राजनीतिज्ञों से लेकर आम आदमी तक उपहार में पुस्तकें बांटने का जुनून
विकासशील जीवन के लिए पुस्तकों का साथ होना आवश्यक है, अनिवार्य है, क्योंकि पुस्तकों में उसे जीवन का मार्गदर्शक प्रकाश स्रोत मिलता है। वस्तुतः संसार के सभी भीषण सागर में डूबते उतराते मनुष्य के लिए पुस्तकें उस प्रकाश स्तम्भ की तरह सहायक होती हैं जैसे समुद्र में चलने वाले जहाजों को मार्ग दिखाने वाले प्रकाशगृह। अच्छी पुस्तकें एक विकसित मस्तिष्क का ‘ग्राफ’ होती हैं। मिल्टन ने कहा है ‘अच्छी पुस्तक एक महान आत्मा का जीवन रक्त है।” क्योंकि उसमें उसके जीवन का विचारसार सन्निहित होता है। व्यक्ति मर जाते हैं लेकिन ग्रन्थों में उनकी आत्मा का निवास होता है। ग्रन्थ सजीव होते हैं। इसीलिए मिल्टन ने कहा है “ग्रन्थों में आत्मा होती है। सद्ग्रन्थों का कभी नाश नहीं होता।” पुस्तकों पर सिसरो ने कहा है “ग्रन्थ रहित कमरा आत्मा रहित देह के समान है।”
लोकमान्य तिलक ने कहा है- मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि जहाँ ये रहेंगी वहाँ अपने आप ही स्वर्ग बन जायेगा।” शायद इसी लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी से यह आग्रह किया कि अब फूलों के गुलदस्तों की जगह लोग उपहार मे पुस्तक दे और मोदी जी की इसी बात को अपने अंदर सहज ही उतार लिया शैक्षिक चिन्तक, समाजसेवी तथा स्वतंत्र पत्रकार प्रदीप कुमार सिंह ने। इनका जुनून कुछ ऐसा की सब कुछ पुस्तकों में रच बस गया। प्रदीप कुमार सिंह अब तक हजारों पुस्तकें बाँट चुके हैं, जिनमें शैक्षिक, आध्यात्मिक, महापुरूषों की ज्ञानवर्धक जीवन गाथायें शामिल रहती हैं। पुस्तकों पर प्रदीप कुमार सिंह कहते हैं कि सच्चे, निःस्वार्थी तथा आत्मीय मित्र मिलना कठिन है। हममें से बहुतों को इस सम्बन्ध में निराश ही होना पड़ता है। लेकिन अच्छी पुस्तकें सहज ही हमारी सच्ची मित्र बन जाती हैं। वे हमें सही रास्ता दिखाती हैं। जीवन पथ पर आगे बढ़ने में हमारा साथ देती है।
महात्मा गांधी ने कहा है- अच्छी पुस्तकें पास होने पर हमें भले मित्रों की कमी नहीं खटकती। वह कहते हैं कि जीवन में अन्य सामग्री की तरह हमें उत्तम पुस्तकों का संग्रह करना चाहिये। जीवन के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डालने वाले, विविध विषयों के उत्तम ग्रन्थ खरीदने के लिए खर्च के बजट में सुविधानुसार आवश्यक राशि रखनी चाहिए। कपड़े, भोजन तथा मकान की तरह ही हमें पुस्तकों के लिए भी आवश्यक खर्चे की तरह ध्यान रखना चाहिए। स्मरण रखिए उत्तम पुस्तकों के लिए खर्च किया जाने वाला पैसा उसी प्रकार व्यर्थ नहीं जाता जिस तरह अँधेरे बियावान जंगल में प्रकाश के लिए खर्च किए जाने वाला धन।
पुस्तकों की इस दीवानगी में प्रदीप कुमार सिंह ने अब तक बड़े राजनीतिज्ञों से लेकर स्कूली बच्चों तथा आम आदमी तक पुस्तकों का वितरण कर चुके हैं। साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात के अनुसार पुस्तक वितरण अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। मन में सेवा भाव और बगल में पुस्तकों से भरा थैला लिए प्रदीप कुमार सिंह अधिकतर समारोहों में दिख जाते हैं। प्रदीप कुमार सिंह ने प्रदेश के बाहर भी पुस्तकों का वितरण किया है। ज्ञान बांटने की यह मिसाल विरलों में ही मिलेगी। प्रदीप कुमार सिंह ने पुस्तकों के वितरण का एक एलबम तथा इस सन्दर्भ में अखबारों में प्रकाशित समाचारों की कटिंग्स संकलित करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को डाक द्वारा भेजा है। आखिर में वह कहते हैं कि पुस्तकें जागृत देवता हैं, उनके अध्ययन, मनन, चिन्तन के द्वारा तत्काल ही मानसिक तथा आध्यात्मिक लाभ पाया जा सकता है।