व्यापार

भारतीय परिवारों की बचत पांच साल के निचले स्तर पर, पैसा खर्च करने से डर रहे लोग

नई दिल्‍ली : इस महीने जब महंगाई के आंकड़े आए तब ये अनुमान लगाया जाने लगा कि दुनिया में बढ़ती महंगाई और मंदी से भारत को नुकसान नहीं होगा, लेकिन आज के इस रिपोर्ट ने इन सभी सवालों और जवाबों को काफी पीछे छोड़ दिया है। 2021-22 में भारतीय परिवारों की बचत पांच साल के निचले स्तर पर आ गई है। लोग खर्च करने से हिचक रहे हैं और उनकी प्राथमिकता सेविंग करनी हो गई है।

भारत में अब बहुत गरीब लोगों की संख्या काफी कम हो गई है। यानि गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों की तुलना में मध्यम वर्ग की संख्या काफी अधिक है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि भारत में रहने वाली आधी से अधिक आबादी मिडिल इनकम क्लास से आती है। कोरोना काल में नौकरी जाने के बाद से लोगों को सेविंग के तरफ फोकस करने पर मजबूर होना पड़ा था। स्थिर आय के अभाव में लोगों के लिए अपना घर चलाने के लिए बचत ही अंतिम उपाय था।

2020-21 में 15.9 प्रतिशत की तुलना में 2021-22 में परिवारों की सकल वित्तीय बचत 10.8 प्रतिशत रही है। पिछले तीन वित्तीय वर्षों में यह 12 फीसदी थी। हालांकि शुरू में लॉकडाउन के दौरान लोगों ने स्वास्थ्य पर खर्च करने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपने धन को बचाया। एक बार प्रतिबंधों में ढील के बाद वे खर्च करने में लग गए, जिसे अर्थशास्त्रियों ने ‘बदला खर्च’ कहा था। इसका असर इकोनॉमी पर भी देखने को मिली। भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से रिकवरी मोड में चली गई।

इससे उनकी बचत में कमी आई और एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जब खर्च आय से अधिक हो गया और ऐसे मामले तब थे जब कोई नौकरी नहीं होने के बावजूद खर्च बढ़ गया और बचत इस अतिरिक्त या बदले के खर्च का खामियाजा भुगत रही थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, घरेलू बचत के आंकड़े 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक गिर गए, जबकि बीमा, भविष्य निधि और पेंशन फंड जैसे अन्य बचत राशियों का हिस्सा सकल वित्तीय बचत का 40 प्रतिशत तक चला गया।

2021-22 में शेयरों और डिबेंचर का हिस्सा भी 8.9 प्रतिशत के पांच साल के उच्च स्तर पर था, जबकि छोटी बचत की हिस्सेदारी 16 साल के उच्च स्तर 13.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। एक कंसल्टेंसी फर्म के अनुसार, बचत में गिरावट के पीछे उच्च महंगाई प्रमुख कारण रही है और निवेश बढ़ाने के लिए बचत को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

देश की बचत में भारतीय परिवारों की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है, लेकिन इसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है। कम घरेलू बचत उधारकर्ताओं को विदेशी बाजारों में उजागर करती है, भारत की बाहरी स्थिति को कमजोर करती है और बाहरी ऋण को बढ़ाती है, जो भारतीय इकोनॉमी के लिए अच्छा नहीं है। इसका लॉन्ग टर्म में नुकसान होने का खतरा रहता है। भारत की बचत दर 15 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, क्योंकि वित्त वर्ष 2020 में सकल घरेलू बचत जीडीपी का 30.9 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2012 में 34.6 प्रतिशत के शिखर से नीचे थी। घरेलू बचत 2012 में जीडीपी के 23 प्रतिशत से गिरकर 2019 में 18 प्रतिशत हो गई थी।

Related Articles

Back to top button