय जनसंघ हुआ करता था और पार्टी के नेता जनसंघ का प्रचार-प्रसार सादगीपूर्ण तरीके से किया करते थे। इस राजनीतिक दल (political party) का गठन 21 अक्टूबर 1951 को तीन लोगों श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर किया था। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी इसी पार्टी से जुड़े। वह 1969 से 72 तक इसके अध्यक्ष भी रहे थे।
तो 1960 में अटल बिहारी वाजपेयी अपनी पार्टी के प्रचार के सिलसिले में बिहार के नवादा पहुंचे थे। उस वक्त नवादा जिला नहीं बना था और यह गया जिले का एक अनुमंडल हुआ करता था। वाजपेयी जी ट्रेन से नवादा पहुंचने वाले थे। उनके स्वागत और शहर में जाने के लिए एक रिक्शा की व्यवस्था तब के जनसंघ के स्थानीय नेता गौरीशंकर केसरी ने कर रखी थी। ट्रेन आई लेकिन वाजपेयी जी किसी को नहीं दिखे।
बाद में पता चला कि वाजपेयी जी ट्रेन से उतरकर पूछते हुए सीधे जनसंघ के कार्यालय पहुंच गए हैं। जब केसरी जी अपने समर्थकों के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि वाजपेयी जी बैठे हुए हैं। केजरीजी ने जब बताया कि वे लोग उन्हें लेने स्टेशन गए थे और एक रिक्शा की भी व्यवस्था कर रखी थी तो वाजपेयी जी नाश्ता करने के बाद उसी रिक्शा पर शहर में घूमने चल दिए।
केसरीजी के परिजनों ने इस घटना को याद करते हुए बताया कि अटल जी ने खुद रिक्शे पर से अपनी ही सभा का प्रचार किया था और कहा था कि शाम चार बजे प्रजातंत्र चौक पर आइए, वहां अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण है। जब लोग शाम में चौक पर पहुंचे तो देखा कि ये तो वही लोग हैं, जो रिक्शे पर प्रचार कर रहे थे।
वाजपेयी जी का भाषण सुनने को उत्सुक भीड़ में से कुछ लोगों ने पूछ लिया कि वाजपेयी जी कहां हैं? तब माइक संभालते हुए अटल जी ने कहा,”रिक्शा वाले अटल ही इस चौक पर ‘वाजपेयी’ हूं। जी हां, मैं ही अटल बिहारी वाजपेयी हूं।” यह सुनकर लोग चकित हो गए। नवादा के लोग लंबे समय तक वाजपेयी जी की सादगी की इस अदा के कायल थे। बाद में अटल जी ने 1984, 1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी नवादा पहुंचकर चुनाव प्रचार किया था।