शादी में मिले उपहारों की लिस्ट बनाएं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बताया क्यों है ये अहम
नई दिल्ली: शादी में मिले उपहारों की एक लिस्ट बननी चाहिए और उस पर वर एवं वधू पक्ष के हस्ताक्षर भी जरूरी हैं। ऐसा करने से शादी के बाद होने वाले विवादों और केस-मुकदमों में मदद मिलेगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह अहम सलाह दी है। अदालत ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में एक नियम यह भी है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की भी सूची बननी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होगा कि उन लोगों को क्या-क्या मिला था। इसके अलावा अदालत ने कहा कि शादी के दौरान मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस विक्रम डी. चौहान की बेंच ने कहा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी अर्जी के साथ ऐसी लिस्ट क्यों नहीं लगाते। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उसकी पूरी भावना के साथ पालन होना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह नियम बताता है कि दहेज और उपहारों में क्या अंतर है। शादी के दौरान लड़का और लड़की को मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज में नहीं शामिल किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अच्छी स्थिति यह होगी कि मौके पर मिली सभी चीजों की एक लिस्ट बनाई जाए। इस पर वर और वधू दोनों के ही साइन भी हों। इससे भविष्य में लगने वाले बेजा आरोपों को रोका जा सकेगा।
बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, ‘दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 को केंद्र सरकार की ओर से इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है। भारत की परंपरा को समझते हुए ही गिफ्ट्स को अलग रखा गया है। यही वजह है कि जब लिस्ट बन जाएगी तो फिर बेजा आरोपों से बचा जा सकेगा। अकसर शादी के बाद विवाद होने पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं।’ जज ने कहा कि इस नियम के अनुसार तो दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए। लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि दहेज की शिकायतों से जुड़े मामले खूब बढ़ रहे हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की यह टिप्पणी दहेज उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर अहम है। किसी भी शादी के 7 साल बाद तक दहेज उत्पीड़न का केस दायर किया जा सकता है। अकसर ऐसे मामले अदालत में पहुंचते हैं, जिनमें विवाद किसी और वजह से होता है, लेकिन आरोप दहेज का लगा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में अदालत का सुझाव अहम है।