दिवाली बाद सताएगी रूपये की मार, मोबाइल समेत टीवी-फ्रिज महंगी होंगे ये इलेक्ट्रानिक आयटम!
नई दिल्ली : डॉलर के मुकाबले रुपये (RupeeVsDollar) में लगातार कमजोरी से त्योहारी सीजन की बिक्री समाप्त होने के बाद मोबाइल समेत उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं (electronics manufacturers) द्वारा कीमतों में एक और दौर की बढ़ोतरी की संभावना है। रुपये में कमजोरी की वजह से आयात खर्च बढ़ने मोबाइल समेत टीवी-फ्रिज और वाशिंग मशीन (washing machine) जैसे टिकाऊ उत्पादों की कीमत दिवाली बाद पांच से सात फीसदी तक बढ़ सकती है। इस साल अप्रैल से रुपया नौ फीसदी और पिछले छह माह में 12 फीसदी टूट चुका है।
विश्लेषकों (Analysts) ने कहा कि त्योहारों पर चल रही बिक्री में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर आकर्षक सौदे देखने को मिल रहे हैं, लेकिन बिक्री के बाद कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। आईडीसी इंडिया(IDC India), साउथ एशिया और एएनजेड में डिवाइस रिसर्च के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट नवकेंद्र सिंह ने कहा, रुपये में गिरावट का निश्चित रूप से कीमतों पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वेंडर त्योहारों के दौरान पहले से ही कमजोर मांग पर कोई असर नहीं उठा सकते हैं। लेकिन जल्द ही कंपनियों को दाम बढ़ाने पर विचार करना होगा। सिंह ने कहा कि नवंबर में कीमतों में एक नए दौर की उम्मीद की जा सकती है।
रिसर्च फर्म कैनालिस के टेक्नोलॉजी मार्केट (technology market) एनालिस्ट संयम चौरसिया ने कहा कि वेंडर कमजोर रुपये के दबाव को और सहन नहीं कर सकते हैं और इसे उपभोक्ताओं पर डालना होगा। चौरसिया ने कहा, विदेशी मुद्रा पिछले 18-20 महीनों से कंपनियों के लिए एक मुद्दा रहा है और अगर यह जारी रहता है, तो हम आने वाले महीनों में (कीमत) उपकरणों में एक और वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं।
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इसी तरह, मोटोरोला मोबिलिटी इंडिया (Motorola Mobility India) के प्रबंध निदेशक प्रशांत मणि ने कहा कि कुछ उपकरणों के दाम में कमी आई है और विशेष रूप से सेमीकंडक्टर चिप्स (semiconductor chips) के दाम घटे हैं लेकिन कमजोर रुपये ने इसे करीब-करीब शून्य कर दिया है। मणि ने कहा कि कंपनियां मौजूदा स्टॉक के लिए कीमतों को किसी तरह बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं ,लेकिन आने वाले समय में उपभोक्ताओं को उच्च लागतों को पारित करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
भारत में स्मार्टफोन निर्माता मुद्रा में उतार-चढ़ाव पर नजर रख रहे हैं क्योंकि वे अभी भी पूर्ण निर्माण करने के बजाय सेमी-नॉक्ड डाउन (एसकेडी) किट से फोन इकट्ठा करते हैं। इसलिए कंपनियां अंतिम उत्पाद बनाने के लिए डिस्प्ले और इंटीग्रेटेड सर्किट जैसे पुर्जों को आंशिक रूप से अलग-अलग अवस्था में आयात करती हैं। कमजोर रुपया ऐसे पुर्जों और तैयार उत्पाद की लागत को बढ़ा देता है।
अधिकांश स्मार्टफोन विक्रेताओं (smartphone vendors) के लिए लगभग 97-98 फीसदी सीकेडी है। विशेषज्ञों का कहना है कि निर्माता यदि आयात करते हैं, तो उनको अतिरिक्त विदेशी मुद्रा का भुगतान करना होगा। डॉलर के मजबूत होने और रुपये में गिरावट का असर वेंडरों पर और पड़ेगा।
काउंटरप्वाइंट रिसर्च के वरिष्ठ शोध विश्लेषक प्रचिर सिंह ने कहा कि हम त्योहारी सीजन समाप्त होने के बाद (स्मार्टफोन) कीमतों में पांच से सात फीसदी की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि 5जी सहित सभी नए मॉडलों की कीमतों में बढ़ोतरी होगी। रिसर्च फर्म कैनालिस के टेक्नोलॉजी मार्केट एनालिस्ट संयम चौरसिया ने भी कहा कि वेंडर कमजोर रुपये के दबाव को और सहन नहीं कर सकते हैं और इसे उपभोक्ताओं पर डालना होगा।
घरेलू बाजार और आयात के मोर्चे पर रुपये में गिरावट से जहां चुनौतियां बढ़ी हैं वहीं निर्यात के क्षेत्र में थोड़ी राहत भी मिली है। आंकड़ों के मुताबिक भारत से मासिक मोबाइल फोन निर्यात सितंबर में पहली बार एक अरब डॉलर (₹8,200 करोड़ से अधिक) को छू गया। निर्यातकों को सरकार की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना से बढ़ावा मिला, जिसने एप्पल और सैमसंग जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को घरेलू और साथ ही विदेशी बाजारों के लिए स्थानीय उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है।
टीवी-फ्रिज और वाशिंग समेत अन्य टिकाऊ उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के दाम बी बढ़ सकते हैं जिसको लेकर निर्माता बहुत चिंतित हैं। घरेलू टीवी ब्रांड दाइवा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अर्जुन बजाज ने कहा कि रुपये का अवमूल्यन इस समय सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे मार्जिन में कमी और कार्यशील पूंजी में वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहा कि कच्चे माल की कीमतें बढ़ाने वाले आपूर्तिकर्ताओं के बारे में उद्योग में बातचीत शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा कि कीमतों में संशोधन अगले महीने तय किया जाएगा।
डॉलर की मजबूती की वजह से दुनियाभर के बंदरगाहों पर शुल्क बढ़ने से बड़ी मात्रा में अनाज अटका पड़ा है। अफ्रीका से एशिया के खाद्य आयातक अपने बिलों का भुगतान करने के लिए डॉलर के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं क्योंकि अमेरिकी मुद्रा में वृद्धि के कारण पहले से ही ऐतिहासिक वैश्विक खाद्य संकट का सामना कर रहे देशों के लिए कीमतें और भी अधिक हैं।