नई दिल्ली: आज भारतीय सेना दिवस है। इसे मनाने के पीछे बड़ी वजह थे- फील्ड मार्शल केएम करियप्पा। 15 जनवरी, 1949 को करीब 200 साल के ब्रिटिश हुकूमत के बाद पहली बार किसी भारतीय को सेना की बागडोर सौंपी गई थी। करियप्पा आजाद भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ़ थे। हालांकि अब यह पद देश के राष्ट्रपति के पास है। इस पद पर करियप्पा के अलावा फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भी रहे। कमांडर-इन-चीफ़ तीन सेनाओं के प्रमुख को कहा जाता है। करियप्पा को ‘किपर’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके पीछे ब्रिटिश अफसर की पत्नी से जुड़ा किस्सा है। यह नाम उन्होंने ही करियप्पा को दिया था।
भारतीय सेना में फील्ड मार्शल पांच सितारा रैंक वाला सर्वोच्च पद होता है, जो देश की तीनों सेनाओं का प्रमुख होता है। इसे कमांडर-इन-चीफ भी कहा जाता है। ऐसा पद पाने वाले दो ही अधिकारी रहे हैं। पहले केएम करियप्पा और दूसरे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ।
28 जनवरी 1900 को कर्नाटक में जन्मे केएम करियप्पा लेफ्टिनेंट कर्नल का पद पाने वाले पहले भारतीय अफसर भी हैं। यह पदवीं उन्हें 1942 में मिली थी। पहले विश्व युद्ध (1914 से 1918)के दौरान करियप्पा ने सैन्य प्रशिक्षण लिया था। 1944 में वो ब्रिगेडियर के पद पर प्रमोट हुए। ब्रिगेडियर के तौर पर उनकी पहली तैनाती बन्नू फ़्रंटियर ब्रिगेड के कमांडर के तौर पर हुई थी।
कैसे पड़ा किपर नाम
केएम करियप्पा को ‘किपर’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्हें यह नाम ब्रिटिश अफसर की पत्नी ने दिया था। यह ब्रिटिश हुकूमत की बात है जब करियप्पा फतेहगढ़ में तैनात थे। उस ब्रिटिश अफसर की पत्नी को उनका नाम लेने में बहुत दिक्कत होती थी। इसलिए उन्होंने करियप्पा को ‘किपर’ पुकारना शुरू किया। फिर यह नाम उनके साथ जुड़ गया।